प्रकाशित - 20 Aug 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
मटर की खेती, ज्यादा लाभ देने वाली और कई उपयोग में आने वाली खेती में से एक है। क्योंकि मटर का उपयोग सूखे दानों और अन्य जरूरी कंज्यूम किए जाने वाले उत्पादों में तो होता ही है, साथ ही हरी सब्जी के रूप में भी मटर का उपयोग किया जाता है। अनगिनत आयुर्वेदिक गुणों के साथ-साथ यह हमारे स्वास्थ्य, त्वचा और बालों के लिए भी काफी लाभकारी है। यही वजह है कि काफी किसान मटर की खेती करना पसंद करते हैं। सितंबर से शुरुआती अक्टूबर तक के समय में मटर की अगेती बुआई की जाती है। यह समय मटर की अगेती बुआई के लिए उपयुक्त है। लेकिन मटर की उन्नत किस्मों की जानकारी का होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि बीज और किस्म के उत्तम क्वालिटी का होना किसी भी फसल की अच्छी पैदावार होने के लिए जरूरी है। मटर की अच्छी पैदावार के लिए भी किसानों को उचित किस्मों का चयन करना जरूरी है।
ट्रैक्टर जंक्शन के इस पोस्ट में हम मटर की खेती, मटर की टॉप 5 किस्मों, किस राज्य के लिए कौनसी किस्म बेस्ट है, आदि के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
जलवायु, राज्य और मिट्टी काे ध्यान रखते हुए मार्केट में मटर की कई अच्छी किस्में मौजूद है। लेकिन मटर के टॉप 5 सामान्य किस्मों की बात करें तो वह इस प्रकार है।
काशी उदय : बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश राज्यों में खेती के लिए मटर की ये किस्म काफी उपयुक्त है। काशी उदय को 2005 में विकसित किया गया। इसकी फलियों की लंबाई की बात करें तो 9 से 10 सेंटीमीटर लंबी होती है। प्रति एकड़ खेती करने पर किसानों को 42 क्विंटल मटर की पैदावार मिल सकती है। बाजार में इस किस्म के बीज के प्रति किलो रेट की बात करें तो 250 रुपए प्रति किलो हो सकती है और काशी उदय किस्म को कटाई के लिए पकने में 60 दिनों का समय लगता है।
काशी अगेती : काशी अगेती किस्म बेहद कम दिनों में तैयार होने वाली मटर की किस्मों में से एक है। इस किस्म की फलियां सीधी और गहरे हरे रंग की देखने को मिलती है। मटर की यह किस्म मात्र 50 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 38 से 40 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है।
काशी नंदिनी : वर्ष 2005 में विकसित किए गए मटर की इस बेहतरीन किस्म को उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडू एवं केरल आदि इलाकों में खेती के लिए बनाया गया। काशी नंदिनी मटर का एक प्रसिद्ध ब्रांड है। इस किस्म की पैदावार प्रति एकड़ 44 से 48 एकड़ तक होती है।
काशी मुक्ति : बिहार, झारखंड और पंजाब राज्य में मटर की इस किस्म की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके दाने साइज में बड़े होते हैं, और इसकी फलियां लंबी होती है। इस किस्म की मांग विदेशों में भी काफी देखने को मिलती है। प्रति एकड़ उत्पादन की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 46 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है।
पंत मटर 155 : मटर की संकर किस्मों में, मटर की ये किस्म बेहतरीन है। बुआई के 50 से 60 दिनों के बाद ही हरी फलियों की तुड़ाई कर सकते हैं। इस किस्म की खासियत यह है कि इसमें रोगों का प्रकोप कम होता है। फफूंद रोग, फली छेदक कीटों का प्रकोप इस किस्म पर ज्यादा नहीं होता।
खरीफ सीजन की फसल कटने के बाद खेत की जुताई 1 से 2 बार हैरो से कर लेना चाहिए। भूमि को समतल करके प्लेन कर देना चाहिए। इस तरह बुआई के समय नमी की कमी भी दूर हो जाएगी। इससे बीज आसानी से अंकुरित हो पाएगी। अक्टूबर से नवंबर मध्य तक मटर की बुआई कर देनी चाहिए।
मटर की खेती के लिए उचित जलवायु की बात करें तो इस खेती में तापमान 10 से 18° सेंटीग्रेड होना चाहिए। 10 से 18 डिग्री तापमान इस खेती के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। हालांकि बीज अंकुरण के लिए औसत तापमान 20 से 22 डिग्री सेल्सियस का होना जरूरी है। 10 से 18 डिग्री के तापमान के बीच मटर का पौधा काफी विकसित होता है।
मटर की खेती के लिए भूमि की बात करें तो चूंकि मटर एक फलीदार फसल है इसलिए खेती योग्य भूमि में पर्याप्त नमी के साथ इस फसल को उगाया जा सकता है। इस खेती में नमी युक्त अच्छी मटियार मिट्टी इसके लिए उपयुक्त है। हालांकि इसके लिए लगभग सभी प्रकार की मिट्टी उत्तम है। अगर अच्छी सिंचाई की सुविधा हो तो हल्की बलुई या दोमट मिट्टी में भी मटर की पैदावार अच्छी चाहिए।
मटर की खेती में अच्छे अंकुरण के लिए अच्छी सिंचाई का होना जरूरी है। सामान्यतः बुआई के बाद 1 या 2 सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पहली सिंचाई फूल आने से पहले और दूसरी सिंचाई फल आने की अवस्था में कर लेनी चाहिए। ध्यान रहे कि सिंचाई नियमित और नियत ही हो, क्योंकि ज्यादा सिंचाई से फसल से कम उपज हो सकती और पौधों में पीलापन आ सकता है।
मटर की खेती से होने वाली कमाई कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है। जैसे कृषि कौशल, मिट्टी की क्वालिटी, जलवायु और फसल की देखरेख। सामान्य तौर पर किसान की प्रति हेक्टेयर पैदावार 18 से 35 क्विंटल हो जाती है, अगर फलियां पूरी तरह पकी हुई हो। अगर कच्ची फली, जो हरी सब्जी के लिए उपयोग में लाई जाती है, उसके पैदावार की बात करें तो कच्ची फली की पैदावार प्रति हेक्टेयर 90 से 150 क्विंटल हो जाती है। इस तरह अगर 30 रुपए प्रति किलोग्राम ही कच्ची फली किसान बेचते हैं तो किसान की 150 क्विंटल फसल की रेट 4 लाख 50 हजार रुपए होगी। लागत के रूप में 1 लाख रुपए कम भी कर दिया जाए। तो एक हेक्टेयर खेत में किसान 3 लाख 50 हजार यानी 3.5 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा कर पाएंगे।
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