प्रकाशित - 28 Feb 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत के किसान पारंपरिक खेती करने के साथ-साथ अन्य मुनाफा वाली फसलों की भी खेती करते है व उससे अच्छा लाभ अर्जित करते हैं। भारत में मसाला फसलों की खेती में जीरे का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। कोई भी सब्जी बनानी हो या दाल या अन्य कोई भोजन बनाना हो सभी में जीरे का प्रयोग खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। बिना जीरे के तड़के के सारे मसालों का स्वाद फीका सा लगता है। जीरे का उपयोग इसको भूनकर छाछ, दही आदि में डालकर खाया जाता है। जीरा न केवल आपके स्वाद को बढ़ता है बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसका सेवन काफी फायदेमंद है। यदि जीरे की खेती उन्नत तरीके से की जाए तो इसका बेहतर उत्पादन प्राप्त करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। वर्तमान में मौसम में तापमान वृद्धि होने के कारण जीरे की फसल पर रोग लगने का खतरा अधिक हो गया है। ऐसे में किसानों को अपनी फसल की विशेष निगरानी करनी होती है।
किसान भाइयों आज ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ जीरे की खेती से संबंधित सभी जानकारियां आपके साथ साझा करेंगे।
वर्तमान समय में मौसम में हो रहे परिवर्तन को देखते हुए जीरे की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगने की संभावना बढ़ गई है। साथ ही किसानों को जीरे की फसल में मौसम के अनुसार निम्नलिखित तरीके से जीरे की फसल का ध्यान रखना जरूरी है-
जीरा मसाले वाली मुख्य बीजीय फसल है। देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा उत्पादन गुजरात व राजस्थान में उगाया जाता है। राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 प्रतिशत जीरा का उत्पादन होता है लेकिन इसकी औसत उपज (380 किलोग्राम प्रति एकड़) व गुजरात में (550 किलोग्राम प्रति एकड़) होता है।
यदि उन्नत तरीके से जीरे की खेती की जाए तो इससे काफी बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता है। जीरे के उत्पादन काल के दौरान बहुत सी बातों का ध्यान रखना होता है। जीरे की बुवाई से लेकर कटाई तक जिन बातों का ध्यान रखा जाता है वे बातें या क्रियाएं इस प्रकार से हैं-
जीरे की खेती के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी करना आवश्यक होता हैं। जीरे की खेती करने के लिए खेत की मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से एक गहरी जुताई करें तथा उसके बाद हैरों की मदद से दो या तीन उथली जुताई करके खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 8 फीट लंबी क्यारी खेत में बनाएं। ध्यान रहे खेत में समान आकार की क्यारियां बनानी चाहिए जिससे जीरे की बुवाई एवं इसकी फसल की सिंचाई करने में आसानी रहती है। इसके बाद 2 किलो बीज प्रति एकड़ की दर से प्रर्याप्त होता हैं। बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिए। जीरे की बुवाई हमेशा 30 सेटीमीटर दूरी से कतारों में ही करें। कतारों में बुवाई करने के लिए आप सीड ड्रिल की सहायता से आसानी से कर सकते है।
जीरे की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले गोबर खाद को खेत में मिलाना लाभदायक रहता है। यदि खेत में कीटों की समस्या है, तो फसल की बुवाई के पहले इनके रोकथाम हेतु व खेत की अंतिम जुताई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला लेना लाभदायक रहता है। ध्यान रहे यदि खरीफ सीजन की फसल में 10 से 15 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डाली गयी हो तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं होती है। अन्यथा 10 से 15 टन प्रति एकड़ के हिसाब से जुताई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में डालकर मिला देनी चाहिए। इसके अलावा जीरे की फसल को 30 किलो नाईट्रोजन 20 किलो फॉस्फोरस एवं 15 किलो पोटाश खाद प्रति एकड़ की दर से दें। फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा एवं आधी नाईट्रोजन की मात्रा बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए। बची हुई नाईट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई करने के बाद देनी।
जीरे की बुवाई करने के तुरन्त बाद इसकी फसल की एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। जीरे की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई अवश्य कर दे जिससे जीरे की बीज का पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए। इसके बाद आवश्यकता हो तो 8 से 10 दिन बाद फसल की फिर हल्की सिंचाई की जा सकती है। इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर जीरे की फसल में दाना बनने की अवस्था तक तीन से चार और सिंचाई करनी चाहिए। ध्यान रहे जीरे की फसल में दाना पकने के समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से इसका बीज हल्का बनता है।
जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से करने के लिए जीरे की बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमिथेलीन खरतपतवार नाशक दवा 1.0 किलो प्रति एकड़ की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल में समान रूप से छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद समय-समय पर जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक बार निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए।
जीरे की फसल से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए यदि एक ही खेत में बार-बार जीरे की खेती नहीं करनी चाहिए। एक ही खेत में बार-बार जीरे की बुवाई करने से उखटा रोग लगने की संभावना अधिक होती है। इसीलिए उचित फसल चक्र को जरूर अपनाना चाहिए। इसके लिए बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं -बाजरा- जीरा आदि जैसी तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाया जा सकता है।
जीरे की फसल में जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाएं तथा फसल पूरी पक जाए तो तुरंत इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों को अच्छी तरह से सुखाकर थ्रेसर से मंढाई करके दाना अलग कर लेना चाहिए। दाने को अच्छे से सुखाकर ही साफ बोरों में इसकी उपज का भंडारण करना चाहिए।
अब बात करें जीरे की खेती से प्राप्त उपज की तो जीरे की औसत उपज 7 से 8 क्विंटल बीज प्रति एकड़ आसानी से प्राप्त हो जाती है। जीरे की खेती करने में लगभग 30 से 35 हजार रुपए प्रति एकड़ का खर्च आता है। जीरे के दाने का बाजार में भाव 120 रुपए से 180 रुपए प्रति किलो भाव रहता है जिससे किसान एक एकड़ खेत में इसकी खेती से 50 से 60 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से मुनाफा कमा सकते हैं।
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