अप्रैल माह में करें इन टॉप 5 जायद फसलों की बुवाई, होगी बंपर कमाई

Share Product प्रकाशित - 09 Apr 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

अप्रैल माह में करें इन टॉप 5 जायद फसलों की बुवाई, होगी बंपर कमाई

जानें, कौनसी है ये टॉप 5 जायद फसलें और इनसे कितना हो सकता है मुनाफा

रबी फसलों की कटाई का काम पूरा होने वाला है और अब खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में किसान इस खाली पड़े खेत में जायद की फसलें उगाकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। जायद वह समय होता है जब रबी फसलों की कटाई हो जाती है और खरीफ की फसल (Kharif Crop) बोने में अभी समय होता है। इस बीच में बचे समय को जायद कहा जाता है। यानि रबी और खरीफ की फसल के बीच में जितने दिन खेत खाली रहता है उतने समय को जायद सीजन कहा जाता है और इस समय में बोई जाने वाली फसलों को जायद की फसलें कहते हैं। वैसे तो जायद के सीजन में बहुत सी फसलों की खेती की जाती है, लेकिन हम यहां उनमें से टॉप 5 फसलों की जानकारी (Top 5 Crops Information) आपको देंगे जिसके बाजार में बेतहर भाव मिल सकते हैं। तो आइये आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से जानते हैं कि किसान किन 5 जायद फसलों की खेती करें जिससे उन्हें बेतहर मुनाफा मिल सके।

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1. जायद मूंग की खेती

जायद सीजन में मूंग की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी है। इसकी बाजार मांग भी रहती है और कई राज्य सरकारें अपने स्तर पर इसकी एमएसपी पर खरीद भी करती हैं। हालांकि मूंग के भावों में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता है। इसके अलावा मूंग की खेती, खेत की मिट्‌टी की सेहत के लिए भी लाभकारी है। इससे मिट्‌टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है। ऐसे में मूंग की खेती (Moong cultivation) किसानों के लिए फायदेमंद है। किसान जायद में मूंग जल्दी पकाने वाली किस्मों की बुवाई करें ताकि खरीफ सीजन से पहले वे तैयार हो जाएं। मूंग की जल्दी पकने वाली किस्मों में किस्मों में एसएमएल 668, मोहिनी, शीला, एमयूएम 2, आरएमजी 268, पूसा विशाल, पंत मूंग-1, मूंग कल्यणी, टॉम्बे जवाहर मूंग-3 (टी.जे.एम-3), पीएस 16 आदि हैं। ये किस्में 70 से 85 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।  

बुवाई का तरीका

जायद मूंग की खेती के लिए रबी की फसल की कटाई के तुरंत बाद खेत की जुताई 4-5 दिन छोड़कर करनी चाहिए। यदि खेत में नमी कम है तो इसकी जुताई पलेवा लगाकर करनी चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए। इस तरह खेत की मिट्‌टी को समतल और भुरभुरा बना लेना चाहिए। इससे उसमें नमी बनी रहती है। जायद मूंग की फसल की बुवाई के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर लेना पर्याप्त रहता है। मूंग की बुवाई में कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखते हुए बुवाई करना अच्छा रहता है। बीज को 4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। कीट रोगों से बचाव के लिए बीज को पांच ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके बाद बीज को छाया में सूखाकर इसकी बुवाई करनी चाहिए।

2. खीरा की खेती

गर्मियों के मौसम में लोग सलाद के रूप में खीरा खाना पसंद करते हैं। खीरा के सेवन से पानी की कमी पूरी होती है। इसके अलावा खीरा का उपयोग फस्ट फूड में भी किया जाता है। खीरा के बाजार में भाव भी अच्छे मिलते हैं। ऐसे में किसान जायद में खीरे की खेती (Cultivation of Cucumber) करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी फसल 35 से 40 दिन में पककर तैयार हो जाती है। खीरे की उन्नत किस्मों में पूसा संयोग, खीरा 90, मालव-243, गरिमा सुपर, एनसीएच-2, यूएस-6125, यूएस-249, पाइनसेट, रागिनी, संगिनी, मंदाकिनी, टेस्टी आदि इसकी बेहतर किस्में हैं।

बुवाई का तरीका

खीरा की बुवाई खेत में थाला के चारों तरफ 2-4 बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। खीरे की बुवाई नाली विधि से भी की जा सकती है। इस फसल की बुवाई करने के लिए 60 सेमी चौड़ी नालियां बनाई जाती है। इनके किनारे पर खीरे के बीज की बुवाई की जाती है। दो नालियों के बीच की दूरी 2.5 मीटर रखी जाती है। वहीं एक बेल से दूसरे बेल के नीचे की दूरी 60 सेमी रखी जाती है। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बुवाई करने से पहले इसके बीजों को 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए। बीज की कतार में बुवाई करनी चाहिए। इसमें कतार से कतार की दूरी 1.0 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 50 सेमी रखनी चाहिए।

3. ककड़ी की खेती

खीरा की तरह ही ककड़ी को मांग भी गर्मियों में बहुत रहती है। इसके भी बाजार में अच्छे भाव मिलते हैं। ककड़ी को कच्चा और सब्जी बनाकर दोनों रूपों में खाया जाता है। ककड़ी भी गर्मियों में शरीर में पानी की कमी को पूरा करती है, इसलिए लोग गर्मियों के मौसम में ककड़ी का सेवन अधिक करते हैं। किसान भाई ककड़ी की खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं। ककड़ी की फसल (Cucumber Crop) 60 से 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। ककडी का बेहतर उत्पादन देने वाली किस्मों में प्रिया, हाइब्रिड-1, पंत संकर खीरा-1 और हाइब्रिड-2 प्रमुख हैं। इसके अलावा इसकी अन्य किस्मों में जैनपुरी ककड़ी, पंजाब स्पेशल, दुर्गापुरी ककड़ी, लखनऊ अर्ली और अर्का शीतल आदि भी बेतहर किस्में हैं।

बुवाई का तरीका

ककड़ी की रोपाई बीज और पौधे दोनों से की जा सकती है। बीज द्वारा बुवाई करने के लिए एक हैक्टेयर में करीब 2 से 3 किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त रहती है। इसके बीजों की बुवाई करने से पहले उन्हें बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए इसके बाद ही इसकी बुवाई करनी चाहिए। ककड़ी की खेत में रोपाई करने से पहले 20-25 दिन पूर्व इसकी नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए। यदि नर्सरी तैयार नहीं है तो आप इसके पौधों को किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद कर इसकी खेत में रोपाई कर सकते हैं। ककड़ी बीजों की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 1.5 से लेकर 2.0 मीटर रखते हुए 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुवाई की जाती है। नाली के दोनों किनारो जिसे मेड कहते पर 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुवाई की जाती है। इस तरह एक जगह पर दो बीज की बुवाई की जाती है। बीज जमने पर के बाद एक स्वस्थ पौधा छोड़कर दूसरा पौधा निकाल लिया जाता है। इस तरह स्वस्थ पौधे खेत में रह जाते हैं और खराब पौधों को हटा दिया जाता है।

4. करेला की खेती

करेला की खेती (Bitter Gourd Farming) भी किसानों को लाभ देने वाली खेती मानी जाती है। इसकी खास बात ये हैं कि इसके भाव भी बाजार में बेतहर मिलते हैं। करेले की सब्जी बनाकर खाई जाती है। करेला का सेवन शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है। शुगर के मरीज को डॉक्टर करेले का रस पीने की सलाह भी देते हैं। ऐसे में करेले की बाजार मांग काफी अच्छी बनी रहती है। किसान भाई करेले की खेती करके भी बहुत अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। करेले की फसल 55 से 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है। करेले की खेती के लिए बेतहर उत्पादन देने वाली किस्में पूसा हाइब्रिड 1, पूसा हाइब्रिड 2, पूसा विशेष, अर्का हरित आदि हैं।

करेले की बुवाई का तरीका

करेले की बुवाई करते समय एक एकड़ 500 बीज की मात्रा लेना पर्याप्त रहता है। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बने घोल में 18-24 घंटै तक भिगोए रखना चाहिए। इसके बाद बीज को छाया मं सुखा लेना चाहिए। अब बीजों की बुवाई करते समय बीजों को 2 से लेकर 3 इंच तक की गहराई पर बोना चाहिए। वहीं नाली से नाली की दूरी 2 मीटर रखनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर एवं नाली की मेढ़ों की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक और 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुवाई अलग-अलग खंडों में करनी चाहिए। फसल के लिए मजबूत मचान बनानी चाहिए और पौधों को उस पर चढ़ाएं, इससे फल खराब नहीं होते हैं।

5. तरबूज की खेती

गर्मियों में तरबूज की बाजार में मांग काफी रहती है। तरबूज भी पानी की कमी को पूरा करता है। इसलिए गर्मियों लोग तरबूज का सेवन करते हैं। गर्मियों में इसकी बाजार मांग होने से किसान इसकी खेती करके भी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। तरबूज की खेती (Farming of Watermelon) के लिए शुगर बेबी, अर्का ज्योति, आशायी यामातो, डब्ल्यू19, पूसा बेदाना, अर्का मानिक इसकी प्रमुख उन्नत किस्में हैं। इसके अलावा इसकी हाइब्रिड किस्में भी जिनमें मधु, मिलन और मोहनी अच्छी किस्में हैं।

बुवाई का तरीका

मैदानी इलाकों में इसकी बुवाई समतल भूमि में या डोलियों में की जाती है। जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई कुछ ऊंची उठी क्यारियों में की जाती है। इसमें 2.50 मीटर चौड़ी क्यारियां बनाई जाती हैं। उसके दोनों किनारों पर 1.5 सेमी गहराई पर 3-4 बीज बो दिए जाते हैं। थामलों के बीच की दूरी भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। वर्गाकार प्रणाली में 4X1 मीटर की दूरी रखी जाती है। वहीं पंक्ति और पौधों के बीच की दूरी तरबूज की किस्म पर निर्भर करती है। 

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