प्रकाशित - 23 Oct 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
रबी की फसलों की बुवाई का सीजन चल रहा है। इसके तहत अधिकांश किसान गेहूं व सरसों की बुवाई करते हैं। बाजार में सरसों के भाव अच्छे मिल जाते हैं। ऐसे में अधिकांश किसान सरसों की खेती में लगे हुए हैं। सरसों की बहुत सी अधिक उत्पादन देने वाली किस्में है जिनसे किसान काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे में किसानों को सरसों की उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए ताकि उन्हें बेहतर लाभ मिल सके। सरसों की बुवाई का काम सितंबर माह से ही शुरू हो जाता है और अक्टूबर तक चलता है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी बुवाई का समय अलग-अलग होता है। इस समय सिचिंत क्षेत्र में सरसों की बुवाई की जा सकती है। जिन किसानों ने अभी तक सरसों की बुवाई नहीं की है वे इस माह सरसों की बुवाई कर सकते हैं।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को सरसों की टॉप 10 अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की जानकारी दे रहे हैं। किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुसार सरसों की उन्नत किस्मों का चुनाव कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं, सरसों की बुवाई के लिए टॉप 10 उन्नत किस्मों के बारें में।
सरसों की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था (आईएआरआई) पूसा द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म 100 दिन के अंदर तैयार हो जाती है। यह सरसों की पहली एकल शून्य किस्म है। इस किस्म की खास बात यह है कि इसेमं सफेद रतुआ रोग नहीं लगता है। यह किस्म सामान्य सरसों की किस्म की तुलना में अधिक पैदावार देने में समक्ष है। इसमें तेल की मात्रा भी अधिक पाई गई है। सरसों की इस किस्म से किसान प्रति हैक्टेयर 25 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
सरसों की पूसा डबल जीरो-31 किस्म 144 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह पीले बीज वाली किस्म होती है। इसमें तेल की मात्रा 40.56 प्रतिशत पाई जाती है। इसमें एरुसिक एसिड की मात्रा 2 प्रतिशत से कम पाई जाती है और ग्लूसाइनोलेट्स 30 पीपीएम से कम होता है। इसमें तेल व बीज आहार की क्वालिटी अच्छी होती है। सरसों की यह किस्म दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों के आसपास के क्षेत्रों के लिए सिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त पाई गई है। सरसों की पूसा डबल जीरो-31 किस्म से औसत बीज उपज 2379 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है।
सरसों की यह किस्म सिंचित और बारानी दोनों क्षेत्रों में बुवाई के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह किस्म 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म की 18 से लेकर 20 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। सरसों की इस किस्म की खेती मुख्य रूप से दिल्ली, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में की जाती है।
सरसों की यह किस्म समय से बुवाई और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह किस्म 125 से लेकर 130 दिन के भीतर पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर करीब 25 से 28 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त मिल सकती है।
यह सरसों की संकर किस्म है। इसमें तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है। यह किस्म करीब 130 से लेकर 135 दिनों पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हैक्टेयर करीब 28 से 30 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है।
सरसों की यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई है। इस किस्म के दाने मोटे होते हैं। यह किस्म करीब 140 से 150 दिन के भीतर पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हैक्टेयर करीब 20 से लेकर 22 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
सरसों की यह किस्म 130 से लेकर 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 20 से लेकर 30 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। खास बात यह है कि सरसों की इस किस्म में तुलासिता, सफेद रोली और मुरझान रोग के प्रति रोधक है।
सरसों की यह किस्म 125 से लेकर 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर करीब 26 से लेकर 28 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है। खास बात यह है कि सरसों की यह किस्म सरसों में लगने वाले कई प्रमुख रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्म है।
सरसों की यह एक संकर किस्म है। यह किस्म करीब 125 से लेकर 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 20 से लेकर 30 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। खास बात यह है कि इस किस्म में सफेद रस्ट और डाउनी मिल्ड्यू रोग को सहन करने की क्षमता होती है।
सरसों की यह किस्म लवणीय भूमि में बुवाई के लिए उपयुक्त पाई गई है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर करीब 18 से लेकर 26 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म 135 से लेकर 140 दिन में तैयार हो जाती है।
सरसों की बुवाई कतारों में की जानी चाहिए ताकि निराई-गुड़ाई काम आसानी से किया जा सके। इसके लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। सिंचित क्षेत्र में बीज की गहराई 5 सेमी. तक रखनी चाहिए। बीजों की बुवाई के लिए सीडड्रिल का इस्तेमाल करना चाहिए। बीज की मात्र सिंचित क्षेत्रों में 3 से 4 किलोग्राम तक ली जाती है। बीजों को बुवाई से पहले उपचारित अवश्य कर लेना चाहिए ताकि कीट-रोग का प्रकोप कम रहे।
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