ककड़ी की खेती से होगा डबल मुनाफा, बस रखना होगा इन बातों का ध्यान

Share Product प्रकाशित - 20 Jun 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

ककड़ी की खेती से होगा डबल मुनाफा, बस रखना होगा इन बातों का ध्यान

जानें ककड़ी की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी  

ककड़ी एक कद्दू वर्गीय फसल हैं, जो खीरे के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। भारत में इसकी खेती किसान नगदी फसल के रूप में करते हैं। इसकी खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा भी दे सकता है। भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है। यह भारतीय मूल की फसल है, जिसे जायद की फसल के साथ उगाया जाता है। इसके फल एक फीट तक लम्बे होते हैं। ककड़ी को मुख्य रूप से सलाद और सब्जी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। गर्मियों के मौसम में ककड़ी का सेवन अधिक मात्रा में किया जाता है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि गर्मियों का मौसम अभी चरम पर पहुंच रहा है। ऐसे में बाजार में इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है। किसान भाई इसकी खेती कर अच्छी कमाई भी करते हैं। यदि वैज्ञानिक विधि से आप इसकी खेती करें तो इसकी खेती से मुनाफा डबल भी हो सकता है। यदि आप भी ककड़ी की खेती करने का मन बना रहे हैं, तो ट्रैक्टर जंक्शन की आज की पोस्ट में ककड़ी की खेती कैसे करें तथा ककड़ी की खेती का समय, पैदावार के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही हैं, जिसके माध्यम से आप इसकी अच्छी खेती कर इस मौसम में भी अपने खेत से एक अच्छी आमदनी कर पाएंगे।

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ककड़ी की खेती कैसे करें (Kakdi ki kheti kaise karen) ?

ककड़ी वैज्ञानिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय हैं। यह मूल रूप से भारत की कद्दू वर्गीय जायद की एक प्रमुख फसल हैं। इसको संस्कृत में कर्कटी तथा मारवाडी भाषा में वालम काकरी कहा जाता है। यह कुकुरबिटेसी वंश के अंतर्गत आती है। इसकी खेती का तरीका बिलकुल तोरई के समान हैं, केवल उसके बोने के समय में अंतर हैं। जहाँ शीत ऋतु अधिक कड़ी नहीं होती, वहां अक्टूबर के मध्य में इसके बीज बोए जा सकते हैं, नहीं तो इसे जनवरी में बोना चाहिए। ऐसे स्थानों जहां सर्दी अधिक पड़ती हैं, वहां इसे फरवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए। इसकी फसल बलुई दुमट भूमियों से अच्छी होती है। इस फसल की सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। इसमें दो मुख्य जातियाँ होती हैं- एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। इनमें पहली को ही लोग पसंद करते हैं। ग्राहकों की पसंद के अनुसार फलों की तुड़ाई कच्ची अवस्था में करनी चाहिए। इसकी माध्य उपज लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं। 

उपयुक्त जलवायु

ककड़ी की खेती (Cucumber Farming) के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे बेहतर हैं। बारिश के मौसम में इसके पौधे ठीक से विकास करते हैं, किन्तु गर्मियों का मौसम पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता हैं। ठंडी जलवायु फसल के लिए अच्छी नहीं होती हैं। क्योंकि यह मुख्यतः गर्मी की फसल हैं, इसके पौधे पूर्ण रूप से 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच ही विकसित हो सकते हैं। इसके साथ ही बीजों का जमाव लगभग 20 डिग्री सेल्सियस से कम के तापमान पर संभव नहीं हैं। लेकिन अधिक तापमान इसके लिए अच्छा नहीं होता हैं।

खेती के लिए भूमि

सामान्य तौर पर ककड़ी की खेती भारत के सभी क्षेत्रों में सफलता पूर्वक की जाती हैं, तो जाहिर सी बात हैं। इसकी खेती किसी भी उपजाऊ प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती हैं। किन्तु इसकी अच्छी पैदावार के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मिट्टी को काफी बेहतर माना गया हैं। इसकी खेती में भूमि जल निकासी वाली होनी चाहिए, जल भराव वाली भूमि में ककड़ी की खेती करनें से बचे। ककड़ी की खेती में सामान्य पी.एच 6.5 से 7.5 मान वाली मिट्टी की आवश्यकता होती हैं।

खेत की तैयारी

ककड़ी की अधिक मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए इसके खेत को अच्छी तरह से तैयार करना होता है। इसके खेत को अच्छे से तैयार करने के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद सभी तरह के घास फूस को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से जुताई करें। जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें। पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब सतह की मिट्टी हल्की सूखने लगे तब खेत में रोटावेटर चलाकर खेत की अच्छे से जुताई कर मिट्टी भुरभुरी बना लें। ककड़ी की बीजों की बुवाई समतल भूमि और मेड़ बनाकर की जाती हैं। इसकी बुवाई कार्य से पहले तैयार खेत में नाली बनानी चाहिए और मिट्टी में जब नमी हो तो बुवाई कार्य शुरू कर देना चाहिए। नमी वाली मिट्टी में ही ककड़ी के बीजों का अंकुरण और विकास अच्छा हो सकता हैं।

उन्नत किस्में

ककड़ी कद्दू वर्गीय व्यापारिक नकदी फसल है। ककड़ी की खेती मुख्यतः बाड़ी के रूप में किया जाता हैं। इसकी खेती पारंपरिक फसल की खेती की भॉति नहीं हैं, इसकी खेती किसान भाई गर्मी के मौसम में खेत से कुछ नगदी कमाने के लिए कर लेते हैं। इस वजह से इसकी बहुत कम उन्नत किस्में विकसित हुई हैं। लेकिन इसकी कुछ संकर किस्म हैं, जिन्हे किसान भाई अधिक पैदावार के लिए उगाते हैं।

संकर किस्में

प्रिया, हाइब्रिड- 1, पंत संकर खीरा- 1 और हाइब्रिड- 2 आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा कुछ अन्य किस्म जैसे - जैनपुरी ककड़ी, पंजाब स्पेशल, दुर्गापुरी ककड़ी, लखनऊ अर्ली और अर्का शीतल आदि ककड़ी की कुछ प्रजातियां हैं। जिनका उपयोग किसान भाई इसकी खेती के लिए कर सकतें हैं।  

बीज की मात्रा एवं बुवाई विधि

ककड़ी के बीजों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीको से की जाती हैं। बीज के द्वारा रोपाई करने के लिए एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 2 से 3 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। इसके बीजों की खेत में बुवाई से पहले मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। ककड़ी के खेत की रोपाई के लिए पौधों को 20 से 25 दिन पूर्व नर्सरी में तैयार कर लेना होता है। इसके अलावा यदि आप चाहे तो इन पौधों को किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद सकते हैं। ककड़ी की फसल से उत्तम उत्पादन के लिए कतार से कतार 1.5 से 2.0 मीटर के अन्तर पर 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियाँ बना लेते हैं। नाली के दोनों किनारों (मेड़ों) पर 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुआई करते हैंद्य एक जगह पर 2 बीज की बुआई करते हैंद्य बीज जमने के बाद एक स्वस्थ पौधा छोड़कर दूसरा पौधा निकाल देते हैं।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

ककड़ी के बीज बोने से एक महीने पहले खेत को तैयार करते समय कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से ककड़ी की खेती से अच्छी उपज के लिए मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। इसके साथ ही रासायनिक खाद के रूप में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा और एक तिहाई नाइट्रोजन की मात्रा आपस में मिला कर बोने वाली नालियों के स्थान पर डाल कर मिट्टी में मिला दें तथा मेंड़ बनाएं। शेष नाइट्रोजन दो बराबर भागों में बाँटकर बुआई के लगभग 25 से 30 दिन बाद नालियों में ड़ालें और गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ायें तथा दूसरी मात्रा पौधों की बढ़वार के समय 35 से 40 दिन बाद लगभग फूल निकलने के पहले छिड़काव के रूप में दें। यूरिया का तरल छिड़काव (5 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी) करना लाभदायक हैं।

ककड़ी फसल की देखभाल ऐसे करें

खेत की सिंचाई

आमतोर पर ककड़ी की फसल को अन्य फसलों की तुलना अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि इसकी खेती की बुवाई फरवरी से मार्च महीने में की जाती हैं। इन महीनों में खेती की नमी के अनुसार इसकी सिंचाई करना चाहिए। इसकी पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। ककड़ी की फसल में ग्रीष्म ऋतु में पांच से सात दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए और बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए, कि जब फल की तुड़ाई करनी हो उसके दो दिन पहले सिंचाई अवश्य कर दें। इससे फल चमकीला, चिकना तथा आकर्षक बना रहता हैं। 

निराई-गुडाई

ककड़ी के खेत को खरपतावार मुक्त रखने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। ककड़ी के पौधे लताओं के रूप में विकास करते हैं। इसलिए ककड़ी की फसल में खरपतवार नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता हैं। इसके पौधे भूमि की सतह पर ही फैलते है, जिससे उन्हें रोग लगने का खतरा बढ़ जाता हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता हैं। ककड़ी की फसल में पहली निराइ-गुड़ाई का कार्य पौध रोपाई के 20 से 25 दिन बाद करना चाहिए तथा बाद की निराई-गुड़ाई को 15 से 20 दिन के अंतराल में करना चाहिए। इसकी फसल को 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। 

कीट एवं रोकथाम

फल मक्खी : फल मक्खी का प्रकोप ककड़ी की फसल में मुख्य रूप से देखने को मिलता है। यह ककड़ी को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। ककड़ी की फसल में इस मक्खी की रोकथाम हेतु मैलाथियान 50 ई सी या डाईमिथोएट 30 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। 

बरूथी : ककड़ी की फसल का यह कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहकर मुलायम तने तथा पत्तियों का रस चूसते हैं। इस कीट से निजात हेतु इथियॉन 50 ई सी 0.6 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

लाल भृंग : ककड़ी की फसल में लगने वाला यह कीट लाल रंग का होता हैं और अंकुरित एवं नई पत्तियों को खाकर छलनी कर देता हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए रोकथाम हेतु कार्बारिल 5 प्रतिशत चूर्ण का 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यह छिड़काव 15-15 दिन के अन्तराल पर दो से तीन बार करें।

रोग एवं नियंत्रण – 

ऐंथ्राक्नोम : ककड़ी के पौधों पर यह रोग पत्तों पर दिखाई देता हैं। जिसके कारण पत्तियों पर भूरे रंग की छल्लेदार धारियां बन जाती हैं एवं पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं। इस रोग के निवारण के लिए कार्बेनडाजिम 2 ग्राम या मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।  

डाउनी मिल्ड्यू : इस रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं तथा नीचे की सतह पर कवक की वृद्धि दिखाई देती हैं। इस रोग के रोकथाम हेतु मैन्कोजेब दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर इसके घोल का छिड़काव पौधों पर करें।

पाउडरी मिल्ड्यू (छाया) : यह रोग ककड़ी के पौधों की पत्तियों के ऊपर सफेद चूर्णी धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। इस रोग का प्रकोप फल एवं पत्तियों दोनों पर देखने को मिलता हैं। पत्ते सूख कर गिर जाते हैं एवं फलों की बढ़वार रूक जाती हैं। इसके रोकथाम हेतु पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलकार 10 से 15 दिनों के अन्तराल में 2 से 3 बार छिड़काव करें। 

मुरझाना : इस रोग से पौधे के वेस्कुलर टिशुओं पर प्रभाव डालता है,जिससे पौधा मुरझा जाता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए फुजारियम सूखे से बचाब के लिए कप्तान या हैक्सोकैप 0.2 से 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करें।

तुड़ाई एवं पैदावार : इसके फल 60-70 दिनों में तुडाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मुख्य तौर पर ककड़ी के फलों की तुड़ाई मुलायम अवस्था में ही (जब फल हरे व मुलायम हों) करनी चाहिए, अन्यथा फलों में आकर्षण कम होने के कारण बाजार भाव घट जाता हैं। ककड़ी के एक हेक्टेयर खेत से किसान भाई को 200 से 250 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त हो जाती हैं। यह उपज इसकी खेती के तरीके, किस्म, उर्वरक और जलवायु पर निर्भर करती हैं।  

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