प्रकाशित - 03 Apr 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
किसानों को बाजार की डिमांड और भाव को ध्यान में रखते हुए फसल का चुनाव करना चाहिए। किसानों को चाहिए कि वे कम लागत पर अधिक मुनाफा देने वाली फसलों के उत्पादन पर ध्यान दें ताकि उनकी आय बढ़ सकें। आज कई किसान इस बात को समझ गए हैं और वे अब तरह-तरह की नई-नई फसलों की खेती की ओर अपना रूख कर रहे हैं। अधिक लाभ देने वाली फसलों में कुट्टू की खेती (Buckwheat Farming) भी आती है। इसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। बता दें कि कुट्टू का आटा, गेहूं व चावल के आटे से भी ज्यादा महंगा बिकता है। बाजार में भी इसकी अच्छी डिमांड है। कुट्टू के आटे से कई व्यंजन बनाए जाते हैं। भारत में उपवास करने वाले लोग इसके आटे से बनी चीजें बनाकर खाते हैं। सिंघाडे़ से ज्यादा कुट्टू के आटे का उपयोग किया जाता है। ऐसे में कुट्टू की खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो सकती हैं।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको कुट्टू की खेती कैसे करें, कुट्टू की खेती का सही तरीका, कुट्टू से बनने वाले व्यंजन, कुट्टू के पोषक तत्व, इसकी खेती से लाभ आदि बातों की जानकारी दे रहे हैं।
कुट्टू एक फूल वाला पौधा है। इसे कई नामों से जाना जाता है। कुट्टू को टाऊ, ओगला, ब्रेश, फाफड, पदयात, बक व्हीट आदि कई नामों से जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान उत्तरी चीन और साइबेरिया को माना जाता है। जबकि रूस में इसकी खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है। यह गेहूं व धान से ज्यादा पौष्टिक होता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन और वसा भूरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके पौधे का हर भाग उपयोगी होता है। इसके तने का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। जबकि फूल और हरी पत्तियों का उपयोग औषधी बनाने में काम में लिया जाता है। इसके फलों से आटा बनाया जाता है जिसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभकारी माना जाता है। भारत में इसकी खेती उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश आदि में की जाती है।
भारत में कुट्टू का आटा व्रत में बहुत प्रयोग किया जाता है। ये नसों को लचकता प्रदान करता है तथा गैंग्रीन के उपचार में प्रयोग में किया जाता है। इसके बीज का इस्तेमाल नूडल, सूप, चाय, ग्लूटिन फ्री-बीयर आदि बनने में होता हे। इसे हरी खाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। कुट्टू की देश में ही नहीं विदेश में भी काफी मांग है। जापान में कुट्टू से बने सोवा नूडल काफी पसंद किए जाते हैं। इसकी पोष्टिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें लाइसिन की मात्रा दूध व अंडे के बराबर होती है। ऐसे में जो लोग दूध या अंडे का सेवन नहीं करते हैं, वे कुट्टू के आटे का सेवन करके दूध और अंडे के बराबर ही पोषक तत्व प्राप्त कर सकते हैं। इसकी बाजार में भाव भी गेहूं, धान जैसे अनाजों से कहीं ज्यादा मिलते हैं, इसकी खेती बहुत लाभकारी है।
कुट्टू की खेती करने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि इसकी खेती का सही तरीका क्या है। इसकी खेती कैसे की जानी चाहिए। इसकी खेती के लिए कैसी जलवायु व मिट्टी होनी चाहिए, इसकी खेती में किस मात्रा में बीज लेने चाहिए, सिंचाई कितनी करनी चाहिए आदि बातों की जानकारी होनी चाहिए तभी इसकी खेती से बेहतर लाभ किसान उठा सकते हैं।
कुट्टू की खेती के लिए ठंडी और नम जलवायु अच्छी रहती है। इसकी बढ़वार के लिए ज्यादा गर्मी की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए इसे अधिकांशत: पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन लवणीय और क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से लेकर 7.5 तक होना चाहिए।
कुट्टू की खेती का सही समय सितंबर से अक्टूबर का महीना अच्छा रहता है। क्योंकि इस महिने में न तो इतनी गर्मी होती है और नहीं सर्दी, यह मौसम इसकी खेती के लिए अच्छा रहता है। भारत में इसकी खेती के लिए बुवाई रबी सीजन में 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के मध्य की जाती है।
कुट्टू की खेती के लिए हिमप्रिया, हिमगिरी, संगला-1 किस्में प्रमुख हैं। इन किस्मों को हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड में बोया जाता है। इन किस्मों से अधिकतम 13 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
कुट्टू की खेती के लिए प्रति हैक्टेयर 75 से लेकर 80 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। कुट्टू के बीजों को छिड़काव विधि से बोया जाता है। बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। वहीं पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर रखी जाती हैं। बुवाई के बाद इसकी हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।
कुट्टू की फसल जब 70 से 80 प्रतिशत पक जाए तब उसे काट लिया जाता है। ऐसा इसलिए की इसकी फसल में बीजों के झड़ने के की समस्या अधिक रहती है। कटाई के बाद फसल को सुखाया जाता है और फिर इसकी गहाई की जाती है। इसे पैकिंग करके बेचा जाता है। कुट्टू की प्रति हैक्टेयर औसत पैदावार 11 से लेकर 13 क्विंटल प्राप्त की जा सकती है।
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