प्रकाशित - 15 Dec 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत में मूंगफली के बाद सरसों ही ऐसी तिलहनी फसल है जिसकी खेती सबसे ज्यादा की जाती है। कई किसान इसकी खेती करके अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। सरसों की खेती की खास बता ये हैं कि इसमें गेहूं की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इससे सरसों की खेती उन इलाकों के किसानों के लिए काफी महत्व रखती है, जहां पानी की कमी है। यही कारण है कि हरियाणा और राजस्थान के किसान अधिकतर सरसों की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं। सरसों की उपयोगिता को देखते हुए इसकी बाजार मांग हमेशा बनी रहती है। इसमें काली सरसों की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो रही है। किसान काली सरसों के बीजों की खेती से मोटी कमाई कर रहे हैं। बाजार में काली सरसों की मांग भी अच्छी-खासी रहती है। इसकी खेती करके किसान लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको काली सरसों की खेती/काली सरसों के बीजों की खेती की जानकारी दे रहे हैं।
काली सरसों के बीच गोल आकार के कड़े बीज होते हैं। इनका रंग गहरा भूरा या काला होता है। ये आकार में छोटे होते हैं और सफेद सरसों की तुलना में यह काफी तीखें होते हैं। इनका प्रयोग खाने का स्वाद बढ़ाने में किया जाता है। आम तौर पर काली सरसों के बीजों का उपयोग तड़के के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग पाउडर के रूप में भी किया जाता है। सरसों के पौधे की करीब 40 प्रजातियां पाई जाती हैं। सरसों के बीज से तेल निकाला जाता है, जिसका उपयोग भोजन बनाने, औषधि के रूप में और दवा बनाने के लिए किया जाता है। साउथ इंडियन फूड में प्रमुख रूप् से काले सरसों का प्रयोग किया जाता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शोध में पाया गया है कि काले सरसों के बीज में हाइपोग्लाइसेमिक और एंटीडायबिटिक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त में मौजूद ग्लूकोज के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं। काले सरसों के बीज टाइप 2 डायबिटीज की समस्या में आराम पहुंचाने का काम कर सकते हैं। इस बात की पुष्टि एनसीबीआई की साइट पर उपलब्ध एक रिसर्च पेपर से होती है। वहीं काली सरसों के बीज सेलेनियम में उच्च है जो पेट की कब्ज और गैस से लड़ने में मदद करता है। इसके अलावा ये त्वचा और जोड़ों की समस्याओं के लिए भी अच्छा बताया गया है। इसे आप अपने भोजन में शामिल करके इसका लाभ ले सकते है।
काली सरसों की खेती से किसान काफी अच्छा पैसा कमा सकते हैं। काली सरसों की मांग पीली सरसों से ज्यादा होती है। इसके तेल की मांग भी अधिक रहती है। इसे देखते हुए काली सरसों की खेती किसानों के लिए लाभ का सौंदा है। बात करें काली सरसों के बाजार भाव की तो वर्तमान देश की प्रमुख मंडियों में काली सरसों का रेट 5500 रुपए से लेकर 7 हजार रुपए के बीच चल रहा है। जबकि सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2023-24 के लिए 5450 तय किया है जो पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 से 400 रुपए अधिक है। इस तरह इस बार जिन किसानों ने अपने खेत में सरसों बाई है या पछेती बुवाई कर रहे हैं, उन्हें इस बार सरसों का सरकारी रेट भी पिछले साल से अच्छा मिलेगा। वहीं खुले बाजार में भी सरसों के भाव अच्छे रहने की संभावना नजर आ रही है। इस तरह सरसों की खेती करने वाले किसान इस बार भी अच्छे लाभ की उम्मीद कर सकते हैं।
अधिकांशत: देश के विभिन्न राज्यों में सरसों की फसल की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर तक के महीने में कर दी जाती है, तथा मार्च से अप्रैल का महीना फसल की कटाई का होता है। कई किसान सरसों की बुवाई कर चुके हैं और कई किसान इसकी पछेती बुवाई कर रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सरसों की बुआई के लिए सबसे अच्छा समय 5 से 25 अक्टूबर के बीच का माना जाता है। इस समय सरसों की बुवाई करने पर अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है, इसलिए किसानों को सरसों की बुवाई 25 अक्टूबर तक कर लेनी चाहिए। इसके बाद बुवाई करने पर कम उत्पादन प्राप्त होता है।
काली सरसों की अच्छी उपज के लिए समतल एवं अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। हालांकि क्षारीय भूमि पर भी उपयुक्त किस्मों का चुनाव करके भी इसकी खेती की जा सकती है। जहां की मिट्टी क्षारीय से वहां प्रत्येक तीसरे वर्ष जिप्सम 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता मिट्टी पी. एच. मान के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।
सरसों की खेती बारानी और सिंचित दोनों अवस्थाओं में की जा सकती है। सिंचित क्षेत्रों में इसके लिए खेत तैयार करते समय पहली जुताई ट्रैक्टर के साथ मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद तीन से चार जुताइयां तबेदार हल से करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढेले न बनें। बुआई से पूर्व अगर भूमि में नमी की कमी हो तो खेत में पलेवा करने के बाद बुआई करें। फसल बुआई से पूर्व खेत खरपतवारों से रहित होना चाहिए। अंतिम जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्यूनॉलफॉस 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से में मिला दें, ताकि भूमिगत कीड़ों से फसल की सुरक्षा हो सके।
काली सरसों की बुवाई के लिए बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 4-5 किलो ग्राम पर्याप्त होती है। बुआई से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए ताकि कीट रोगों से बचाव हो सकें। बीजोपचार के लिए कार्बेण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम अथवा एप्रोन (एस.डी. 35) 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए। बीज को पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखते और कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखनी चाहिए। बीजों को 5 सें.मी. की गहराई तक बोना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में बीज की गहराई मिट्टी की नमी के अनुसार रखनी चाहिए। सरसों के बीजों की बुवाई देसी हल या सीड ड्रिल की सहायता से करनी चाहिए।
असिंचित क्षेत्रों में सरसों की फसल में 40-60 किलो ग्राम नत्रजन, 20-30 किलो ग्राम फास्फोरस, 20 किलो ग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम सल्फर की जरूरत होती है। जबकि सिंचित फसल को 80-120 किलो ग्राम नत्राजन, 50-60 किलो ग्राम फास्फोरस, 20-40 किलो ग्राम पोटाश व 20-40 किलो ग्राम सल्फर का प्रयोग किया जा सकता है।
सरसों की अच्छी फसल के लिए पहली सिंचाई 30 से 40 दिन के बीच फूल बनने की अवस्था पर ही करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय (60-70 दिन) में की जाती है। जहां पानी की कमी हो या खारा पानी हो वहां सिर्फ एक ही सिंचाई करना अच्छा रहता है।
खरपवारों के कारण सरसों की उपज में करीब 60 प्रतिशत तक कमी आ जाती है। इसलिए इसकी बुवाई के 25 से 30 दिन के बाद निराई-गुडाई करके खरपतवारों को निकाल कर खेत से बाहर फेंक देना चाहिए। खरपतवार निकलने के लिए खुरपी या हैंड हो का प्रयोग कर सकते हैँ। वहीं खरपतवारों के रसायनिक तरीके से नियंत्रण के लिए फ्रलुक्लोरेलिन (45 ई.सी.) की एक लीटर सक्रिय तत्व/हेक्टेयर (2.2 लीटर दवा) की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के पूर्व छिड़काव कर भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए अथवा पेन्डीमिथेलीन (30 ई.सी) की 1 लीटर सक्रिय तत्व (3.3 लीटर दवाई को 800 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरन्त बाद (बुआई के 1-2 दिन के अन्दर) छिड़काव करना चाहिए।
सरसों की फसल में चेपा और माहू कीट का प्रकोप काफी देखा गया है। इस कीट का प्रकोप दिसंबर और जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता है। इस कीट के प्रकोप से सरसों की फसल को नुकसान पहुंचाता है। चेंपा कीट के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए डाइमिथोएट (रोगोर) 30 ई सी या मोनोक्रोटोफास (न्यूवाक्रोन) 36 घुलनशील द्रव्य की 1 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए। यदि दुबारा से कीट का प्रकोप हो तो 15 दिन के अंतराल से फिर से छिड़काव करना चाहिए। वहीं माहू कीट से फसल को बचाने के लिए कीट नाशी डाईमेथोएट 30 ई . सी .1 लीटर या मिथाइल ओ डेमेटान 25 ई. सी.1 लीटर या फेंटोथिओन 50 ई . सी .1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। इस बात का ध्यान रख्रें की कीटनाशी दवा का छिड़काव हमेशा शाम के समय ही करना चाहिए।
सरसों की फसल फरवरी-मार्च तक पक कर तैयार हो जाती है। जब सरसों की 75 प्रतिशत फलियां पीली हो जाएं तब ही फसल की कटाई करनी चाहिए। क्योंकि अधिकतर किस्मों में इस अवस्था के बाद बीज भार तथा तेल प्रतिशत में कमी हो जाती है। कटाई हमेशा सुबह के समय करनी चाहिए, क्योंकि रात के समय फसल में नमी अधिक रहती है जिससे कटाई ठीक से नहीं हो पाती है।
जब बीजों में औसतन 12-20 प्रतिशत आर्द्रता प्रतिशत हो तक इसकी फसल की गहाई करनी चाहिए। फसल की मड़ाई थ्रेसर से ही करनी चाहिए क्योंकि इससे बीज तथा भूसा अलग-अलग निकल जाते हैं। और काम भी जल्दी होता है। बीज निकलने के बाद उनको साफ करके बोरों में भर लेना चाहिए। सरसों का भंडारण करते समय इस बात का ध्यान रखें कि करते समय सरसों में 8-9 प्रतिशत नमी की होनी चाहिए।
काली सरसों की खेती में कई प्रकार के कृषि यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है। काली सरसों/सरसों की खेती में जिन यंत्रों का प्रयोग किया जाता है, वे इस प्रकार से हैं। आप इन यंत्रों के विभिन्न ब्रांड और कीमत भी यहां देख सकते हैं।
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Ans सरसों की फसल 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
Ans सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक का होता है।
Ans सरसों की फसल लगाने से खेत को अच्छी तरह से 3-4 बार जुताई कर लें। पहली जुताई के समय ही 4-5 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालकर जुताई करें। बीज की बुआई देशी हल या सीड़ ड्रिल से कतारों में करें। बीज पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 10-12 सेंटीमीटर से अधिक न रखें।
Ans बुआई के समय खेत में 100 किग्रा सिंगल सुपरफॉस्फेट, 35 किग्रा यूरिया और 25 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल करें।
Ans एक एकड़ में 12 से 15 क्विंटल सरसों प्राप्त होती है जो चार से पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल बिकती है।
Ans एक एकड़ क्षेत्र में सरसों की बिजाई में 4 हजार रुपए का खर्च आता है।
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