ग्लोबल वार्मिंग : गेहूं, धान और मक्का की उपज में गिरावट की संभावना

Share Product प्रकाशित - 08 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

ग्लोबल वार्मिंग : गेहूं, धान और मक्का की उपज में गिरावट की संभावना

जानें ग्लोबल वार्मिंग का कैसे पड़ रहा कृषि क्षेत्र पर असर

ग्लोबल वार्मिंग भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लिए खतरनाक हैं। दिन-प्रतिदिन जलवायु परिवर्तन होने के साथ-साथ इसके बढ़ते प्रभाव का असर कृषि क्षेत्र में भी देखा जा रहा है। इसरो (ISRO) के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्ष 2080 तक देश में गेहूं की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की कमी होने का अनुमान लगाया है। ग्लोबल वार्मिंग का असर मौसम पर दिखने लगा है। ना समय पर बारिश हो रही है, ना ही समय पर गर्मी पड़ रही है और न ही सर्दी। हाल ही में इसरो के वैज्ञानिकों ने एक स्टडी की। स्टडी के अनुसार आने वाले सालों में गेहूं, मक्का, धान की पैदावार भी तेजी से घट जाएगी। किसान भाईयों आज ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी अन्य जानकारी साझा करेंगे।

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जानें, कितनी घट सकती है गेहूं, धान और मक्का की पैदावार

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के देहरादून स्थित सेंटर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में ग्लोबल वार्मिंग पर स्टडी की। इस स्टडी में सामने आया कि ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता असर फसल उत्पादन क्षमता को प्रभावित कर रहा हैं। आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग यदि इसी तेजी से बढ़ती रही तो वर्ष 2080 तक भारत में गेहूं की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की कमी आने की संभावना है। इसके अलावा धान की पैदावार में 30 प्रतिशत तक और मक्का की फसल में 14 प्रतिशत तक की कमी देखी जा सकती है। इसरो की इस स्टडी के बाद यदि देश में यह स्थिति आई तो डिमांड और सप्लाई के बीच खतरनाक असंतुलन पैदा हो जाएगा। जिससे आम जनमानस का जीवन प्रभावित होगा।

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इसरो ने की उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल क्षेत्र में स्टडी

इसरो ने देश के उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल क्षेत्र में स्टडी की। स्टडी करने वाले इसरो के साइंटिस्ट के अनुसार, चार सदस्यीय साइंटिस्ट की टीम ने 3 साल तक 'क्लाइमेट चेंज इंपैक्ट ऑन एग्रीकल्चर' विषय पर उत्तराखंड के देहरादून, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने पिछले तीन सालों के दौरान सेटेलाइट डाटा के माध्यम से यह स्टडी पूरी की।

पिछले 30 सालों में 40 प्रतिशत तक बढ़ी ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

इसरो के साइंटिस्ट की टीम ने वर्ष 1960 से 1990 तक के बीच के वर्षों पर स्टडी की। इस दौरान ग्लोबल वार्मिंग में कृषि क्षेत्र पर प्रभाव को लेकर विभिन्न प्रकार के इंडेक्स तैयार किए गए। 1960 से 1990 की तुलना में वर्ष 1990 से लेकर 2020 के बीच ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा पाया गया हैं। स्टडी में सामने आया कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है। समय पर बारिश न होना, सूखा पड़ना, गर्मी अधिक होना, ठंड का कम होना आदि सब ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही हो रहा है।

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ग्लोबल वार्मिंग के साइड इफेक्ट

इसरो के साइंटिस्ट ने स्टडी में ग्लोबल वार्मिंग के अन्य कई साइड इफेक्ट भी देखे। साइड इफेक्ट में सामने आया कि खेतों में कीटों की संख्या बढ़ गई है। रबी, खरीफ, दलहन की फसलों की पैदावार घट रही है। सूखे की स्थिति भी बढ़ने लगी है। ग्रीन हाउस गैस का असर बढ़ता जा रहा है। कार्बन डाईऑक्साइड गैस भी वायुमंडल में बढ़ी है। इसके अलावा वायुमंडल में उन गैसों की संख्या भी बढ़ रही है जो वातावरण को गर्म करती है।

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