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अंगूर की खेती से बढ़ रही किसानों की इनकम, जानें, पूरी जानकारी

प्रकाशित - 20 Dec 2022

अंगूर की खेती से कैसे करें बंपर कमाई, जानें, खेती का सही तरीका

अंगूर की खेती महाराष्ट्र में सबसे अधिक होती है। इसकी खेती से यहां के किसान काफी अच्छा पैसा कमा रहे हैं। महाराष्ट्र के नासिक में इसकी सबसे अधिक खेती की जाती है। देश का करीब 70 प्रतिशत अंगूर नासिक में उगाया जाता है। इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती की जाती है। अंगूर अधिकतर ताजा ही खाया जाता है इसके अलावा इससे किशमिश, ज्यूस एवं मदिरा भी बनाई जाती है। किसान अंगूर की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो किसान इससे काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको अंगूर की बाजार में डिमांड, अंगूर की मिश्रिम खेती, अंगूर की खेती का सही तरीका सहित अंगूर की खेती में ध्यान रखने वाली खास बातों की जानकारी दे रहे हैं, तो बने रहिये हमारे साथ।

काले अंगूर की किस्म की रहती है ज्यादा डिमांड

वैसे तो बाजार में हरे अंगूर, लाल अंगूर और काले अंगूर सभी बिकते हैं। लेकिन बाजार में काले अंगूरों की डिमांड ज्यादा रहती है। इसके बाजार में भाव भी सादा अंगूर के मुकाबले अधिक मिलते हैं। इससे किसानों को बाजार की डिमांड के अनुसार अंगूर की खेती करनी चाहिए।

अंगूर की खेती के लिए करें अच्छी किस्मों का चयन

किसानों को अंगूर की खेती करते समय अच्छी किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि उत्पादन के साथ ही बेहतर स्वाद हो ताकि वे बाजार में अच्छे दामों पर बिक जाएं। अंगूर की कई प्रकार की किस्में आती है, उनमें से आप अपने क्षेत्र के अनुसार चयन करके इसकी खेती कर सकते हैं। वहीं आप अंगूर की जल्द पकने वाली किस्मों का चयन कर सकते हैं ताकि बारिश या बादल से इसकी खेती को कम से कम नुकसान हो। बता दें कि अंगूर के पकते समय बारिश या बादल का होना अच्छा नहीं माना जाता है। इससे दाना फटने रहने की संभावना बनी रहती है और फल की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अंगूर की अच्छी किस्मों में आप परलेट और पूसा सीडलेस अच्छी किस्में मानी जाती है।

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अधिक मुनाफे के लिए करें अंगूर की मिश्रित खेती

यदि आप अंगूर की खेती से अधिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इसकी मिश्रित खेती करनी चाहिए। इसके लिए आप हरे अंगूरों के साथ ही लाल और काले अंगूर की खेती कर सकते हैं। इससे आप बाजार मांग के अनुसार अंगूर की सप्लाई करके अच्छा पैसा कमा सकेंगे।

अंगूर की खेती के लिए कैसी होनी चाहिए भूमि और जलवायु

अंगूर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली, दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। इसके विपरित अधिक चिकनी मिट्टी इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त होती है। वहीं बात करें इसकी खेती के लिए जलवायु की तो इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतू अनुकूल रहती है।

अंगूर के लिए कैसे बनाएं कलमें

अधिकतर अंगूर का रोपण कलम द्वारा किया जाता है। इसके लिए जनवरी माह में कांट-छांट से निकाली टहनियों से कलमें ली जाती है। इसमें इस बात का ध्यान रखें कि कलमें हमेशा स्वस्थ एवं परिपक्व टहनियों से लिए ली जानी चाहिए। इसमें आमतौर पर 4 – 6 गांठों वाली 23 – 45 से.मी. लंबी कलमें ली जाती हैं। कलम बनाते समय यह ध्यान रखें कि कलम का नीचे का कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए एवं ऊपर का कट तिरछा होना चाहिए। इन कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार की गई तथा सतह से ऊंची क्यारियों में लगा दिया जाता हैं। इसके बाद एक साल पुरानी जड़युक्त कलमों को जनवरी माह में नर्सरी से निकल कर खेत में रोप दिया जाता है।

खेत में इस तरह करें अंगूर का रोपण

अंगूर की कलम की रोपाई करने के लिए 90 x 90 से.मी. आकर के गड्ढे खोद लें। अब इसमें 1/2 भाग मिट्टी, 1/2 भाग गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 30 ग्राम क्लोरिपाईरीफास, 1 कि.ग्रा. सुपर फास्फेट व 500 ग्राम पोटेशीयम सल्फेट आदि को अच्छी तरह मिलाकर इन गड्‌ढों में भर दें। जनवरी माह में इन गड्ढों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को लगा दें। बेल लगाने के तुंरत बाद पानी जरूर दें।

अंगूर की बेलों को साधने के लिए किस तकनीक का करें उपयोग

अंगूर बेल के रूप में बढ़ता है। इसलिए इसको साधने के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है। हमारे देश में इसकी बेल साधने की पंडाल, बाबर, टेलीफोन, निफिन एवं हैड आदि कई पद्तियां प्रचलित हैं। लेकिन व्यवसायिक स्तर पर पंडाल पद्धति उपयुक्त रहती है।

क्या है अंगूर की पंडाल तकनीक

पंडाल पद्धति द्वारा बेलों को साधने हेतु 2.1 – 2.5 मीटर ऊंचाई पर कंक्रीट के खंभों के सहारे लगी तारों के जाल पर बेलों को फैलाया जाता है। जाल तक पहुंचने के लिए केवल एक ही ताना-बना दिया जाता है। तारों के जाल पर पहुंचने पर ताने को काट दिया जाता है ताकि पार्श्व शाखाएं उग आएं। उगी हुई प्राथमिक शाखाओं पर सभी दिशाओं में 60 सेमी दूसरी पार्श्व शाखाओं के रूप में विकसित किया जाता है। इस तरह द्वितीयक शाखाओं से 8 – 10 तृतीयक शाखाएं विकसित होंगी इन्ही शाखाओं पर फल लगते हैं।

अंगूर में खाद व उर्वरक की मात्रा

यदि अंगूर की बेल को पंडाल पद्धति से साधा गया है और 3 x 3 मी. की दूरी पर लगाई गई है तो अंगूर की 5 वर्ष की बेल में करीब 500 ग्राम नाइट्रोजन, 700 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 700 ग्राम पोटेशियम सल्फेट एवं 50 – 60 कि.ग्रा. गोबर की खाद की आवश्यकता होती है।

अंगूर की तुडाई और उत्पादन

बेल से अंगूर तोड़ने बाद पकते नहीं हैं। इसलिए इसकी तुड़ाई उसी समय करनी चाहिए जब फल खाने योग्य हो जाएं और आप इसे बेचने बाजार जा रहे हो। इसकी तुड़ाई हमेशा सुबह या शाम को करनी चाहिए। अब बात करें इसके उत्पादन की तो यदि सही वैज्ञानिक विधियां और अच्छा रखरखाव किया जाए तो तीन साल बाद ही इससे फस मिलना शुरू हो जाते हैं। इसके बाद इससे 20-30 साल तक फल प्राप्त किए जा सकते हैं। इसका उत्पादन इसकी किस्म पर भी निर्भर करता है। यदि आप इसकी अच्छी किस्म लगाते हैं तो बेहतर उत्पादन मिलता है। जैसे परलेट किस्म के 14 – 15 साल के बगीचे से 30 – 35 टन उत्पादन मिल सकता है। वहीं पूसा सीडलेस से 15 – 20 टन प्रति हैक्टेयर फल लिया जा सकता है।

अंगूर की खेती में ध्यान रखने वाली खास बातें

  • अंगूर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली, दोमट मिट्टी का चुनाव करना चाहिए। इसकी खेती के लिए अधिक चिकनी मिट्‌टी अच्छी नहीं रहती है।

  • इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतु अनुकूल रहती है।

  • अंगूर की खेती का उचित समय दिसंबर से जनवरी माना जाता है।

  • अंगूर की फसल को अनेक प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है, इसलिए नियमित और संतुलित मात्रा मे खाद का प्रयोग करना चाहिए।

  • खाद एवं उर्वरकों को अच्छी तरह मिट्टी में मिलाने के बाद तुंरत सिंचाई करनी चाहिए।

  • खाद को मुख्य तने से दूर 15-20 सेमी गहराई पर डालना चाहिए।

  • अंगूर की फसल मे पर्याप्त नमी बनाए आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।

  • अंगूर की फसल में ड्रिप इरीगेशन सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल फायदेमंद रहता है। इससे सिंचाई में कम पानी लगता है।

  • फलों की तुड़ाई के बाद भी एक सिंचाई अवश्य कर करनी चाहिए।

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