कैप्टन ट्रैक्टर्स ने 1994 में भारत में अपने ट्रैक्टरों की असेंबली शुरू की। जो भारतीय कॉर्पोरेट जगत के लिए एक सुनहरे युग की शुरुआत बन गई। कैप्टन के 7 मॉडल 15 से 26 एचपी श्रेणी में उपलब्ध है। कैप्टन ट्रैक्टर की कीमत 2.85 लाख रुपए* से शुरू होती है। सबसे मंहगा ट्रैक्टर कैप्टन 280 डीआई 4 डब्ल्यूडी है जिसकी कीमत 4.50 लाख रुपए है। सबसे लोकप्रिय मॉडल कैप्टन 120 डीआई ४डब्ल्यूडी और कैप्टन 250 डीआई है।
भारत में कैप्टन ट्रैक्टर | ट्रैक्टर एच.पी. | ट्रैक्टर मूल्य |
कैप्टन 200 डीआई | 20 HP | Rs. 3.50 Lakh |
कैप्टन 273 डीआई | 25 HP | Rs. 4.89 Lakh |
कैप्टन 200 डीआई-4WD | 20 HP | Rs. 3.65 Lakh |
कैप्टन 250 डीआई | 25 HP | Rs. 3.75 Lakh |
कैप्टन 250 डीआई-4WD | 25 HP | Rs. 3.95 Lakh |
कैप्टन 280 4WD | 28 HP | Rs. 4.30 Lakh - 4.50 Lakh |
कैप्टन 280 डीआई | 28 HP | Rs. 4.35 Lakh |
डेटा अंतिम बार अपडेट किया : Mar 03, 2021 |
कैप्टन ट्रैक्टर्स ने 1994 में भारत में अपने ट्रैक्टरों का उत्पादन शुरू किया, जो कंपनी के लिए एक सुनहरे युग की शुरुआत बन गया। भारत में छोटा ट्रैक्टर के रूप में जाना जाता है, कप्तान देश के किसानों के लिए सबसे अच्छा कॉम्पैक्ट और मिनी ट्रैक्टर बनाता है। जी.टी. पटेल और एम.टी. पटेल कैप्टन ट्रैक्टर्स के संस्थापक हैं, जिन्होंने एक नए विचार के साथ शुरुआत की और भारत की पहली 100% धात्विक मिनी ट्रैक्टर कंपनी स्थापित की। अपनी मेहनत और लगन से कैप्टन ट्रैक्टर्स ने हर किसान का विश्वास जीता।
मध्यम खेत उपयोग और बागों के लिए बिल्कुल सही, कैप्टन जनता की जरूरतों के अनुसार मशीनों का उत्पादन करने वाला एक प्रमुख ब्रांड बन गया है। कैप्टन के घर के ट्रैक्टर भारतीय क्षेत्रों में अधिकांश कृषि उपयोगों के लिए एकदम सही हैं। कैप्टन ट्रैक्टरों का उत्पादन करते हैं जो विशेष रूप से स्मॉल एचपी ट्रैक्टर सेगमेंट में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं। कप्तान कभी कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर्स के नाम पर ट्रैक्टर के विनिर्देशों के साथ समझौता नहीं करता है और ट्रैक्टर की कीमतें भी किसान आबादी के सामान्य लोगों के अनुरूप होती हैं। ट्रैक्टर जंक्शन में आपको भारत में कप्तान ट्रैक्टर 20 hp की कीमतों और पूर्ण विनिर्देशों के बारे में सभी जानकारी मिलती है।
क्यों कप्तान सर्वश्रेष्ठ ट्रैक्टर कंपनी है? | खासियत
कैप्टन ट्रैक्टर भारत में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले मिनी ट्रैक्टर हैं और छोटे किसानों के लिए निर्मित होते हैं। कप्तान भारत में अपने कॉम्पैक्ट ट्रैक्टरों के लिए लोकप्रिय है। कैप्शन ट्रैक्टर ग्राहक की जरूरतों को पूरा करने के लिए ईमानदारी, ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ प्रदर्शन करता है।
कैप्टन ट्रैक्टर लास्ट ईयर सेल्स रिपोर्ट
फरवरी 2020 और फरवरी 2020 में 409 यूनिट्स की बिक्री हुई, जो स्पष्ट रूप से 1.14% कैप्टन ट्रेक्टर की बिक्री फरवरी 2020 की तुलना में फरवरी 2020 में बढ़ी है।
कैप्टन ट्रैक्टर डीलरशिप
कैप्टन ट्रैक्टर का पूरे देश में डीलरों का व्यापक प्रसार वितरण नेटवर्क है।
ट्रेक्टरजंक्शन पर, अपने पास एक प्रमाणित कैप्टेक्टर डीलर खोजें!
कैप्टन ट्रैक्टर सर्विस सेंटर
कैप्टन ट्रैक्टर सेवा केंद्र का पता लगाएं, सेवा केंद्र पर जाएँ।
कैप्टन ट्रैक्टर के लिए ट्रैक्टर जंक्शन क्यों
ट्रैक्टर जंक्शन आपको प्रदान करता है, कप्तान नए ट्रैक्टर, कप्तान आगामी ट्रैक्टर, कप्तान लोकप्रिय ट्रैक्टर, कप्तान मिनी ट्रैक्टर, कप्तान ने ट्रैक्टर की कीमत, विनिर्देश, समीक्षा, चित्र, ट्रैक्टर समाचार, आदि का उपयोग किया है।
तो, अगर आप एक कैप्टन ट्रैक्टर खरीदना चाहते हैं तो ट्रेक्टर जंक्शन इसके लिए सही प्लेटफार्म है।
कैप्टन ट्रैक्टर के बारे में अद्यतन जानकारी प्राप्त करने के लिए ट्रैक्टर जंक्शन मोबाइल ऐप डाउनलोड करें।
CEAT SPECIALTY launches Farm tyre range "VARDHAN"
"New Tyre Range Launched Digitally in India" Mumbai: CEAT Specialty (a division of CEAT Ltd) launched its new range of farm tyres “Vardhan”, on 25th September. The launch event premiered virtually. This was one of the first digital launch event by a tyre manufacturer in India. Vardhan tyres will be available in 12.4-28, 13.6-28, 14.9-28 & 16.9-28 sizes in tractor rear and 6.00-16, 6.50-20 and 7.50-16 sizes in tractor front. Mr. Vijay Gambhire, Chief Executive of CEAT Specialty said “With Vardhan, we have an opportunity to serve our customers with an international standard product. Vardhan is designed to perform as reliably in haulage applications as in core farming activities. We are confident that our discerning customers will find in Vardhan a solid, dependable performer they eagerly waited for.” Vardhan rear’s deep lugs ensure less slippage and provide long tyre life. Its unique lug deflectors provide puncture protection, reducing the downtime. The Mud ejectors ensure excellent self-cleaning, and its wide tread design leads to larger footprint thereby increasing overall load carrying capacity of the tyre. Vardhan front is a 4 rib tyre, leading to better load distribution. Its robust shoulder blocks provide excellent traction and grip, the high depth of the ribs will provide long tyre life. About CEAT Specialty (https://www.ceatspecialty.com/in/): CEAT Specialty is a division of CEAT Ltd, focussing on off high way tyres. CEAT Specialty offers a wide range of OHT tyres for various segments like farming, mining, industrial and construction equipment. About RPG Enterprises (www.rpggroup.com): RPG Enterprises, established in 1979, is one of India’s fastest-growing business groups with a turnover of US$ 4 Billion. The group has diverse business interests in the areas of Infrastructure, Tyres, Pharma, IT and Specialty as well as in emerging innovation led technology businesses. For further information please contact: Vinay Sharma Radiance Public Relations Mob: 9219506887 E-mail: [email protected]
मूंग की खेती : मूंग की बुवाई का आया समय, ऐसे करें तैयारी
जानें, मूंग की बुवाई का सही तरीका और इन बातों का रखें ध्यान? दलहनी फसलों में मूंग का अपना एक विशिष्ट स्थान है। मूंग की फसल को खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। मूंग में काफी मात्रा में प्रोटीन पाए जाने से हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ ही खेत की मिट्टी के लिए भी बहुत फामदेमंद है। मूंग की फसल से फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है। मूंग की खेती करने से मृदा में उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। यदि सही तरीके से इसकी खेती जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 मूंग में पाए जाने वाले पोषक तत्व मूंग में प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसके अलावा मूंग की दाल में मैग्नीज, पोटैशियम, मैग्नीशियम, फॉलेट, कॉपर, जिंक और विटामिन्स जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। इस दाल के सेवन से शरीर के लिए जरुरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। बता दें कि इस दाल का पानी पीकर आप कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। यह दाल डेंगू जैसी खतरनाक बीमारी से भी बचाव करती है। भारत में कहां-कहां होती है मूंग की खेती मूंग का अधिक उत्पादन करने वाले देशों में भारत, रूस, मध्य अमेरिका, इटली, फ्रांस और उत्तर अमेरिका और बेल्जियम आदि हैं। वहीं भारत में इसका ज्यादातर उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक के अलावा उतरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है। मूंग की अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में मूंग की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में के.-851, पूसा 105, पी.डी.एम. 44, एम.एल.-131, जवाहर मूंग 721, पी.एस.-16, एच.यू.एम.-1, किस्म टार्म 1, टी.जे.एम.-3 आती हैं। इसके अलावा निजी कंपनियों की किस्मों में शक्तिवर्धक : विराट गोल्ड, अभय, एसव्हीएम 98, एसव्हीएम 88, एसव्हीएम 66 आदि शामिल हैं। भूमि की तैयारी दो या तीन बार हल या बखर से जुताई कर खेत अच्छी तरह तैयार करना चाहिए तथा पाटा चलाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए। दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफॉस चूर्ण 20 किग्रा प्रति हेक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए। बीज की मात्रा उन्नत किस्म का बीज बोने से अधिक पैदावार मिलती है। प्रति हेक्टर 25-30 किलो बीज की बुवाई के लिए पर्याप्त होगा ताकि पौधों की संख्या 4 से 4.5 लाख तक हो सके। बीजोपचार बीजों को बोने से पहले बीज फफूंद नाशक दवा तथा कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए। फफूंद नाशक दवा से उपचारित करने के लिए प्रति किलोग्राम बीज कार्बेन्डाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा पयाप्त होती है। इसके बाद राइजोबियम तथा पी.एस.बी. कल्चर 10 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज के मान से उपचारित कर तुरंत बुवाई कर देनी चाहिए। बुवाई का समय व तरीका मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए। देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक की जा सकती है। सीडड्रिल की सहायता से कतारों में बुवाई करें। कतारों के बीच की दूरी 30-45 से.मी. रखते हुए 3 से 5 से.मी. गहराई पर बीज बोना चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना उचित रहता है। ध्यान रहे मूंग के बीज उत्पादन का प्रक्षेत्र किसी दूसरी प्रजाति के मूंग के प्रक्षेत्र से 3 मीटर दूर होना चाहिए। खाद एवं उरर्वक प्रति हेक्टर 20 किलोग्राम नत्रजन तथा 50 किलो ग्राम स्फुर बीज को बोते समय उपयोग में लायें इस हेतु प्रति हेक्टर एक क्विंटल डायअमोनियम फास्फेट डी.ए.पी. खाद दिया जा सकता है। पोटाश एवं गंधक की कमी वाले क्षेत्र में 20 किग्रा. प्रति हेक्टर पोटाश एवं गंधक देना लाभकारी होता है। निंदाई-गुड़ाई जब पौधा 6 इंच का हो तो एक बार डोरा चलाकर निंदाई करें। आवश्यकतानुसार 1-2 निंदाई करना चाहिए। कब-कब करें सिंचाई प्राय: खरीफ में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती परंतु जायद/ग्रीष्मकालीन फसल में 10-15 दिन के अंतर पर 4-5 सिंचाइयां की जानी चाहिये। सिंचाई के लिये उन्नत तकनीकों फब्बारा या रेनगन का प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण फसल की बुवाई के एक या दो दिन बाद तक पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए फसल जब 25 -30 दिन की हो जाए तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिए या इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मी. ली. मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कर देना चाहिए। फसल चक्र अपनाएं अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए मूंग की खेती में फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। वर्षा आधारित खेती के लिए मूंग-बाजारा और सिंचित क्षेत्रों में मूंग- गेहूं/जीरा/सरसों फसल चक्र अपनाना चाहिए। सिंचित खेतों में मूंग की जायद में फसल लेने के लिए धान- गेहूं फसल चक्र में उपयुक्त फसल के रूप में पाई गई है। जिससे मृदा में हरी खाद के रूप में उर्वराशक्ति बढ़ाने में सहायता मिलती है। कब करें फसल कटाई जब फलियों का रंग हरे से भूरा होने लगे तब फलियों की तुड़ाई तथा एक साथ पकने वाली प्रजातियों में कटाई कर लेना चाहिये तथा शेष फसल की मिट्टी में जुताई करने से हरी खाद की पूर्ति भी होती है। फलियों के अधिक पकने पर तुड़ाई करने पर फलियों के चटकने का डर रहता है जिससे कम उत्पादन प्राप्त होता है। उपज एवं कमाई मूंग की 7 -8 कुंतल प्रति हेक्टयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है। एक हेक्टयर क्षेत्र में मूंग की खेती करने के लिए 18-20 हजार रुपए का खर्च आ जाता है। मूंग का भाव 40 रुपए प्रति किलो होने पर 12000- से 14000 रुपए प्रति हेक्टयर शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य : इस बार यह 6 रबी फसलें समर्थन मूल्य पर खरीदेगी सरकार
एमएसपी पर खरीद : राज्य सरकार का अधिक से अधिक फसल खरीदने का प्रयास, तैयारियां जारी रबी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को लेकर राज्य सरकारों की ओर से तैयारियां शुरू कर दी गईं हैं। इस बार राज्य सरकारें किसानों से रबी फसलों की अधिक से अधिक खरीद करने के मूड में है ताकि किसानों को लाभ मिल सके। इसके लिए राज्य स्तर पर तैयारियां चल रही हैं। इस वर्ष जहां मध्यप्रदेश में किसानों से गेहूं, चना, सरसों एवं मसूर 4 प्रमुख रबी फसलें खरीदी जाएंगी। वहीं हरियाणा सरकार इस रबी सीजन की 6 फसलें किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदेगी। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 जौ सहित इन 6 रबी फसलों की होगी समर्थन मूल्य पर खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रबी फसलों की खरीद को लेकर हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि प्रदेश सरकार फसल खरीद सीजन को लेकर पूरी तरह तैयार है और पहली बार जौ की फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदा जाएगा। राज्य में आगामी सीजन में पहली बार छह फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जाएगी, जिनमें गेहूं, सरसों, धान व सूरजमुखी के साथ-साथ चना एवं जौ शामिल हैं। इस वर्ष रबी फसलों के तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) केंद्र सरकार की ओर हर साल बुआई के पूर्व ही फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर दिए जाते हैं। इस वर्ष भी केंद्र सरकार ने रबी सीजन की मुख्य 6 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिए हैं जो इस प्रकार है- गेहूं-1975 रुपए प्रति क्विंटल जौ- 1600 रुपए प्रति क्विंटल चना- 5100 रुपए प्रति क्विंटल मसूर- 5100 रुपए प्रति क्विंटल रेपसीड एवं सरसों- 4650 रुपए प्रति क्विंटल कुसुम- 5327 रुपए प्रति क्विंटल। यह भी पढ़ें : एग्रीकल्चर मशीनरी : ट्रैक्टर, पॉवर टिलर व अन्य कृषि यंत्रों पर सब्सिडी, करें आवेदन मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा अनिवार्य जो किसान यह 6 फसलें समर्थन मूल्य पर बेचना चाहते हैं उन किसानों को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर पंजीकरण करवाना अनिवार्य होगा। पंजीकरण के अभाव में किसानों से फसल नहीं खरीदी जाएगी। हरियाणा के किसान ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर रबी फसलों (गेहूं, सरसों, जौ, सूरजमुखी, चना एवं धान) के पंजीकरण करवा सकते हैं। बता दें कि इस वर्ष पंजीकरण के लिए ‘परिवार पहचान-पत्र’का होना अनिवार्य कर दिया है। किसानों अपने कृषि उत्पादों को मंडियों में बेचने एवं कृषि या बागवानी विभाग से संबंधित योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपनी फसलों का पंजीकरण ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’पोर्टल https://fasal.haryana.gov.in में करवा सकते है। यह पंजीकरण कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से भी किया जा सकता है। 48 घंटे के अंदर होगा फसल खरीद का भुगतान इस बार राज्य की कृषि उपज मंडियों में किसानों की फसल खरीद के लिए ऐसी व्यवस्था की जा रही है जिससे किसानों को जल्द भुगतान किया जा सके। इसके लिए सरकार ने 48 घंटे में किसानों के खातों में फसल का भुगतान करने का निर्णय लिया है। इसके तहत फसल बिक्री की राशि किसानों के खाते में राशि डाली जाएगी। नियमानुसार जैसे ही आढ़ती किसानों का जे-फॉर्म काटेगा, उसके 48 घंटे के अंदर किसानों को फसल बिक्री की राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। मध्यप्रदेश में 21 लाख किसानों ने फसल बेचने के लिए कराया पंजीकरण रबी विपणन वर्ष 2021-22 में समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने के लिए 21 लाख 6 हजार किसानों ने ई-उपार्जन पोर्टल पर पंजीयन कराया गया है जो कि विगत वर्ष की तुलना में एक लाख 59 हजार अधिक है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्री बिसाहूलाल सिंह और सहकारिता मंत्री डॉ. अरविन्द भदौरिया ने अधिकारियों के साथ रबी उपज की समीक्षा की। इस वर्ष 145 लाख मेट्रिक टन भंडारण का लक्ष्य मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार श्री सिंह ने बताया कि इस वर्ष 125 लाख मेट्रिक टन गेहूं, 20 लाख मेट्रिक टन दलहन और तिलहन के भंडारण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है अनाज के भंडारण, परिवहन, बारदाना और वित्तीय व्यवस्था की तैयारी विभाग द्वारा की जा रही है। उन्होंने बताया कि दलहन एवं तिलहन का उपार्जन प्राथमिकता से गोदाम स्तरीय केन्द्रों पर किया जाएगा, जिससे शीघ्र परिवहन एवं भंडारण कराया जा सके। यह भी पढ़ें : तेज पत्ता की खेती : तेज पत्ता की खेती से पाएं कम लागत में बड़ा मुनाफा 15 मई तक होगा उपार्जन सहकारिता डॉ. अरविंद भदौरिया ने कहा कि पंजीकृत किसानों से 15 मई तक उपार्जन पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। डॉ. भदौरिया ने निर्देश दिए कि उपार्जन केन्द्रों की संख्या पूर्ववत रहेगी। उपार्जन केन्द्रों की संख्या में कमी नहीं की जाएगी। समिति को किसी कारणवश बंद करना पड़ा तो उसकी जगह एसएचजी, एफपीयू, एफपीसी द्वारा गेहूं उपार्जन कराया जाएगा। प्रदेश के 3518 केन्द्रों पर किया जा रहा है किसान पंजीयन का कार्य प्रमुख सचिव खाद्य फैज़ अहमद किदवई ने मीडिया को बताया कि किसान पंजीयन का कार्य प्रदेश के 3518 केंद्रों पर किया जा रहा है। इसके अलावा गिरदावरी किसान एप, कॉमन सर्विस सेंटर, कियोस्क पर भी किसानों को पंजीयन की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। पिछले वर्ष 45 लाख 7 हजार हेक्टेयर रकबा गेहूं के लिए पंजीकृत हुआ था। इस वर्ष अभी तक 42 लाख 87 हजार हेक्टेयर रकबा पंजीकृत हो चुका है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
गेहूं की खेती : इन 9 किस्मों की बेहतरीन उपज, वैज्ञानिकों ने जताई खुशी
जानें, गेहूं की इन किस्मों की विशेषताएं और लाभ? खाद्यान्न में गेहूं का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसे भारत में प्राय: सभी जगह भोजन में शामिल किया जाता है। गेहूं की खेती में उत्पादन को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिक की ओर से अनुसंधान और प्रयोग किए जाते हैं। बेहतर परिणाम मिलने के बाद किसानों को इन किस्मों की खेती करने की सलाह दी जाती है। पिछले दिनों भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इंदौर के वैज्ञानिकों द्वारा धार जिले के नालछा ब्लॉक के गांव भीलबरखेड़ा, कागदीपुरा और भड़किया में गेहूं की 9 किस्मों के प्रदर्शन प्लाटों का अवलोकन किया। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की इन किस्मों के बेहतर परिणाम पर संतोष जताया वैज्ञानिक ए.के. सिंह ने मीडिया को बताया कि ग्राम भीलबरखेड़ा, कागदीपुरा और भड़किया में गेहूं की 9 किस्मों के 11 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगाए गए 33 प्रदर्शन प्लाटों का केंद्राध्यक्ष एस.वी.साई प्रसाद एवं वैज्ञानिक डॉ. के. सी.शर्मा, डॉ.टी.एल. प्रकाश, डॉ.डी.के. वर्मा, डॉ. दिव्या अंबाटी ने अवलोकन किया। यहां पूसा तेजस, पूसा मंगल, पूसा अनमोल, नई किस्म पूसा अहिल्या और पूसा वाणी, मालवी गेहूं एच.आई.-8802, कम पानी वाली 8805 के अलावा रोटी वाली पूसा उजाला शामिल है। बता दें कि गेहूं की ये सभी किस्में उत्पादन की दृष्टि से बेहतर उपज प्रदान करने वाली किस्में हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की इन किस्मों के बेहतर परिणाम पर संतोष जताया हैं। आइए जानते हैं गेहूं की इन किस्मों की विशेषताएं और लाभ 1. पूजा तेजस मध्यप्रदेश के किसानों के लिए गेहूं की पूसा तेजस किस्म किसी वरदान से कम नहीं है। गेहूं की यह किस्म दो साल पहले ही किसानों के बीच आई है। हालांकि इसे इंदौर कृषि अनुसंधान केन्द्र ने 2016 में विकसित किया था। इस किस्म को पूसा तेजस एचआई 8759 के नाम से भी जाना जाता है। गेहूं की यह प्रजाति आयरन, प्रोटीन, विटामिन-ए और जिंक जैसे पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत मानी जाती है। यह किस्म रोटी के साथ नूडल्स, पास्ता और मैकरॉनी जैसे खाद्य पदार्थ बनाने के लिए उत्तम हैं। वहीं इस किस्म में गेरुआ रोग, करनाल बंट रोग और खिरने की समस्या नहीं आती है। इसकी पत्ती चौड़ी, मध्यमवर्गीय, चिकनी एवं सीधी होती है। गेंहू की यह किस्म 115-125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसका दाना कड़ा और चमकदार होता है। एक हजार दानों का भार से 50 से 60 ग्राम होता है। एक हेक्टेयर से इसकी 65 से 75 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है। 2. पूसा मंगल इसे एचआई 8713 के नाम से जाना जाता है। यह एक हरफनमौला किस्म है जो रोग प्रेतिरोधक होती है। हालांकि इसका कुछ दाना हल्का और कुछ रंग का होता है जिस वजह से यह भद्दा दिखता है। लेकिन इसके पोषक तत्वों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। इसके पौधे की लंबाई 80 से 85 सेंटीमीटर होती है। 120 से 125 दिन में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर इससे 50 से 60 क्विंटल का उत्पादन होता है। यह भी पढ़ें : तेज पत्ता की खेती : तेज पत्ता की खेती से पाएं कम लागत में बड़ा मुनाफा 3. पूसा अनमोल यह भी मालवी कठिया गेहूं की उन्नत प्रजाति है जिसे 2014 में विकसित किया गया है। इसे एचआई 8737 के नाम से भी जाना जाता है। इसका दाना गेहूं की मालव राज किस्म की तरह होता है। जो काफी बड़ा होता है। गेहूं की ये किस्म 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्में में भी गिरने खिरने की समस्या नहीं आती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर इससे 60-70 क्विंटल का उत्पादन लिया जा सकता है। 4. पूसा अहिल्या (एच.आई .1634) इस प्रजाति को मध्य भारत के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र म.प्र., छ.ग., गुजरात ,झांसी एवं उदयपुर डिवीजन के लिए देर से बुवाई सिंचित अवस्था में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए चिन्हित किया गया है। पूसा अहिल्या की औसत उत्पादन क्षमता 51.6 क्विंटल /हेक्टेयर और अधिकतम उत्पादन क्षमता 70.6 क्विंटल /हेक्टेयर है। यह प्रजाति काले /भूरे रतुआ रोग अवरोधी होने के साथ ही इसमें करनाल बंट रोग की प्रतिरोधक क्षमता भी है। इसका दाना बड़ा, कठोर , चमकदार और प्रोटीनयुक्त है। चपाती बनाने के लिए भी गुणवत्ता से परिपूर्ण है। 5. पूसा वानी (एच.आई .1633 ) इसे प्रायद्वीपी क्षेत्र (महाराष्ट्र और कर्नाटक) में देर से बुवाई और सिंचित अवस्था में उत्पादन हेतु चिन्हित किया गया है। पूसा वानी की औसत उत्पादन क्षमता 41.7 क्विंटल /हेक्टेयर और अधिकतम उत्पादन क्षमता 65 .8 क्विंटल /हेक्टेयर है। यह किस्म प्रचलित एच.डी. 2992 से 6 .4 प्रतिशत अधिक उपज देती है। यह प्रजाति काले और भूरे रतुआ रोग से पूर्ण अवरोधी और है और इसमें कीटों का प्रकोप भी न के बराबर होता है। इसकी चपाती की गुणवत्ता इसलिए उत्तम है, क्योंकि इसमें प्रोटीन 12.4 प्रतिशत, लौह तत्व 41 .6 पीपीएम और जिंक तत्व 41.1 पीपीएम होकर पोषक तत्वों से भरपूर है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि दोनों प्रजातियां अपनी गुणवत्ता और उच्च उत्पादन क्षमता के कारण किसानों के लिए वरदान साबित होगी और एक अच्छा विकल्प बनेगी। 6. पूसा उजाला भारतीय अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के इंदौर स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने गेहूं की इस नई प्रजाति पूसा उजाला की पहचान ऐसे प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिए की गई है जहां सिंचाई की सीमित सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। इस प्रजाति से एक-दो सिंचाई में 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है। इसमें प्रोटीन, आयरन और जिंक की अच्छी मात्रा होती है। यह भी पढ़ें : किसानों को 50 प्रतिशत तक सब्सिडी पर दिए जाएंगे कंबाइन हार्वेस्टर 7-8-9. एचआई-8802 और 8805 यह दोनों ही प्रजातियां मालवी ड्यूरम गेहूं की हैं जो मध्यप्रदेश के लिए ही अनुशंसित की गई हैं। बताया जाता है कि मालवी गेहूं की प्रजातियां 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की हैं जो सामान्य तौर पर चार-पांच पानी में पैदा होने वाली हैं। इसके अलावा प्रदर्शन में एक गेहूं की अन्य नई किस्म को भी शामिल किया गया है जिसके बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
तेज पत्ता की खेती : तेज पत्ता की खेती से पाएं कम लागत में बड़ा मुनाफा
जानें, तेज पत्ता की खेती का सही तरीका और उससे होने वाले लाभ? तेज पत्ता की बढ़ती बाजार मांग के कारण तेज पत्ता की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। तेज पत्ता की खेती करना बेहद ही सरल होने के साथ ही काफी सस्ता भी है। इसकी खेती से किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। तेज पत्ता कई काम आता है। इसका हमारी खाने में उपयोग होने के साथ ही हमारी सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसके अलावा तेज पत्ता का इस्तेमाल कई आध्यात्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। बहरहाल अभी बात हम इसकी खेती की करेंगे कि किस प्रकार इसकी खेती करके हमारे किसान भाई अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि कम लागत में तेज पत्ता की खेती कैसे की जाएं। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 तेज पत्ता की खेती पर सब्सिडी और लाभ इसकी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से 30 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। अब बात करें इससे होने वाली आमदनी की तो तेजपत्ते के एक पौधे से करीब 3000 से 5000 रुपए तक प्रति वर्ष तथा इसी तरह के 25 पौधों से 75,000 से 1,25,000 रुपए प्रति वर्ष कमाई की जा सकती है। क्या है तेज पत्ता तेज पत्ता 7.5 मीटर ऊंचा छोटे से मध्यमाकार का सदाहरित वृक्ष होता है। इसकी तने की छाल का रंग गहरा भूरे रंग का अथवा कृष्णाभ, थोड़ी खुरदरी, दालचीनी की अपेक्षा कम सुगन्धित तथा स्वादरहित, बाहर का भाग हल्का गुलाबी अथवा लाल भूरे रंग की सफेद धारियों से युक्त होती है। इसके पत्ते सरल, विपरीत अथवा एकांतर, 10-12.5 सेमी लम्बे, विभिन्न चौड़ाई के, अण्डाकार, चमकीले, नोंकदार, 3 शिराओं से युक्त सुगन्धित एवं स्वाद में तीखे होते हैं। इसके नये पत्ते कुछ गुलाबी रंग के होते हैं। इसके फूल हल्के पीले रंग के होते हैं। इसके फल अंडाकार, मांसल, लाल रंग के, 13 मिमी लंबे होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से फरवरी तक होता है। तेज पत्ता में पाएं जाने वाले पोषक तत्व तेज पत्ता में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की बात करें तो प्रति 100 ग्राम तेज पत्ता में पानी-5.44 ग्राम, ऊर्जा-313 कैलोरी, प्रोटीन-7.61 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट-74.97 ग्राम, फैट-8.36 ग्राम, फाइबर-26.3 ग्राम, कैल्शियम-834 मिलीग्राम, आयरन-43.00 मिलीग्राम, विटामिन-सी 46.5 मिलीग्राम मात्रा पाई जाती है। तेज पत्ता के खाने में उपयोग तेज पत्ता का इस्तेमाल विशेषकर अमेरिका व यूरोप, भारत सहित कई देशों में खाने में किया जाता है। उनका इस्तेमाल सूप, दमपुख्त, मांस, समुद्री भोजन और सब्जियों के व्यंजन में किया जाता है। इन पत्तियों को अक्सर इनके पूरे आकार में इस्तेमाल किया जाता है और परोसने से पहले हटा दिया जाता है। भारतीय और पाकिस्तान में इसका उपयोग अक्सर बिरयानी और अन्य मसालेदार व्यंजनों में तथा गरम मसाले के रूप में रसोई में रोज इस्तेमाल किया जाता है। सेहत के लिए लाभकारी है तेज पत्ता तेज पत्ता में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के कारण ही इसका उपयोग कई रोगों में दवा के तौर पर किया जाता है। तेज पत्ता त्वचा और बालों के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसमें पाए जाने वाले एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक उद्योग में क्रीम, इत्र और साबुन बनाने में किया जाता है। यह त्वचा को गहराई से साफ कर सकता है, क्योंकि इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण मौजूद होता है। एक अन्य शोध में तेज पत्ते को मुहांसों से पैदा हुई सूजन को कम करने में भी कारगर पाया गया है। तेज पत्ते का उपयोग सेहत व त्वचा के साथ-साथ बालों के लिए भी किया जा सकता है। यह बालों की जड़ों को फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से दूर रख सकता है, क्योंकि यह एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल गुणों से समृद्ध होता है। इन्हीं गुणों के चलते तेज पत्ते से निकले एसेंशियल ऑयल का प्रयोग रूसी और सोरायसिस से बचाने वाले लोशन में किया जाता है। इसके अलावा मधुमेह, कैंसर, सूजन कम करने, दंत रोग, किडनी की समस्या आदि रोगों में इसका दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मक्खियों और तिलचट्टों को खाद्य वस्तुओं से दूर रखने में भी इसका उपयोग किया जाता है। कहां-कहां होती है इसकी खेती इसका ज्यादातर उत्पादन करने वाले देशों में भारत, रूस, मध्य अमेरिका, इटली, फ्रांस और उत्तर अमेरिका और बेल्जियम आदि हैं। वहीं भारत में इसका ज्यादातर उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक के अलावा उतरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है। तेज पत्ता की खेती कैसे करें? वैसे तो तेज पत्ता की खेती सभी प्रकार की भूमि या मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसके लिए 6 से 8 पीएच मान वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। इसकी खेती से पहले भूमि को तैयार करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी की दो से तीन बार अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए। वहीं खेत से खरपतवारों को साफ कर देना चाहिए। इसके बाद जैविक खाद का उपयोग करें। तेज पत्ता के पौधों की रोपाई का तरीका नए पौधों को लेयरिंग, या कलम के द्वारा उगाया जाता है, क्योंकि बीज से उगाना मुश्किल हो सकता है। बे पेड़ को बीज से उगाना मुश्किल होता है, जिसका आंशिक कारण है बीज का कम अंकुरण दर और लम्बी अंकुरण अवधि. फली हटाये हुए ताज़े बीज का अंकुरण दर आमतौर पर 40 प्रतिशत होता है, जबकि सूखे बीज और/या फली सहित बीज का अंकुरण दर और भी कम होता है। इसके अलावा, बे लॉरेल के बीज की अंकुरण अवधि 50 दिन या उससे अधिक होती है, जो अंकुरित होने से पहले बीज के सड़ जाने के खतरे को बढ़ा देता है। इसे देखते हुए खेत में इसके पौधे का रोपण किया जाना ही सबसे श्रेष्ठ है। इसके पौधों का रोपण करते पौधे से पौधे की दूरी 4 से 6 मीटर रखनी चाहिए। ध्यान रहे कि खेत में पानी की समुचित व्यवस्था हो। इन्हें पाले से भी बचाने की जरूरत होती है। कीटों से बचाव के लिए हर सप्ताह नीम के तेल का छिडक़ाव कर करना चाहिए। तेज पत्ता में कब-कब करें सिंचाई तेज पत्ता में विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई की जानी चाहिए। वहीं बरसात के मौसम में मानसून देरी से आए तो सिंचाई कर सकते हैं वर्ना तो बारिश का पानी ही इसके लिए पर्याप्त है। सर्दियों में इसे पाले से बचाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए आप आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई कर सकते हैं। तेज पत्ता की कटाई करीब 6 वर्ष में इसका पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसकी पत्तियों को काटकर छाया में सुखाना चाहिए। अगर तेल निकालने के लिए इसकी खेती कर रहे हैं तो आसवन यंत्र का प्रयोग कर सकते हैं। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
राजस्थान बजट 2021-22 : बजट में किसानों के लिए कई घोषणाएं, मिली ये सौंगाते
जानें, बजट में किसानों को क्या-क्या मिला ? राजस्थान की गहलोत सरकार ने 24 फरवरी को राज्य का वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए पहला पेपरलेस बजट पेश किया। इस बार वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 2 लाख 50 हजार 747 करोड़ का बजट पेश किया गया है जो पिछले साल के बजट से 25 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। पिछले साल के लिए 2 लाख 25 हजार 731 करोड़ का बजट पेश किया गया था। इस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा कि सरकार अगले साल से कृषि बजट अलग से पेश करेगी। अब बात करें इस बजट में किसानों के लिए क्या खास है। इस बार राजस्थान सरकार ने किसानों को राहत प्रदान करते हुए कई घोषणाएं भी की है। आइए जानतें हैं इस बार राजस्थान के बजट से किसानों को क्या-क्या मिला है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 कृषक कल्याण योजना की घोषणा, किसानों को होंगे ये लाभ बजट में कृषकों एवं पशुपालकों के लिए कृषक कल्याण योजना की घोषणा की गई। योजना के तहत सरकार 2 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। योजना के तहत प्रदेश के 3 लाख किसानों को नि: शुल्क बायो फर्टीलाइजर्स एवं बायो एजेंट्स दिए जाएंगे, एक लाख किसानों के लिए कम्पोस्ट यूनिट की स्थापना की जाएगी की जाएगी। तीन लाख किसानों को माइक्रोन्यूट्रीएन्ट्स किट उपलब्ध करवाई जाएंगी, पांच लाख किसानों को उन्नत किस्म के बीज वितरित किए जाएंगे, 30 हजार किसानों के लिए डिग्गी व फार्म पौंड बनाएं जाएंगे, 1 लाख 20 हजार किसानों को स्प्रिंकलर व मिनी स्प्रिंकलर दिए जाएंगे, 120 फार्मर प्रोडूसर आर्गेनाईजेशन, एफपीओ का गठन किया जाएगाा, जिसके उत्पादों की क्लीनिंग, ग्राइंडिंग एवं प्रोसेसिंग इकाइयां स्थापित की जाएंगी, ताकि किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त हो सके। राज्य में ड्रिप एवं फव्वारा सिंचाई प्रणाली की उपयोगित को देखते हुए आगामी 3 वर्षों में लगभग 4 लाख 30 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के तहत लाया जाएगा। साथ ही फर्टिगेशन एवं ऑटोमेशन आदि तकनीकों को भी व्यापक प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके लिए सरकार ने 732 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान प्रस्तावित किया है। राजस्थान के इन जिलों में स्थापित किए जाएंगे मिनी फूड पार्क कृषि जिंसो एवं उनके प्रोसेस्ड उत्पादों के व्यवसाय व निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आगामी तीन वर्षों में प्रत्येक जिले में चरणवद्ध रूप से मिनी फूड पार्क स्थापित किए जाएंगे। आगामी वर्ष में पाली, नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, सवाई माधोपुर, करौली, बीकानेर एवं दौसा जिलों में 200 करोड़ रुपये की लागत से मिनी फूड पार्क बनाए जाएंगे। साथ ही मथानिया-जोधपुर में लगभग 100 करोड़ रुपये की लागत से मेगा फूड पार्क की स्थापना की जाएगी। यह भी पढ़ें : मल्चर की पूरी जानकारी : खेत में चलाएं, मिट्टी की उर्वरा शक्ति और बढ़ाए 60 करोड़ रुपए की लागत से होगी ज्योतिबा फूले कृषि उपज मंडी की स्थापना किसानों को उनकी उपज के विपणन व बेहतर मूल्य दिलाये जाने के लिए आंगणवा-जोधपुर में आधुनिक सुविधा युक्त 60 करोड़ रुपए की लागत से ज्योतिबा फूले कृषि उपज मंडी स्थापित की जाएगी। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की सेवाएं देने के उद्देश्य से आगामी 3 वर्षों में 125 करोड़ रुपए की लागत से भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्रों में 1 हजार किसान सेवा केन्द्रों का निर्माण करवाया जाएगा। इसके लिए कृषि पर्यवेक्षकों के 1 हजार नए पद भी सृजित किए जाएंगे। नहीं बढ़ेंगी बिजली की दरें, अब दो माह में आएगा बिजली का बिल 5 सालों के लिए बिजली दरें न बढ़े इसके लिए सरकार ने इस वर्ष 12 हजार 700 करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही हैं तथा आगामी वर्षों के लिए भी 16 हजार करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान प्रस्तावित है। खेती हेतु पर्याप्त बिजली की उपलब्धता, बिजली खरीद में पारदर्शिता व अच्छे वित्तीय प्रबंधन के लिए नई कृषि विद्युत वितरण कंपनी बनाने की घोषणा की गई। ग्रामीण कृषि उपभोक्ताओं जिनक बिल मीटर से आ रहा है उनको सरकार प्रतिमाह 1 हजार रुपए तक व प्रतिवर्ष अधिकतम 12 हजार रुपए तक की राशि दिए जाने की घोषणा की गई। इस पर 1 हजार 450 करोड़ रुपए का वार्षिक व्यय संभावित है। 150 यूनिट तक बिजली के बिल अब प्रत्येक माह के स्थान पर अब 2 माह में भेजे जाएंगे। 50 हजार किसानों को दिए जाएंगे सोलर पंप किसानों को पर्याप्त बिजली मिल सके, इसके लिए 50 हजार किसानों को सोलर पम्प उपलब्ध करवाए जाएंगे इसके आलवा 50 हजार किसानों को कृषि विद्युत कनेक्शन दिए जाएंगे। इसके अलावा कटे हुए कृषि कनेक्शन को फिर से शुरू किया जाएगा। इसके अलावा किसानों के लिए अन्य योजनाओं की घोषणा भी की गई जिसमें राज्य की कृषि उपज मंडी समितियों में सडक़ निर्माण, अन्य आधारभूत संरचना विकसित करने तथा मंडियों को ऑनलाइन करने हेतु आगामी तीन वर्षों में एक हजार करोड़ रुपए की लागत कार्य किए जाएंगे। खेती की लागत कम करने के लिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन खेती की लागत कम करने के लिए प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2019 में जीरो बजट प्राकृतिक खेती योजना शुरू की थी। इसके तहत अब आगामी तीन वर्षों में 60 करोड़ रुपए खर्च कर 15 जिलों के 36 हजार किसानों को लाभान्वित किया जाएगा। कृषि कार्य में समय की बचत तथा खेती की लागत कम करने के उद्देश्य से लघु एवं सीमांत किसानों को उच्च तकनीक के कृषि उपकरण किराए पर उपलब्ध करवाने हेतु पीपीपी मोड पर जीएसएस एवं एनी जगहों पर एक हजार कस्टम हायरिंग केन्द्रों की स्थापना करना प्रस्तावित है। इस पर 20 करोड़ रुपए की लागत संभावित है। वर्ष 2021-22 में 100 पैक्स/ लैम्प्स में प्रत्येक में 100 मीट्रिक तन क्षमता के गोदाम का निर्माण करवाया जाएगा। इस पर 12 करोड़ रुपए का व्यय होगा। किसानों को दिया जाएगा 16 हजार करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त फसली ऋण जो किसान कर्ज माफी से वंचित रह गए हैं, उन किसानों को भी अपने बजट में राहत देने की घोषणा की गई है। ऐसे किसानों की ओर से कॉमर्शियल बैंकों से लिया गया कर्ज वन टाइम सैटलमेंट के जरिए कर्ज माफ किया जाएगा। इस साल 16 हजार करोड़ का ब्याज मुक्त फसली कर्ज दिया जाएगा। 3 लाख नए किसानों को कर्ज मिलेगा, इस योजना में पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी शामिल किया जाएगा। यह भी पढ़ें : पशुपालन के लिए उन्नत नस्ल : मेवाती गाय का पालन कर कमाएं भारी मुनाफा प्रदेश में होगी कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना बीकानेर के राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञानं विश्वविद्यालय तथा शररे कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर-जयपुर में डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। बस्सी-जयपुर में डेयरी व खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय खोला जाना प्रस्तावित है। इसी के साथ ही डूंगरपुर, हिंडौली-बूंदी एवं हनुमानगढ़ में नवीन कृषि महाविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। नए दुग्ध उत्पादन सहकारी संघ का होगा गठन दूध उत्पादन को बढ़ावा देने व उत्पादकों की सहूलियत के लिए राजसमन्द में स्वतंत्र रूप से नए दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ के गठन किया जाएगा। वर्ष 2021-22 के लिए राज्य में नए दुग्ध संकलन रूट प्रारंभ करने के साथ ही जिला दुग्ध संघों में संचालित 1 हजार 500 दुग्ध संकलन केन्द्रों को प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों के रूप में पंजीकृत किया जाना प्रस्तावित है। पशुपालकों को घर बैठे उपलब्ध होगी चिकित्सा सुविधा राज्य की गोशालाओं व पशुपालकों को उनके घर पर ही आपातकालीन पशु चिकित्सा उपलब्ध करवाने के लिए 108 एम्बुलेंस की तर्ज पर 102-मोबाइल वेटेनरी सेवा शुरू की जाएगी जिस पर 48 करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा। पशु चिकित्सा सेवाओं को सुदृढ़ एवं आधुनिक बनाने हेतु प्रत्येक पशु चिकित्सालय में राजस्थान पशु चिकित्सा रिलीफ सोसाइटी का गठन किया जाएगा। नंदी शाला की होगी स्थापना, अब प्रगतिशील पशुपालक भी होंगे सम्मानित प्रत्येक ब्लॉक में नंदी शाला की स्थापना की जाएगी। नंदी शालाओं को 1 करोड़ 50 लाख रुपए के मॉडल के आधार पर बनाया जाना प्रस्तावित है। इस हेतु आगामी वर्ष 111 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाएगी। इसके अलावा प्रदेश के प्रगतिशील किसानों की तरह ही, प्रगतिशील पशुपालकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष राज्यस्तरीय पशुपालक सम्मान समारोह आयोजित किए जाएंगे। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
पशुपालन के लिए उन्नत नस्ल : मेवाती गाय का पालन कर कमाएं भारी मुनाफा
जानें, इस नस्ल की गाय की पहचान और विशेषताएं देश के ग्रामीण इलाकों में कृषि के साथ पशुपालन एक मुख्य व्यवसाय बनता जा रहा है। आम तौर गाय, भैंस, बकरी आदि दुधारू पशुओं पालन किया जाता है। पशुपालन का मुख्य उद्देश्य दुधारू पशुओं का पालन कर उसका दूध बेचकर आमदनी प्राप्त करना है। यदि ये आमदनी अच्छी हो कहना ही क्या? पशुपालन से बेहतर आमदनी प्राप्त करने के लिए जरूरी है पशु की ज्यादा दूध देने वाली नस्ल का चुनाव करना। आज हम गाय की अधिक दूध देने वाली नस्ल के बारें में बात करेंगे। आज बात करते हैं मेवाती नस्ल की गाय के बारें में। यह नस्ल अधिक दूध देने वाली गाय की नस्लों में से एक है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 मेवाती गाय कहां पाई जाती है? यह गाय मेवात क्षेत्र में पाई जाती है। राजस्थान के भरपुर जिले, पश्चिम उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों में अधिक पाई जाती है। गाय पालन में यह नस्ल काफी लाभकारी मानी जाती है। इस नस्ल की गाय को कोसी के नाम से भी जाना जाता है। मेवाती नस्ल लगभग हरियाणा नस्ल के समान होती है। मेवाती गाय की पहचान / विशेषताएं मेवाती नस्ल की गाय की गर्दन सामान्यत: सफेद होती है और कंधे से लेकर दाया भाग गहरे रंग का होता है। इसका चेहरा लंबा व पतला होता है। आंखें उभरी और काले रंग की होती हैं। इसका थूथन चौड़ा और नुकीला होता है। इसके साथ ही ऊपरी होंठ मोटा व लटका होता है तो वहीं नाक का ऊपरी भाग सिकुड़ा होता है। कान लटके हुए होते हैं, लेकिन लंबे नहीं होते हैं। गले के नीचे लटकी हुई झालर ज्यादा ढीली नहीं होती है। शरीर की खाल ढीली होती है, लेकिन लटकी हुई नहीं होती है। पूंछ लंबी, सख्त व लगभग ऐड़ी तक होती है। गाय के थन पूरी तरह विकसित होते हैं। मेवाती बैल शक्तिशाली, खेती में जोतने और परिवहन के लिए उपयोगी होते हैं। कितना दूध देती है मेवाती गाय यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है और एक दिन में दूध की पैदावार 5 किलो होती है। मेवाती नस्ल की गाय की खुराक इस नस्ल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक दें। फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें। ताकि अफारा या बदहजमी ना हो। आवश्यकतानुसार खुराक का प्रबंध नीचे लिखे अनुसार भी किया जा सकता है। खुराक प्रबंध: जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व- उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन होते हैं। गाय खुराक की वस्तुओं का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसे दिया जा रहा खाद्य पदार्थ पोष्टिता से भरपूर हो। इसके लिए पशुपालक खुराक का प्रबंध इस प्रकार बताएं अनुसार कर सकते हैं जिससे पोष्टिकता के साथ ही दूध की मात्रा को भी बढ़ाया जा सके। गाय की खुराक में शामिल करें यह वस्तुएं अनाज और इसके अन्य पदार्थ: मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़वे, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़वे, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि। हरे चारे : बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि। सूखे चारे और आचार : बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार आदि। अन्य रोजाना खुराक भत्ता: मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़वे की खल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि। मेवाती गाय के रहने का प्रबंध शैड की आवश्यकता: अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें। पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए। अधिक दूध देने वाली गाय की अन्य प्रसिद्ध उन्नत नस्लें मेवाती गाय के अलावा और भी ऐसी नस्ल हैं जिनसे अधिक दूध उत्पादन लिया जा सकता है। इनमें गिर, साहीवाल, राठी, हल्लीकर, हरियाणवी, कांकरेज, लाल सिंधी, कृष्णा वैली, नागोरी, खिल्लारी आदि नस्ल की गाय प्रमुख रूप से शामिल हैं। कहां मिल सकती है मेवाती सहित अन्य उन्नत नस्ल की गायें अगर आप मेवाती सहित अन्य उत्तम नस्ल की गाय किफायती कीमत पर खरीदना चाहते हैं तो आज ही ट्रैक्टर जंक्शन पर विजिट करें। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।