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अश्वगंधा की खेती : फल से लेकर पत्ते बेचें, होगी लाखों की कमाई

प्रकाशित - 22 Jun 2023

मेडिकल दवाओं में होता है इसका प्रयोग, जानें खेती का तरीका

अश्वगंधा एक जबरदस्त मांग वाली फसल है। अश्वगंधा का उपयोग शरीर में ऊर्जा लाने के लिए, इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए पर्याप्त मात्रा में किया जाता है। अपने औषधीय गुणों की वजह से यह हमेशा मार्केट में डिमांड में रहती है। खासकर कोरोना महामारी के बाद, बहुत से लोगों ने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अश्वगंधा का ही इस्तेमाल किया और बहुत सारे लोगों ने कोरोना से ठीक होने का दावा भी किया था। 

अश्वगंधा को पाउडर के रूप में खाया जाता है। वहीं दवाओं के रूप में उपयोग में लाए जाने पर कैप्सूल के तौर पर भी अश्वगंधा का उपयोग किया जाता है। अश्वगंधा मार्केट में अच्छे रेट पर बिकता है और इसकी खेती करने वाले किसानों को अच्छी आमदनी होती है। यही वजह है कि आजकल ज्यादातर किसान अश्वगंधा की खेती करना चाहते हैं। अश्वगंधा की खेती कर किसान लाखों रुपए का कारोबार कर सकते हैं।

ट्रैक्टर जंक्शन के इस पोस्ट में हम अश्वगंधा की खेती, बुआई का समय, सिंचाई, पैदावार और कमाई की जानकारी दे रहे हैं।

अश्वगंधा के बारे में

विदेशों में भारतीय जिनसेंग और शीतकालीन चेरी के नाम से जाने जाना वाला अश्वगंधा एक कठोर पौधा है। यह सूखा पौधा होता है, जिसे भारत के उत्तर पश्चिम और मध्य में उगाया जाता है। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति और यूनानी चिकित्सा पद्धति में अश्वगंधा का जिक्र मिलता है। इसका उपयोग जड़ी-बूटी और सप्लीमेंट के तौर पर किया जाता रहा है।

किन किसानों को करना चाहिए अश्वगंधा की खेती

बहुत से किसान पारंपरिक अनाज की खेती करते हैं, लेकिन अनाज की खेती से उन्हें पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता है। वैसे किसान अश्वगंधा की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आजकल किसान औषधीय खेती की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। इससे किसानों का बहुत फायदा होता है। इसलिए ऐसे किसान अश्वगंधा की खेती कर सकते हैं। लेकिन आसपास मार्केट की मांग, ग्राहकों का पहले पता कर लें। 

मिट्टी

अश्वगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट और लाल मिट्टी काफी उपयुक्त होती है। अश्वगंधा की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8 के बीच होना चाहिए। मिट्टी का पीएच मान पता करने के लिए मिट्टी की जांच नजदीकी कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क करते हुए करवा सकते हैं। उपजाऊ और अर्ध उपजाऊ भूमि पर भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में जहां उपजाऊ भूमि का मात्रा कम है वहां भी इस फसल की खेती की जा रही है। 

मिट्टी की तैयारी

मिट्टी की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत की दो बार जुताई करवाएं। जुताई के बाद खेत में जैविक खाद डाल कर पाटा लगा कर समतल कर दें।

जलवायु

अश्वगंधा की खेती मध्यम तापमान में होती है। 25 से 30 डिग्री तक का तापमान अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त होती है। अगर 25 से 30 डिग्री तापमान हो तो अश्वगंधा का पौधा तेजी से विकास करता है और फलता, फूलता है। खेतों में पर्याप्त नमी की मात्रा बनाए रखें। इसके लिए 500 से 750 मिलीलीटर बारिश का होना जरूरी है। अगर तापमान कम भी हुआ तो पर्वतीय क्षेत्रों में इसका विकास अच्छा होता है।

बुआई एवं बीजोपचार

अश्वगंधा की बुआई का श्रेष्ठ समय जुलाई और अगस्त का महीना होता है। बुआई के लिए 10 से 12 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर भूमि के लिए इस्तेमाल करें। अश्वगंधा का बीजोपचार के लिए डाएथेन एम-45 से उपचारित करें। बता दें कि 1 किलोग्राम बीज के लिए 3 ग्राम डाएथेन एम-45 लगेगा। 10 किलो बीज के लिए 30 ग्राम के लगभग लगेगा।

सिंचाई

सिंचित अवस्था में पहली सिंचाई करने के लिए 15 से 20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करें। नियमित वर्षा होने के बाद पानी देने की आवश्यकता नहीं रहेगी। इसके बाद 1 महीने बाद सिंचाई करें। लेकिन अगर काफी तेज गर्मी पड़ रही हो तो 5 से 8 दिन पर नियमित रूप से फुहारों की सिंचाई करते रहें।

पैदावार

अश्वगंधा की खेती में 5 से 6 महीने का समय लगता है। बीज के रूप में हम जितनी लागत लगाते हैं, उससे तीन गुना तक की पैदावार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 3 से 4 क्विंटल जड़ का उत्पादन होता है, जिससे 50 किलोग्राम तक बीज का उत्पादन हो जाता है। 10 से 12 किलोग्राम बीज की लागत के बाद 50 किलोग्राम तक की पैदावार की जा सकती है। 

कमाई

अश्वगंधा का मार्केट रेट 600 रुपए किलोग्राम तक है। पतंजलि का 100 ग्राम पैकिंग वाला अश्वगंधा भी करीब 60 रुपए में मिलता है। किसानों को 350 से 400 रुपए प्रति किलो बीज का बिक्री रेट आसानी से मिल जाता है। इस तरह किसान अगर एक हेक्टेयर में खेती करते हैं और 50 किलोग्राम बीज का उत्पादन करते हैं तो प्रति हेक्टेयर अश्वगंधा की खेती से 2 लाख रुपए की कमाई 5 से 6 महीने में हो जाती है। श्रम और लागत के रूप में 50 हजार रुपए तक कम भी कर दें तो किसानों को 1.5 लाख रुपए की कमाई आसानी से हो जाती है। यही वजह है कि यह खेती किसानों के बीच लोकप्रिय होती जा रही है। इस खेती में गोबर खाद, नाइट्रोजन और फास्फोरस का उपयोग 15-15 किलोग्राम की मात्रा में किया जाता है। इस खेती में बीज के अलावा जड़ का भी महत्व है। किसान जड़ की बिक्री करके भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

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