प्रकाशित - 20 Dec 2023
रबी फसलों में गेहूं की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। उत्तरी भारत के करीब-करीब सभी राज्यों में गेहूं की खेती की जाती है। इसमें राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और बिहार में सबसे ज्यादा गेहूं की खेती की जाती है। लेकिन पंजाब के मुक्तसर में गेहूं की खेती पर संकट मंडरा रहा है। दरअसल यहां गेहूं में तना छेदक रोग का प्रकोप हो रहा है जिससे गेहूं की फसल प्रभावित हो रही है। इस रोग के प्रकोप से गेहूं के पौधे पीले हो रहे हैं। इसका प्रभाव फसल की पैदावार और क्वालिटी दोनों पर पड़ रहा है। इससे किसानों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में जिन किसानों ने इस बार गेहूं की फसल ली है, उन्हें इस रोग की जानकारी होना बेहद जरूरी है ताकि समय रहते इसकी रोकथाम कर संभावित हानि से बचा जा सकें।
यह गुलाबी, सफेद व पीले रंग का एक कीट होता है जो पौधे की बालियां निकलने के बाद आक्रमण करता है। इससे बालियां पूरी तरह से सूख जाती हैं। इन बालियों में दाना नहीं बन पाता है और ऐसे पौधे की बालियां खेत में सीधी खड़ी और सफेद दिखाई देती हैं। इस रोग की रोकथाम शुरुआत में ही कर लेनी चाहिए अन्यथा फसल को काफी नुकसान होता है, कई बार तो पूरी फसल खराब हो जाती है।
यदि प्रकोप कम है, तो क्षतिग्रस्त पौधों को लार्वा सहित जड़ से हटा दें और उसे नष्ट कर दें। वहीं रोग का अधिक प्रकोप होने की दशा में मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एसएल प्रति 10 मी.ली या क्विनालफोस 25 प्रतिशत ईसी प्रति दो मी.ली 10 लीटर पानी में मिलाकर दो बार या 45 दिन और 55 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए।
सरसों की तरह ही गेहूं में भी माहू कीट का प्रकोप से फसल को नुकसान होता है। इस कीट के प्रकोप से पहले पौधों की निचली पत्तियों में पीलापन आ जाता है। यदि इसका प्रकोप आपके खेतों में प्रतिवर्ष हो रहा है तो इसके लिए आपको इसकी रोकथाम का उपाय करना चाहिए। इसके लिए आप खेत की अंतिम जुताई से पूर्व खेत में क्लोरोपायरीफॉस 1.5 प्रतिशत डस्ट को 25 किलो प्रति हैक्टेयर के दर से मिला दें। इससे दीमक व अन्य भूमि में रहने वाले कीटों की रोकथाम होती है। वहीं खड़ी फसल की जड़ों को मोहू कीट से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. का प्रयोग 1.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ करना चाहिए। इस प्रकार क्लोरपायरीफॉस बूंद-बूंद करके गिरे और पानी के साथ पूरा खेत उपचारित हो जाए।
गेहूं की फसल में रतुआ रोग भी लग जाता है। यह पीला, भूरा व काले रंग का कीट होता है। इनमें पत्तियां तथा तनों पर रतुआ की किस्म के आधार पर उसी रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए गेहूं की नई और अवरोधी किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। यदि फसल में रतुआ का प्रकोप हो गया है तो जिनेब या डाइथेन एम-45 का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
गेहूं में इस रोग के प्रकोप से इसकी बालियों में दाने की जगह काला चूर्ण भरा जाता है। इसकी रोकथाम के लिए वीटावैक्स या कारबेन्डाजीम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या टेबूकोनाजोल 1.25 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करने के बाद ही उसकी बुवाई करनी चाहिए। इससे इस रोग से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है।
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