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गेहूं की इस नई किस्म से मिलेगी 81 क्विंटल की पैदावार

प्रकाशित - 19 Oct 2023

जानें, कौनसी है यह गेहूं की किस्म और इसकी विशेषता और लाभ

खरीफ की फसल (kharif crop) कटाई के बाद किसान रबी फसलों की बुवाई (sowing of rabi crops) करने में जुट जाएंगे। रबी फसलों में गेहूं की खेती (wheat cultivation) प्रमुख रूप से की जाती है। देश के लाखों किसान गेहूं की खेती करते हैं। ऐसे में गेहूं की उन्नत किस्म (improved variety of wheat) की बुवाई की जाए तो किसान गेहूं की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आज कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की कई नई किस्में विकसित की है जो अधिक उत्पादन देने के साथ रोग प्रतिरोधी भी हैं। इन्हीं किस्मों में से गेहूं की एक किस्म पूसा गौतमी एचडी 3086 (Wheat Pusa Gautami HD 3086) है जिसे पूसा संस्थान नई दिल्ली की दवारा विकसित किया गया है। इस किस्म की खास बात यह है कि यह एक रोग प्रतिरोधी किस्म है जो एक हैक्टेयर में करीब 81 क्विंटल की पैदावार देती है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको गेहूं की पूसा गौतमी एचडी 3086 (Wheat Pusa Gautami HD 3086) किस्म विशेषता और इसके लाभों की जानकारी दे रहे हैं।

पूसा गौतमी एचडी 3086 किस्म क्या है विशेषताएं

पूसा गौतमी एचडी 3086 (Pusa Gautami HD 3086) किस्म की समय से बुवाई और सिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त मानी गई है। गेहूं की यह किस्म उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में 145 दिन में तैयार हो जाती है। जबकि उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में यह 121 दिन में ही पककर तैयार हो जाती है। खास बात यह है कि यह किस्म पीले तथा भूरे रतुआ रोग के प्रतिरोधी किस्म है यानि इस किस्म में इस रोग का प्रकोप कम होता है। इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा भी अधिक पाई जाती है। इस किस्म में उच्च निष्कर्षण दर 70.5 और उत्कृष्ट चपाती गुणवत्ता मूल्यांक 7.7 है। गेहूं की यह किस्म रोटी (चपाती) बनाने के लिए उपयुक्त है।

किन राज्यों के किसान कर सकते हैं पूसा गौतमी एचडी 3086 किस्म की खेती

गेहूं की इस किस्म को उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर) बोया जा सकता है। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में झांसी डिवीजन को छोड़कर इसकी बुवाई की जा सकती है। इसके अलावा गेहूं की इस किस्म को जम्मू और कश्मीर के हिस्से (कठुआ जिला), हिमाचल प्रदेश में ऊना जिला और पावटा के कुछ हिस्से और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के साथ ही उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है।

पूसा गौतमी एचडी 3086 से कितनी मिलेगी पैदावार

अब बात की जाए पूसा गौतमी एचडी 3086 (Pusa Gautami HD 3086)  की पैदावार की तो इसकी अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी अलग-अलग पैदावार प्राप्त होती है। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में इस किस्म की पैदावार 81 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। वहीं उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में इसकी उपज 61 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है। यदि इसकी किस्म की औसत उपज की बात करें तो इसकी उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में उपज 54.6 है और पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में इसकी उपज 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यदि एकड़ के हिसाब से देखें तो उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में इस किस्त से करीब 28.44 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से उपज प्राप्त की जा सकती है।

गेहूं अधिक पैदावार देने वाली अन्य किस्में (Other high yielding wheat varieties)

उपरोक्त किस्म के अलावा गेहूं की कई ऐसी किस्में हैं जो अधिक पैदावार देती है। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से गेहूं की किस्म का चयन करके इसकी बुवाई कर सकते हैं। गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली अन्य किस्में इस प्रकार से हैं

गेहूं की डीबीडब्ल्यू 296 (करण ऐश्वर्या) (Wheat DBW 296 (Karan Aishwarya) 

गेहूं की डीबीडब्ल्यू 296 (करण ऐश्वर्या) किस्म को आईसीएआर- भारतीय गेहूं औ जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है। इस किस्म की उपज क्षमता 83.3 क्विंटल है। वहीं इसकी औसत उपज 56.1 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी संभाग को छोड़कर), जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों (जम्मू और कठुआ जिला), हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों (ऊना जिला और पावटा घाटी) उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) शामिल इन जगहों पर इसकी खेती की जा सकती है।

गेहूं की डीबीडब्ल्यू 327 (करण शिवानी) (Wheat DBW 327 (Karan Shivani))

गेहूं की डीबीडब्ल्यू 327 (करण शिवानी) (Wheat DBW 327 (Karan Shivani)) किस्म प्राकृतिक और कृत्रिम परिस्थितियों में स्ट्राइप और लीफ रस्ट रोग के लिए प्रतिरोधी किस्म है। यह किस्म 87.7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज दे सकती है। वहीं इसकी औसत उपज 79.4 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इस किस्म की बुवाई उत्तर मैदानी क्षेत्र पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान में (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर) और पश्चिमी यूपी (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू और कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिला) के कुछ हिस्सों और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों (उना जिला और पावटा घाटी) और उतराखंड (तराई क्षेत्र) के लिए इस किस्म की सिफारिश की गई है।

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