यूजर प्रोफाइल

नया उपयोगकर्ता

ट्रैक्टर जंक्शन से जुड़ें

केले की खेती : बंपर उत्पादन के लिए इन बातों का रखें ध्यान

प्रकाशित - 07 Sep 2022

जानें, केले की बेहतर खेती के लिए ध्यान रखने वाली बातें

किसान आज परंपरागत फसलों जैसे- गेहूं व मक्का की खेती छोडक़र नकदी फसलों की खेती की ओर रूख कर रहे हैं। इसमें केले की खेती से किसानों को काफी लाभ हो रहा है। केला एक नकदी फसल है। इसके बाजार में भाव भी ठीक मिल जाते हैं। इसका विक्रय साल के पूरे 12 महीने तक किया जाता है। इस हिसाब से देखा जाए तो केले की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो रही है। यदि केले की खेती में कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो इससे काफी अच्छी कमाई की जा सकती है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को केले का उत्पादन बढ़ाने के टिप्स साझा कर रहे हैं  ये जानकारी आपके लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। 

केले की खेती के लिए कैसी भूमि का करें चयन

केले की खेती (Banana Cultivation) के लिए मिट्टी का चयन बहुत जरूरी है। इसके लिए पोषक तत्वों से युक्त भूमि का चयन किया जाना चाहिए। भूमि की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए ताकि भूमि में जिन पोषक तत्वों की कमी है उसे पूरा किया जा सके जिससे केले का बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकें। अब बात करें इसकी खेती के लिए उपयुक्त भूमि की तो इसकी खेती के लिए चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। इसके लिए भूमि का पीएच मान 6-7.5 के बीच होना चाहिए। ज्यादा अम्लीय या क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। वहीं खेत में जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा है तो खेत में पानी निकासी की व्यवस्था जरूरी होनी चाहिए। वहीं खेत का चुनाव करते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि हवा का आवागमन बेहतर हो।

केले के लिए कैसी होनी चाहिए जलवायु

केला मूलत: एक उष्ण कटिबंधीय फसल है। इसकी खेती के लिए 13 डिग्री. सें -38 डिग्री. सेंटीग्रेट तापमान अच्छा रहता है। इसकी फसल 75-85 प्रतिशत की सापेक्षिक आर्द्रता में अच्छी तरह बढ़ती है। भारत में ग्रैंड नाइन जैसी उचित किस्मों के चयन के माध्यम से इस फसल की खेती आर्द्र कटिबंधीय से लेकर शुष्क उष्ण कटिबंधीय जलवायु में की जा रही है। 

टिशू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधों का करें रोपण

टिशू कल्चर से तैयार पौधों में 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और एक साल में फसल तैयार हो जाती है। इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिशू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाने चाहिए। ग्रेंड नेन किस्म यानी टिशू कल्चर तकनीक से तैयार पौधे 300 सेंटीमीटर से ज्यादा लंबे होते हैं। इस किस्म के केले मुड़े हुए होते हैं। टिशू कल्चर से तैयार पौधे की फसल करीब एक साल में तैयार हो जाती है। टिशू कल्चर पद्धिति की सबसे बड़ी खासियत ये हैं कि इस विधि से तैयार पौधे की खेती पूरे साल की जा सकती है। हालांकि इसकी फसल को अत्यधिक ठंडे और गर्म तापमान से बचाना जरूरी होता है। 

केले की खेती के लिए उत्तम किस्में (kele ki kheti)

केले की खेती के लिए कई उन्नत किस्में मौजूद हैं। इसमें सिंघापुरी के रोबेस्टा नस्ल के केले को खेती के लिए बेहतर माना जाता है। इससे केले की अधिक पैदावार मिलती है। इसके अलावा केले की बसराई, ड्वार्फ, हरी छाल, सालभोग,अल्पान तथा पुवन इत्यादि प्रजातियां भी अच्छी मानी जाती हैं। 

केले की खेती के लिए कैसे करें खेत की तैयारी

केला रोपने से पहले ढेंचा, लोबिया जैसी हरी खाद की फसल उगाई जानी चाहिए एवं उसे जमीन में गाड़ देना चाहिए। ये मिट्टी के लिए खाद का काम करती है। अब केले की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए जमीन को 2-4 बार जोतकर समतल कर लेना चाहिए। मिट्टी के ठेलों को तोडऩे के लिए रोटावेटर या हैरो का उपयोग करें तथा मिट्टी को उचित ढलाव दें। मिट्टी तैयार करते समय एफ.वाईएम की आधार खुराक डालकर अच्छी तरह से मिला दी जानी चाहिए।

केले के पौधे रोपने के लिए कैसे तैयार करें गड्ढे

सामान्यत: केले की पौध का रोपण करने के लिए  45 x 45 x 45 सेमी के आकार के गड्ढे की आवश्यकता होती है। गड्ढों में 10 किलो (अच्छी  तरह विघटित हो), 250 ग्राम खली एवं 20 ग्राम कार्बोफ्युरॉन मिश्रित मिट्टी से पुन: भराव किया जाता है। तैयार गड्ढों को खुला छोड़ देना चाहिए ताकि सूरज की धूप उनको लग सकें। इससे हानिकारक कीटों नष्ट होते हैं और मिट्टी को वायु मिलने में मदद मिलती है। ध्यान रहे यदि खेत की मिट्टी नमकीन क्षारीय है और पी.एच. 8 से ऊपर हो तो गड्ढे के मिश्रण में संशोधन करते हुए कार्बनिक पदार्थ को मिलाना चाहिए।

केले की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

बारिश का मौसम शुरू होने से पहले यानी जून के महीने में खोदे गए गड्ढों में 8.15 किलोग्राम नाडेप कम्पोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, 250-300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 200 ग्राम नाइट्रोजन 200 ग्राम पोटाश डाल कर मिट्टी भर दें और समय पर पहले से खोदे गए गड्ढों में केले की पौध लगा देनी चाहिए। इसके लिए हमेशा सेहतमंद पौधों का चुनाव करना चाहिए।

केले की पौध की रोपाई का समय

ड्रिप सिंचाई की सुविधा हो तो पॉली हाउस में टिशू कल्चर पद्धिति से केले की खेती वर्ष भर की जा सकती है। महाराष्ट्र में इसकी खेती के लिए मृग बाग खरीफ) रोपाई के महीने जून- जुलाई, कान्दे  बहार (रबी) रोपाई के महीना अक्टूबर- नवम्बर महीना महत्वपूर्ण माना जाता है।

केले की पौध की रोपाई का क्या है सही तरीका

परंपरागत रूप से केला उत्पादक फसल की रोपाई 1.5 मी. x1.5 मीटर पर उच्च घनत्व के साथ करते हैं, लेकिन पौधे का विकास एवं पैदावार सूर्य की रोशनी के लिए प्रतिस्पर्धा की वजह से कमजोर हैं। ग्रैन्डातइन को फसल के रूप में लेकर जैन सिंचाई प्रणाली अनुसंधान एवं विकास फार्म पर विभिन्न परीक्षण किए गए थे। इसके बाद 1.82 मी x1.52 मी. के अंतराल की सिफारिश की जा सकती है, इस पंक्ति की दिशा उत्तर- दक्षिण रखते हुए तथा पंक्तियों के बीच 1.82 मी. का बड़ा अंतर रखा जा सकता है। इस तरह प्रति एकड़ खेत में 1452 पौधे लगाए जा सकते है। उत्तर भारत के तटीय पट्टों जहां नमी बहुत अधिक है तथा तापमान 5-7 तक गिर जाता है, रोपाई का अंतराल 2.1 मीx1.5 मी. से कम नहीं होनी चाहिए। वहीं रोपाई करते समय केले पौधे की जड़ीय गेंद को छेड़े बगैर उससे पॉलीबैग को अलग किया जाता है तथा उसके बाद छह तने को भू-स्तर से 2 सें.मी. नीचे रखते हुए पौधों को गड्ढ़ों में रोपा जा सकता है। गहरे रोपण से बचना चाहिए।

ड्रिप सिंचाई का करें उपयोग

केले के जल की आवश्यकता, गणना कर 2000 मिली मीटर प्रतिवर्ष निकाली गई है। ड्रिप सिंचाई एवं मल्चिंग तकनीक से जल के उपयोग की दक्षता में बेहतरी की रिपोर्ट है। ड्रिप के जरिये जल की 56 प्रतिशत बचत एवं पैदावार में 23-32 प्रतिशत वृद्धि होती है। पौधों की सिंचाई रोपने के तुरंत  बाद करें। पर्याप्त पानी दें एवं खेत की क्षमता बनाये रखें। आवश्यकता से अधिक सिंचाई से मिट्टी के छिद्रों से हवा निकल जाएगी, फलस्वरूप जड़ के हिस्से में अवरोध उत्पन्न होकर पौधे की स्थापना और विकास प्रभावित होगें। इसलिए केले के लिए ड्रिप पद्धति उचित जल प्रबंधन के लिए जरूरी है। 

केले की खेती में निराई-गुड़ाई की आवश्यकता

केले की खेती (Banana Farming) में नियमित रूप से निंदाई जरूरी होती है। पांच माह बाद प्रत्येक दो माह में निंदाई-गुड़ाई के बाद पौधों में मिट्टी चढ़ाने का कार्य किया जाता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु खरपतवार नाशक जैसे-ग्लायसेल, पैराक्वाट आदि का उपयोग किया जा सकता हैं। प्रत्येक गुड़ाई के बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य किया जाना चाहिए।

केले की खेती में कितनी आती है लागत और कितनी होगी कमाई

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक बीघे केले की खेती करने में करीब 50,000 रुपए लागत आती है। इसमें दो लाख रुपए तक की आसानी से बचत हो जाती है। बता दें कि यदि उचित साधनों का प्रयोग करके इसकी खेती की जाए तो केले के एक पौधे से करीब 60 से 70 किलो तक की पैदावार हासिल की जा सकती है।
 

ट्रैक्टर जंक्शन हमेशा आपको अपडेट रखता है। इसके लिए ट्रैक्टरों के नये मॉडलों और उनके कृषि उपयोग के बारे में एग्रीकल्चर खबरें प्रकाशित की जाती हैं। प्रमुख ट्रैक्टर कंपनियों कैप्टन ट्रैक्टरआयशर ट्रैक्टर आदि की मासिक सेल्स रिपोर्ट भी हम प्रकाशित करते हैं जिसमें ट्रैक्टरों की थोक व खुदरा बिक्री की विस्तृत जानकारी दी जाती है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।

अगर आप नए ट्रैक्टरपुराने ट्रैक्टरकृषि उपकरण बेचने या खरीदने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार और विक्रेता आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु को ट्रैक्टर जंक्शन के साथ शेयर करें।

सर्टिफाइड पुराने ट्रैक्टर्स

पॉवर ट्रैक 434 प्लस
₹1.10 लाख का कुल बचत

पॉवर ट्रैक 434 प्लस

37 एचपी | 2023 Model | चितौड़गढ़, राजस्थान

₹ 4,30,000
प्रमाणित
icon icon-phone-callविक्रेता से संपर्क करें
महिंद्रा 575 डीआई एक्सपी प्लस
₹4.40 लाख का कुल बचत

महिंद्रा 575 डीआई एक्सपी प्लस

47 एचपी | 2014 Model | हनुमानगढ़, राजस्थान

₹ 2,87,500
प्रमाणित
icon icon-phone-callविक्रेता से संपर्क करें
मैसी फर्ग्यूसन 1035 डीआई
₹1.28 लाख का कुल बचत

मैसी फर्ग्यूसन 1035 डीआई

36 एचपी | 2020 Model | टोंक, राजस्थान

₹ 5,00,000
प्रमाणित
icon icon-phone-callविक्रेता से संपर्क करें
फार्मट्रैक 45 पॉवरमैक्स
₹0.49 लाख का कुल बचत

फार्मट्रैक 45 पॉवरमैक्स

50 एचपी | 2023 Model | देवास, मध्यप्रदेश

₹ 7,41,285
प्रमाणित
icon icon-phone-callविक्रेता से संपर्क करें

सभी देखें