लंपी वायरस की रोकथाम के लिए इम्यून बेल्ट बनाएगी सरकार

Share Product प्रकाशित - 12 Sep 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

लंपी वायरस की रोकथाम के लिए इम्यून बेल्ट बनाएगी सरकार

जानें, कहां बनाई जाएगी इम्यून बेल्ट और कैसे करेगी काम

इन दिनों गायों में लम्पी वायरस नामक बीमारी का प्रकोप जारी है। इस वायरस ने हजारों गायों को अपनी चपेट में ले रखा गया है। ये रोग देश के 12 राज्यों में फैल चुका है। इसे लेकर राज्य सरकारें चिंतित हैं और इसकी रोकथाम के हर संभव प्रयास कर रही हैं। अब तक इस रोग से 56 हजार से अधिक मवेशियों की मौत हो चुकी है। लंपी वायरस का सबसे अधिक प्रकोप राजस्थान में दिखाई दे रहा है। यहां इससे हजारों गायों की मौत हो चुकी है। वहीं उत्तर प्रदेश में 199 पशुओं की मौत इस वायरस के कारण हो चुकी है। 

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लंपी वायरस की रोकथाम के लिए बनाई जाएगी इम्यून बेल्ट

मवेशियों की मौत के मामले सामने आने के बाद यूपी सरकार एक्टिव मोड पर कार्य करने में जुट गई है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए यूपी सरकार की ओर से एक अहम निर्णय लिया गया है। इसके तहत योगी सरकार ने गाय-भैंस को इस वायरस से सुरक्षित करने के लिए लक्ष्मण रेखा खींचने का फैसला लिया है। यानि यूपी सरकार ने वायरस की रोकथाम के लिए इम्यून बेल्ट बनाने की योजना बनाई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राज्य के पशुपालन विभाग ने मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा को इम्यून बेल्ट से संबंधित मास्टर प्लान पर एक प्रेजेंटेशन दिया है। जिस पर सरकार की सहमति जताई है। 

कहां बनाई जाएगी इम्यून बेल्ट

राज्य सरकार के फैसले के अनुसार लंपी वायरस प्रसार को रोकने के लिए इम्यून बेल्ट बनाई जाएगी। यह इम्यून बेल्ट पीलीभीत और इटावा के बीच बनाई जाएगी जो 300 किलोमीटर में क्षेत्र को कवर करेगी। इस इम्यून बेल्ट चौड़ाई 10 किमी होगी। यह इम्यून बेल्ट प्रदेश के 5 जिलों और 23 ब्लॉकों से होकर गुजरेगी। इस फैसले के पीछे राज्य सरकार का उद्देश्य बाकी उत्तर प्रदेश को संक्रमित वेस्ट यूपी से अलग करना है। 

Lumpy Virus : कैसे काम करेगी इम्यून बेल्ट

यूपी सरकार की ओर से तैयार की गई इम्यून बेल्ट योजना मलेशियाई मॉडल पर तैयार किया जाएगा। जानकारी के अनुसार पशुपालन विभाग की ओर से इम्यून बेल्ट वाले क्षेत्र में वायरस की निगरानी के लिए एक टॉस्क फोर्स का गठन किया जाएगा। यह टास्क फोर्स वायरस से संक्रमित जानवरों की ट्रैकिंग और उपचार का कार्य करेगी। यह फोर्स लंपी बीमारी से संक्रमित पशुओं पर कड़ी नजर रखेगी। इसी के साथ ये फार्स पशुओं को इम्यून बेल्ट के भीतर रखने की व्यवस्था भी करेगी। 

यूपी के इन जिलों में मिले लंपी के सबसे ज्यादा मामले

लंपी वायरस के सबसे ज्यादा मामले वेस्ट यूपी के जिलों में सामने आए हैं। इसमें जिन जिलों में ये मामले सबसे ज्यादा मिले उनमें अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर शामिल हैं। वहीं मथुरा, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मेरठ, शामली और बिजनौर में यह वायरस तेजी से फैल रहा है। इसे देखते हुए हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इम्यून बेल्ट योजना तैयार की है जिस पर तेजी से काम किया जा रहा है।

यूपी में कितनी गायों में फैला लंपी वायरस

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक राज्य के 2,331 गांवों की 21,619 गायों में ये लंपी वायरस फैल चुका हैं। इसमें से गायों की 199 की मौत हो चुकी है। जबकि 9,834 का उपचार किया जा चुका है और अब वे स्वस्थ्य हो चुकी हैं। लंपी वायरस पर काबू पाने के लिए योगी सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। इसमें 5,83,600 से अधिक मवेशियों का टीकाकरण किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि इस टीके से पशुओं में फैल रहे लंपी वायरस के रोकथाम में मदद मिलेगी। 

हरियाणा में टीकाकरण अभियान जारी

एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से स्वस्थ गौवंश टीकाकरण अभियान चलाया गया है। इसके तहत घर-घर जाकर 4 माह से अधिक आयु के सभी स्वस्थ गो-जातीय पशुओं का मुफ्त टीकाकरण किया जा रहा है। अब तक 15 लाख से अधिक गौवंश का टीकाकरण किया जा चुका है, बाकि स्वस्थ गो-जातीय पशुओं का भी टीकाकरण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लम्पी चर्म रोग से ग्रसित पशुओं का टीकाकरण नहीं किया जा रहा है। यदि कोई पशु लंपी स्किन बीमारी से ग्रसित है तो अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय या पशु औषधालय से संपर्क करें। उन्होंने गौवंश पालकों को आगाह किया कि यह बीमारी पशुओं से मनुष्य में नहीं फैलती है, फिर भी सलाह दी जाती है कि प्रभावित पशुओं का दूध उबाल कर ही पीयें। उचित देखभाल व इलाज से बीमार पशु 10-15 दिनों में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है और दूध उत्पादन भी सामान्य स्तर पर आ जाता है।

राजस्थान में लंपी वायरस से गायों की मौतों का सिलसिला जारी

पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 9 लाख में से 1,10,787 गौवंश लंपी वायरस से प्रभावित हैं और 19 जुलाई से अब तक 2,735 गौवंश की मौत हो चुकी है जबकि करीब 70 गौशालाओं में 5 हजार गायों की मौत हुई है। 
वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार लंपी वायरस से करीब अब 45 हजार 63 गायों की मौत हो चुकी है। अब तक 10 लाख 36 हजार गायें इस वायरस संक्रमित हुई हैं। इसमें से 9 लाख 90 हजार गायों का इलाज जारी है। वहीं 5 लाख 71 हजार गायें इस बीमारी से स्वस्थ भी हुई हैं। 

सबसे ज्यादा राजस्थान के इन जिलों में हुई लंपी वायरस से गायों की मौतें

लंपी वायरस से सबसे ज्यादा पशुओं की मौत बाड़मेर में हुई है। इसी के साथ इस बीमारी ने राजस्थान के कई जिलों को अपनी चपेट में ले लिया है। इस बीमारी से बाड़मेर में रोजाना सैकड़ों की तादाद में मवेशी दम तोड़ रहे हैं। वहीं राजस्थान के जिन जिलों इस बीमारी का प्रकोप सबसे अधिक हैं उनमें जोधपुर, बाड़मेर, पाली, बीकानेर, नागौर, जैसलमेर और धौलपुर शामिल हैं। 

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लंपी वायरस में मृत पशु को लेकर क्या दिए सरकार ने निर्देश

राजस्थान की गहलोत सरकार ने हर ग्राम पंचायत पर लंपी वायरस से मृत पशु को 10 फीट गहरे गडढे में दफनाने के निर्देश दिए हैं। जबकि इसके उलट मृत पशुओं को खुले में डाला जा रहा है। इसे लेकर मीडिया में काफी खबरें भी आई हैं जिसमें बाड़मेर शहर से 15 किलोमीटर दूर रोहिली और अरिहंत नगर में खुले में हजारों की तादद में मृत गायों के शव दिखाई दिए हैं। इधर केंद्र सरकार ने कहा है कि लंपी वायरस मारे गए जानवरों के निस्तारण में कोविड जैसी गंभीरता राज्य को दिखानी चाहिए। इधर गहलोत सरकार ने लंपी बीमारी को महामारी घोषित करने की मांग केंद्र सरकार से की है।  

क्या है लंपी वायरस

यह एक संक्रामक बीमारी है जो प्रमुख रूप से गायों और भैंसों में होती है। पशुओं में यह बीमारी Capripo वायरस के कारण होती है। ये वायरस गोटपॉक्स और शिपपॉक्स फैमिली का है। लंपी वायरस मवेशियों में मच्छर या खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए फैलता है। हालांकि इस वायरस का प्रभाव अभी तक मनुष्य पर दिखाई देने का कोई मामला सामने नहीं आया है।

लंपी वायरस से प्रभावित पशु के क्या हैं लक्षण

लंपी वायरस का शुरू में इलाज किया जाए तो पशु की जान बच सकती है। इसके लिए इस बीमारी के लक्षण की जानकारी होना बेहद जरूरी है। लंपी वायरस से पीडि़त पशु में जो लक्षण दिखाई देते हैं, वे इस प्रकार से हैं।

  • लंपी वायरस के असर से पशु को हल्का बुखार आता है।
  • पशु के शरीर पर दाने निकलने लग जाते हैं गांठों में बदल जाते हैं।
  • इलाज नहीं मिलने पर ये दाने या गांठें घाव में बदलना शुरू हो जाते हैं।
  • लंपी वायसर से प्रभावित पशु की नाक बहना, मुंह से लार आना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। 
  • इस वायरस सें संक्रमित हुए मवेशी कम दूध देना लग जाते हैं। 

लंपी से नहीं घबराये किसान, पशु चिकित्सक को दें सूचना

उपसंचालक पशुपालन एवं डेयरी विभाग जिला मंदसौर (मध्यप्रदेश) की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार लंपी स्किन डिसीज पशुओं की एक विषाणुजनित बीमारी है जो कि मच्छर मक्खी एवं टिक्स ( घिचोड़ी / चीचड़े) आदि के काटने से एक पशु से दूसरे पशु मे फैलती है। बीमारी में अधिकतर संकमित पशु 2-3 सप्ताह में ठीक हो जाते है एवं मृत्युदर 15 प्रतिशत है। पशुपालक बीमारी के शुरुआती लक्षण जैसे कि हल्का बुखार एवं पुरे शरीर की चमड़ी में गठाने (2-3 से.मी. गोल उभरी हुई ) दिखाई देने पर तत्काल निकटस्थ पशु चिकित्सक को सूचित करें। शुरुआती लक्षण दिखने पर 3 से 4 दिन इलाज करने पर पशु जल्दी ठीक हो जाता है। 

किसान पशुओं की सुरक्षा के लिए अपनाए ये उपाय

पशुपालन विभाग की ओर से किसानों को पशुओं की सुरक्षा के लिए उपाय भी बताए गए हैं जिनसे पशुओं को संक्रमण से बचाया जा सकता है। ये उपाय इस प्रकार से हैं।

  • संकमित पशु को स्वस्थ पशु से तत्काल अलग कर देना चाहिए।
  • पशु शाला, घर पर सफाई का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए जीवाणु विषाणु नाशक रसायन जैसे फिनाइल, फोर्मेलिन एवं सोडियम हायपो क्लोराईड का प्रयोग किया जाना चाहिए। 
  • इस बीमारी का प्रकोप दो राज्यों में सबसे अधिक है जिनमें राजस्थान और गुजरात है। इसलिए वर्तमान में किसानों को इन जिलों से पशुओं की खरीद-फरोख्त नहीं करनी चाहिए।
  • पशुशाला में मच्छर नहीं पनपें इसके लिए पशुशाला के आसपास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए।  
  • पशुपालकों को शाम के समय पशु शेड में नीम के पत्तों से धुआं करना चाहिए जिससे मक्खी / मच्छर से पशुओं का बचाव हो सके।
  • पशुओं के साथ पशुपालक किसान को अपने शरीर की साफ सफाई का भी ध्यान देना चाहिए। यदि आप बाहर से आए हैं तो सेनेटाइज होने के बाद ही पशुशाला में प्रवेश करें। 
  • स्वस्थ पशु का टीकाकरण कराएं।

गौशाला में सुरक्षा एवं बचाव के लिए अपनाएं ये उपाय

  • गौशाला के शेड में नियमित साफ सफाई करवाई करें और फिनाइल का स्प्रे किया करें। 
  • गौशाला में आने वाले नये पशुओं को 10 से 15 दिनों के लिए अलग रखें ताकि यदि उनमें रोग के लक्षणों का पता लगाया जा सके।
  • पशु की मृत्यु होने पर गहरा गड्ढा खोदकर चूना एवं नमक डालकर शव निष्पादन करें। शव निष्पादन स्थल जल स्त्रोत एवं आबादी से दूर होना चाहिए।


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