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अरहर की नई किस्म विकसित, कम पानी में होगी बंपर पैदावार

प्रकाशित - 07 May 2023

जानें, अरहर की इस नई किस्म की विशेषता और लाभ

देश में बीज पर लगातार अनुसंधान चलते रहते हैं। भारत की मौसमी अनिश्चितताओं, प्रदूषण और पानी की कमी की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार एक तरफ जहां जल संचयन, पेड़-पौधे लगाने पर जोर दे रही है। वहीं देश के कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों की आय में बढ़ोतरी लाने के लिए बीज पर अनुसंधान कर रहे हैं। कोटा कृषि विश्वविद्यालय से किसानों के लिए एक बहुत ही अच्छी खबर निकलकर सामने आ रही है कि इस विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की नई प्रजाति विकसित कर ली है। ये ऐसी प्रजाति है जो अरहर की खेती (Arhar Cultivation) में सवा से डेढ़ गुना तक मुनाफा बढ़ा सकती है। ऐसे इलाके जहां पानी की काफी कमी का सामना करना पड़ता है, इस अरहर किस्म की खेती (Cultivation of Arhar Varieties) वहां भी की जा सकती है क्योंकि इस नई किस्म के लिए पानी की काफी कम जरूरत पड़ती है।

ट्रैक्टर जंक्शन के इस पोस्ट में अरहर की विकसित नई किस्म के बारे में, इसकी खासियत आदि की पूरी जानकारी दे रहे हैं।

2 साल की कड़ी मेहनत से अरहर की नई किस्म एएल-882 विकसित

अरहर की विकसित की गई नई किस्म का नाम एएल 882 है। कोटा के कृषि वैज्ञानिक इस किस्म की खोज में 2 साल से लगे हुए थे। 2 साल की कोशिशों के बाद आखिरकार सफलता हाथ लगी है। चूंकि बीज किसी भी खेती का आधार होता है। अगर बीज अच्छे नहीं होंगे, बीज पर रिसर्च नहीं किए जाएंगे तो किसानों को खेती में मुश्किलों और समय के साथ कम उत्पादन का सामना करना पड़ेगा। यही वजह है कि क्वालिटी से लैस बीजों और उच्च उत्पादकता वाले बीजों के रिसर्च के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रयासरत रहते हैं। अरहर के उन्नत बीज से देश में किसानों को अरहर के उत्पादन से न सिर्फ सीधा मुनाफा मिल सकेगा, बल्कि कम सिंचाई और अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता की वजह से किसान इस खेती में अपनी लागत को भी कम कर पाएंगे। बता दें कि अरहर की इस प्रजाति के दानों का वजन केवल 8 से 9 ग्राम ही है। 

कितना होगा किसानों को फायदा (How much will the Farmers Benefit)

अरहर की विकसित इस नई किस्म एएल 882 से किसान प्रति हेक्टेयर 16 से 19 क्विंटल तक की पैदावार कर सकेंगे। चूंकि उत्पादन अधिक हो रहा है इसलिए किसानों को फायदा भी जबरदस्त होने वाला है। किसान इस किस्म से अरहर की खेती कर फसलो को कई रोगों से बचा सकते हैं। अरहर की ये प्रजाति रोग प्रतिरोधक प्रजाति है। अरहर में होने वाला उखटा रोग भी नहीं हो सकेगा। इसलिए इस किस्म से अरहर की खेती करना किसानों को अधिक पैदावार, कम सिंचाई, कम लागत जैसे कई मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने भी दी मंजूरी

अरहर की विकसित इस नई किस्म को आईसीएआर ने भी मंजूरी दे दी है। किसान खेतों में इस प्रजाति के बीज का उपयोग कर सकते हैं। बता दें कि अधिक उपज के लिए किसान अरहर के पुष्प निकलने के बाद एनपीके जैसे घुलनशील उर्वरक की नियमित मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं। पौधे की ऊंचाई 200 से 210 सेंटीमीटर तक होती है।

अब कैसा होगा अरहर की खेती का भविष्य

सरकार देश में लगातार दलहन और मोटे अनाजों की खेती (Cultivation of Millets) को प्रोत्साहित कर रही है। दलहन फसलों की बाजार में बड़ी मांग देखने को मिलती है। अरहर की खेती करने वाले किसानों को कोटा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान से बड़ी मदद मिलने वाली है। अनुसंधान से विकसित अरहर की नई किस्म से बीज की उत्पादकता में काफी वृद्धि होगी। सिंचाई की कम आवश्यकता होगी, इससे देश में वैसे स्थानों पर भी अरहर की खेती (Arhar Cultivation) की जाएगी जहां पानी की कमी है। साथ ही कम पानी की जरूरत होने से किसान अपनी लागत को भी कम कर पाएंगे। इस किस्म से खेती करने पर किसानों को अरहर की खेती से बड़ा लाभ मिलने वाला है। देश में अरहर कृषि क्षेत्र में बढ़ोतरी हो पाएगी। देश अपनी दाल की जरूरतों को बड़ी मात्रा में स्टॉक कर पाएगा और जरूरत पड़ने पर इसे निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमाया जा सकेगा।

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