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रसभरी की खेती: कम लागत में होगी बंपर कमाई

प्रकाशित - 04 May 2023

जानें, रसभरी की खेती का सही तरीका और इससे कितना हो सकता है लाभ

भारत में स्थानीय फल और सब्जियों की खेती (Cultivation of Vegetables) के अलावा विदेशी फल (Exotic Fruit) और सब्जियों की खेती का चलन भी तेजी से बढ़ा है। स्ट्रॉबेरी और ब्रोकली के बाद रसभरी की खेती (Raspberry Cultivation) भी तेजी से होने लगी है। हालांकि भारत में बहुत साल पहले से इसकी खेती की जा रही है लेकिन इन दिनों इसकी खेती की ओर किसानों का रूझान बढ़ा है। इसके पीछे कारण यह है कि इस फल के बाजार में काफी अच्छे भाव मिल जाते हैं। रसभरी या Raspberry मूल रूप से दक्षिण अफ्रिका का फल है, लेकिन अब भारत में इसकी बहुत खेती होने लगी है। खास बात ये हैं कि इसकी खेती में लागत कम आती है और मुनाफा बहुत अच्छा होता है। इसीलिए रसभरी की खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो रही है।  

आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको रसभरी की खेती कैसे करें, इसकी खेती के लिए कैसी मिट्‌टी चाहिए, इसकी खेती से क्या लाभ होगा, बाजार में इसका कितना मूल्य है आदि सभी बातों की जानकारी दे रहे हैं, तो आइये जानते हैं रसभरी की खेती के बारें में पूरी जानकारी।

रसभरी में पाये जाने वाले पोषक तत्व (Nutrients in Raspberries)

रसभरी खाने में रसीली होने के साथ ही इमसें बहुत सारे पोषक तत्व भी पाये जाते हैं जिनमें पॉलीफिनॉल, केरिटिनॉयडस, विटामिन-ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस, फाइटोकैमिकल्स, एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। वहीं इसकी पत्तियों में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, विटामिन ए, विटामिन-सी, कैरोटिन आदि भी पाया जाता है। इसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना गया है। रसभरी एक खट्‌टा-मीठा रसीला फल है। यह खाने में स्वादिष्ट होता है। इससे जैम, सॉस, जैली आदि प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं।

रसभरी की किस्में (Varieties of Raspberries) 

  • रसभरी की कई किस्में हैं लेकिन भारत में अधिकतर तीन प्रजातियों यानि किस्मों की खेती की जाती है, जो इस प्रकार से है।
  • देशी रसभरी- इस किस्म का फल हल्का पीला और स्वाद में कुछ खट्‌टा होता है।
  • डिस्को रसभरी- इसका फल भी स्वाद में खट्‌टा-मीठा और नारंगी रंग लिए हुए होता है।
  • कौशल रसभरी- इस किस्म की रसभरी का फल ऊपर दी गई दोनों किस्मों के फलों से अधिक स्वादिष्ट होता है। इसमें रस की अधिक होता है। इसके फल का आकार शिमला मिर्च के आकार जितना होता है।

रसभरी की खेती के लिए कैसी भूमि होनी चाहिए (Land for Raspberry Cultivation) 

वैसे तो रसभरी की खेती सभी प्रकार की भूमिेयों में की जा सकती है। लेकिन इसकी अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्‌टी उपयुक्त रहती है जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो। भूमि का पीएच मान 6.5 से लेकर 7.5 के बीच होना चाहिए।

रसभरी की खेती के लिए कैसे करें खेत की तैयारी

रसभरी की खेती के लिए जून के प्रथम सप्ताह में मिट्‌टी पलटने वाले हल (Reversing Plow) की सहायता से खेत की दो बार अच्छे से जुताई करें। इसके बाद कल्टीवेटर (Cultivator) से तीन से चार बार जुताई करके मिट्‌टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। 

रसभरी की खेती का उचित समय (Suitable time for Raspberry Cultivation)

रसभरी की खेती का उचित समय 20 जून से लेकर 5 जुलाई तक का माना जाता है। लेकिन अब पॉलीहाउस में फलों की खेती होने लगी है, ऐसे में रसभरी की खेती को पॉलीहाउस में 12 महीने की जा सकती है।

रसभरी के बीजों की बुवाई व रोपण (Sowing and Planting)

रसभरी को खेत में रोपाई करने से पूर्व सबसे पहले इसकी नर्सरी में पौध तैयार की जाती है। इसके लिए बीज की बुवाई की जाती है। बीज बुवाई के लिए एक हैक्टेयर में 200 से 250 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त रहती है। जब वे अंकुरित होकर कुछ बड़े हो जाते हैं तब इन पौधों की खेत में रोपाई की जाती है। इसके पौधों की रोपाई ऊंची मेडों या 12 से 15 सेमी ऊंची क्यारियों में करनी चाहिए। रोपाई करते समय सीमित बढ़वार के लिए कतार से कतार की दूरी 100 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी रखी जाती है। वहीं असीमित बढ़वार के लिए कतार से कतार की दूरी 125 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 80 सेमी रखी जाती है। इसे आप भूमि की उर्वरता तथा रोपण के समय के अनुसार घटा व बढ़ा भी सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई (Weed Control and Irrigation) 

रसभरी में बहुत अधिक खरपतवार का प्रकोप रहता है, इसलिए इसका नियंत्रण करना जरूरी है। इसके लिए समय-समय पर खेत से खरपतवार निकालते रहे। इसके लिए खुरपी का प्रयोग करें। निराई करके खरपतवार को निकाल कर खेत से कहीं दूर ले जाकर फेंक दें। रसभरी के पौध का रोपण करते समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।

फलों की तुड़ाई और पैकिंग (Fruit Harvesting and Packing)

रसभरी के फल करीब जनवरी से पकने शुरू हो जाते हैं। फलों का ऊपरी छिलका पीला हो जाता है तो समझना चाहिए कि फल तोड़ने के लिए तैयार है। इस समय इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। रसभरी को पैकिंग करके उन्हें मार्केट में बेचा जाता है। इसके लिए बांस की डलियां, टोकरियां, प्लास्टिक क्रेटो का प्रयोग किया जाता है। यदि सही तरीके से इसकी पैकिंग की गई हो तो इसका फल 72 घंटे यानि 3 दिन तक खराब नहीं होता है।

कितना है रसभरी का बाजार भाव (Market Rate of Raspberry) 

रसभरी के खेती कर रहे एक किसान के अनुसार रसभरी की खेती में प्रति बीघा 40 से 50 हजार रुपए का खर्चा आता है। वहीं इसकी फसल तैयार होने पर प्रति बीघा में एक लाख रुपए की आय प्राप्त होती है। इस फल की मांग आगरा, अजमेर, जयपुर, दिल्ली, ग्वालियर आदि शहरों में होने से यहां पर इसका भाव 70 से 80 रुपए किलोग्राम तक मिल जाता है। वहीं मुंबई में इसके भाव 250 रुपए प्रति किलोग्राम तक मिल जाते हैं। अजमेर में इस फल की मांग काफी है।

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