प्रकाशित - 29 Mar 2024
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
आज हर पशु पालक चाहता है कि उसका दुधारू पशु अधिक मात्रा में दूध का उत्पादन करें। इसके लिए वह दुधारू पशुओं की खुराक का भी नियमित तौर पर विशेष ध्यान रखता है। लेकिन कई बार गर्मी के मौसम व पशुओं की अधिक उम्र होने के कारण दूध का उत्पादन घट जाता है। इससे किसान को आर्थिक नुकसान होता है। बाजार में दुधारू पशुओं को चारे की कई वैरायटी आज उपलब्ध है। हर मौसम के हिसाब से अलग-अलग पशु चारा पशुओं को खिलाया जाता है। आज हम आपको कुछ ऐसे पशु चारे के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिसे आप अपने उम्रदराज दुधारू पशु को खिलाएंगे तो वह भी भरपूर मात्रा में दूध देगा। सभी दुधारू पशुओं के लिए ये पौष्टिक आहार हैं तो बने रहें ट्रैक्टर जंक्शन के संग।
गर्मी के मौसम में हर साल दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन घट जाता है। ऐसे में गाय-भैंस का दूध बढ़ाने के लिए उनके आहार पर ध्यान देना चाहिए और हरे चारे व दाने की व्यवस्था करनी चाहिए। यहां आपको टॉप 5 पशु चारा की जानकारी दी जा रही है जिनको गर्मी के मौसम में पशुओं को खिलाकर दूध का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए बरसीम घास का उपयोग काफी फायदेमंद रहता है। बरसीम घाट की कटाई करके भूसे में मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए। तीन किलो भूसे में डेढ़ किलो बरसीम घास मिलानी चाहिए। अगर पशुओं को लगातार बरसीम खिलाते हैं तो उनका दूध उत्पादन बढ़ता है। अपने पोषक तत्वों के कारण बरसीम खाने वाले पशु निरोगी रहते हैं। यह पचाने में आरामदायक होती है। दुधारू पशुओं को बरसीम का चारा जनवरी से अप्रैल महीने तक खिलाना चाहिए।
दुधारू पशुओं को मई से लेकर सितंबर तक लोबिया का चारा खिलाना चाहिए। अगर पशुओं को लोबिया का चारा खिलाया जाता है तो उसे प्रोटिन, कैल्शियम और फास्फोरस भरपूर मिलता है। लोबिया अत्यंत पौष्टिक चारा है और पचने में बहुत आसान है। इसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटिन पाया जाता है। इसके अलावा कैल्शियम और फास्फोरस भी पर्याप्त मात्रा में होता है। लोबिया के शुरुआती ताजी पत्तियों और डंठल में 0% कच्चा प्रोटीन, 3.0% ईथर का अर्क और 26.7% कच्चा फाइबर होता है। कुल पचने योग्य पोषक तत्व जल्दी में 59.0% और लोबिया के परिपक्व चारे में 58.0% होता है।
एजोला एक अति पोषक छोटा जलीय पौधा है। इसे घर में हौदी बनाकर, तालाबों, झीलों, गड्ढों, और धान के खेतों, टबों और ड्रमों में कही भी उगाया जा सकता है। इसमें कैल्शियम, आयरन फास्फोरस, जिंक, कोबाल्ट, मैग्नीजियम जैसे मिनरल भरपूर मात्रा में होते हैं। इसके अलावा विटामिन, प्रोटीन, अमीनों एसिड्स और खनिज तत्व भी पाए जाते हैं। पशुओं को एजोला खिलाने पर दूध के उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि होती है और वसा की मात्रा भी 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। एजोला को चारे में 1:1 (बराबर) अनुपात में मिलाकर पशुओं को प्रतिदिन खिलाना चाहिए। इससे पशु चारे में भी 20 से 25 प्रतिशत की बचत होती है।
ज्वार की चरी को सबसे उत्तम हरा चारा माना जाता है। इसे हरा, सूखा व साइलेज के रूप में पशुओं को खिलाया जाता है। लेकिर ज्वार की हरी चरी को सबसे अच्छा माना गया है। ज्वार में जब 50 प्रतिशत फूल आ जाए, तब उसे पशुओं को खिलाना चाहिए। इस अवस्था में ज्वार खिलाने के बेहतर परिणाम सामने आते हैं। इसके अलावा ज्वार को काटकर धूप में सूखाकर खिलाया जा सकता है। ज्वार का चारा पशुओं के लिए पर्याप्त रूप से पौष्टिक होता है। इसके चारे में औसतन 4.5 से 6.5 प्रतिशत तक क्रूड प्रोटिन होता है। ज्वार का हरा चारा, कड़बी और साइलेज तीनों ही पशुओं के लिए उपयोगी और शक्तिवर्धक होते हैं।
मक्का को रबी, खरीफ और जायद तीनों सीजन में उगाया जा सकता है। इसलिए वर्षभर इसकी उपलब्धता बनी रहती है। गर्मी के मौसम में मक्का का चारा भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है। मक्का यह दुधारू पशुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह ग्रेमिनी कुल की फसल है और इसका चारा इसका चारा पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होता है। जहां ज्वार में एच.सी.एन. की विषाक्तता का खतरा होता है, जबकि मक्का में इसका खतरा नहीं होता है। जिसे वृद्धि की किसी भी अवस्था में पशुओं को बिना किसी जोखिम के खिलाया जा सकता है। इसके चारे को साइलेज के रूप में संरक्षित करके चारे की कमी के समय भी पशुओं को खिलाया जा सकता है।
खली के रूप में सरसों और लाही, तिल, मूंगफली, अलसी तथा बिनौले आदि को खिलाने से दुधारू पशुओं के दूध की मात्रा एवं पौष्टिकता में वृद्धि होती है। चने का दाना और चूनी मिली हुई भूसी, अरहर, मूंग और मसूर की चूनी भूसी को मिलाकर खिलाना चाहिए। इन सभी में प्रोटीन प्रधान तत्व अत्यधिक होते हैं। भूसी में फास्फोरस का काफी अंश होता है जो दूध की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सहायक है।
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