अरंडी की खेती से किसान होंगे मालामाल, जानें, पूरी जानकारी

Share Product प्रकाशित - 22 Oct 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

अरंडी की खेती से किसान होंगे मालामाल, जानें, पूरी जानकारी

बाजार में इसके तेल के मिलते हैं अच्छे भाव, जानें, इसकी खेती का सही तरीका

हमारे देश के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ अपनी आय को बढ़ाने के लिए व्यावसायिक खेती की तरफ रुख कर रहें हैं। इसी कड़ी में किसान भाई अरंडी की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। भारत में अरंडी की खेती औषधीय तेल के लिए की जाती है। अरंडी का पौधा झाड़ी के रूप में विकास करता है। इसकी खेती व्यापारिक तौर पर अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है। भारत अरंडी का सबसे बड़ा उत्पादक व निर्यातक देश है। भारत अरंडी का निर्यात 60 से 80 प्रतिशत तक दुनिया के अन्य देशों को करता है।

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अरंडी एक व्यावसायिक फसल है। अरंडी की खेती में कम लागत लगती है और अरंडी के तेल का व्यावसायिक महत्व होने के कारण इसे नकदी फसल भी कहा जा सकता है। किसान अरंडी की खेती करके दोहरा लाभ कमा सकते है। अरंडी की फसल की पेराई करके आप तेल निकाल कर बेच सकते हैं। उसके बाद इसकी बची हुई खली को खाद के रूप में बेंच सकते हैं। इस तरह से आप अरंडी के खेती करके दो गुना लाभ प्राप्त कर सकते हैं। किसान भाइयों आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से अरंडी की खेती से जुड़ी सभी जानकारी पर विस्तार से चर्चा करेंगे।भारत में अरंडी की खेती करने वाले प्रमुख राज्यभारत में अरंडी की खेती करने वाले प्रमुख राज्य मुख्यतः गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं।

अरंडी के तेल का उपयोग

अरंडी के तेल के इस्तेमाल से, हाइड्रोलिक ब्रेक तेल, कपड़ा, साबुन, प्लास्टिक, कपड़ा की रंगाई, वार्निश और चमड़े आदि चीजों को बनाया जाता है। इसके अलावा अरंडी के तेल को पाचन, पेट दर्द, और बच्चों की मालिश करने के लिए भी उपयोग किया जाता है तथा तेल की पेराई करते समय निकलने वाली खली का उपयोग जैविक खाद के रूप में होता है।

अरंडी की खेती करते समय ध्यान रखने वाली बातें

अरंडी की खेती करते समय हमें कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं। वो इस प्रकार से हैं:-

अरंडी की खेती के लिए कैसी होनी चाहिए जलवायु और मिट्टी

अरंडी की खेती करने के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी के पौधे के विकास और बीज पकने के समय अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी की खेती में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि अरंडी की जड़ें गहरी होतीं हैं और ये सूखा सहन करने में सक्षम होतीं हैं। वहीं अरंडी की खेती करने के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसकी खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए। अरंडी सभी प्रकार की मिट्‌टी उगाई जा सकती है। इसकी खेती करने के लिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये अन्यथा फसल खराब होने का खतरा रहता है।

अरंडी की खेती के लिए कैसे करें खेत की तैयारी

अरंडी की खेती करने के लिए खेत की गहरी जुताई करनी आवश्यक होता है, क्योंकि अरंडी के पौधे की जड़ें काफी गहराई तक जातीं हैं। अरंडी की खेती में बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए सबसे पहले ट्रैक्टर से जोड़कर मिट्टी पलटने वाले हल 2 से 3 बार जुताई करें। उसके बाद दो तीन जुताई कल्टीवेटर या हैरों से करें। उसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। खेत में उपयुक्त नमी रहने पर ही जुताई करें। खेत में नमी रहने पर जुताई करने से खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी और खरपतवार भी खत्म हो जाएगा। इस तरह खेत को तैयार करने के बाद एक सप्ताह तक खेत को छोड़ देना चाहिए। जिससे अरंडी की फसल की बुवाई करने से पहले कीट व रोग धूप में नष्ट हो जाते हैं।

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अरंडी की बुवाई का तरीका

अरंडी की बुआई समानतय: जुलाई और अगस्त महीने में करना उपयुक्त होता हैं। अरंडी को हाथ से तथा सीड ड्रिल की मदद से भी बुआई की जा सकती है। पर्याप्त सिंचाई व्यवस्था वाले क्षेत्रों में अरंडी की फसल की बुआई करते एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी एक मीटर या सवा मीटर रखें और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी आधा मीटर रखें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था उपलब्ध नहीं हैं वहां लाइन और पौधों की दूरी कम रखनी चाहिए। एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी आधा मीटर होनी चाहिए और एक पौधों से दूसरे पौधों की दूरी भी आधा मीटर होनी चाहिए।

अरंडी की बुवाई के लिए कितनी रखें बीज की मात्रा

अरंडी की खेती करने के लिए बीज की मात्रा , बीज का आकार और बुआई के तरीके और भूमि के अनुसार तय होती है। औसतन अरंडी की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अरंडी की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्म का प्रमाणित बीज ही लेना चाहिए। यदि आप पुराना बीज बुवाई के लिए इस्तेमाल कर रहें है तो भूमिगत कीटों और रोगों से बचाव के लिए बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम पानी से घोल बनाकर बीजों को बुआई से पहले भिगो कर उपचारित जरुर कर लें।

अरंडी की खेती में खाद एंव उर्वरक प्रबंधन

अरंडी की खेती करते समय अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही मात्रा में खाद व उर्वरक प्रबंधन बहुत जरूरी हैं। अरंडी का उत्पादन व बीजों में तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए बुआई से पहले 20 किलोग्राम सल्फर को 200 से 250 किलोग्राम जिप्सम में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिये। अरंडी की खेती में जहां सिंचाई की प्रर्याप्त सिंचाई व्यवस्था उपलब्ध है, वहां 80 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करना चाहिए तथा जहां सिंचाई की प्रर्याप्त सिंचाई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है वहां 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसमें से खेत की तैयारी करते समय आधा नाइट्रोजन और फास्फोरस को प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिये। शेष बचा हुआ आधा भाग फसल की बुवाई के 30 से 35 दिन के बाद सिंचाई के समय खड़ी फसल पर डालना उपयुक्त होता हैं।

अरंडी की फसल में कब-कब करें सिंचाई

अरंडी खरीफ सीजन की फसल है, उस समय वर्षा का समय होता है। जुलाई अगस्त के मौसम में बुआई करने पर डेढ़ से दो महीने तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। जब अरंडी के पौधों की जड़ों का विकास अच्छी तरह से हो जायें और जमीन पर इसका पौधा अच्छी तरह से पकड़ बना लें और जब खेत में नमी की मात्रा आवश्यकता से कम होने लगे तब पहला पानी लगाना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक 15 दिन के अंतराल में वर्षा न होने पर पानी देना चाहिए।

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अरंडी की फसल में निराई-गुड़ाई कार्य

अरंडी की खेती करते समय फसल में खरपतवार का प्रबंधन शुरुआत से ही शुरु कर देना चाहिए। जब तक अरंडी के पौधे आधा मीटर के न हो जाएं तब तक समय-समय पर खरपतवार को हटाते रहना चाहिए तथा समय-समय पर निराई-गुड़ाई भी करते रहना चाहिए। इसके अलावा रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए एक किलोग्राम पेंडीमेथालिन को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन छिड़काव करना चाहिए। अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए अरंडी की फसल में 25 से 30 दिन में एक बार निराई अवश्य करना चाहिए।

अरंडी की फसल की कब करें कटाई 

अरंडी की खेती में फसल के पूरा पकने का इंतजार नहीं करना चाहिए। जब इसके पत्ते व डंठल पीले या भूरे दिखने लगें तभी कटाई कर लेनी चाहिए क्योंकि फसल के पकने पर दाने गिर कर चिटक जाते हैं। इसलिए फसल के पकने से पहले ही इनकी कटाई करना लाभदायक रहेगा। अरंडी की फसल में पहली तुड़ाई 100 दिनों के बाद करना चाहिए। इसके बाद हर माह आवश्यकतानुसार तुड़ाई करते रहना सही रहता है।

अरंडी की फसल से प्राप्त उत्पादन व कमाई

अरंडी की खेती में फसल की उपज सिंचित क्षेत्र में अच्छे प्रबंधन के साथ की जाए तो प्रति हैक्टेयर 30 से 35 क्विंटल तक की उपज प्राप्त हो सकती है जबकि असिंचित क्षेत्र में 15 से 24 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त हो सकती है।
अब बात करें अरंडी की फसल से कमाई की तो बाज़ार में इसकी कीमत 5000 से 6000 रुपए तक की होती हैं। किसान भाई इसकी एक हैक्टेयर में खेती करके आप आराम से 1 लाख से 1.25 लाख तक आसानी से कमा सकते हैं।

 

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