प्रकाशित - 25 May 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
10 Tips for Sowing Cotton : राजस्थान के किसानों के लिए कपास की खेती (Cotton Cultivation) इस समय सबसे अहम कार्यों में से एक है। इन दिनों किसान अपने-अपने खेतों में कपास की बुवाई के काम में जुटे हुए हैं, लेकिन अगर ये बुवाई वैज्ञानिक सलाह और उन्नत तकनीकों के साथ की जाए तो पैदावार कई गुना बेहतर हो सकती है। कपास की अच्छी पैदावार के लिए यह जरूरी है कि किसान पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ वैज्ञानिक सलाह और उन्नत तकनीकों को भी अपनाएं। बुवाई के समय थोड़ी सी सावधानी, सही दूरी, संतुलित पोषण और समय पर कीट प्रबंधन से न केवल फसल की क्वालिटी बेहतर होगी बल्कि पैदावार में भी बढ़ोतरी होगी।
कृषि विभाग ने राज्य की जलवायु व किसानों को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स साझा किए हैं, जिन्हें अपनाकर न केवल कपास के उत्पाद में बढ़ोतरी होगी बल्कि कीटों और रोगों से भी फसल को बचाया जा सकेगा। आइए, जानते हैं कृषि विशेषज्ञों द्वारा दिए गए कपास की बुवाई के संबंध में 10 आसान और उपयोगी टिप्स।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बीटी कपास की बुवाई का सही समय 1 मई से 20 मई के बीच का माना जाता है। लेकिन इस समय पड़ रही भीषण गर्मी को देखते हुए इसकी बुवाई मई के अंतिम सप्ताह में भी की जा सकती है। क्योंकि बुवाई के समय खेत में नमी होना आवश्यक है। बुवाई के लिए प्रति बीघा 450 ग्राम बीज की दर रखनी चाहिए, जिससे पौधों की संख्या संतुलित बनी रहे और उनकी बढ़ोतरी सुचारू रूप से हो।
कपास बुवाई के दौरान कतार से कतार की दूरी 108 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए। कुछ किसान वैकल्पिक रूप से दूरी 67.5 सेंटीमीटर गुणा 90 सेंटीमीटर का भी प्रयोग करते हैं, जो कि खेत की स्थिति और सिंचाई की व्यवस्था पर निर्भर करता है। सही दूरी रखने से पौधों को प्रकाश, हवा और पोषक तत्व बेहतर ढंग से मिलते हैं।
बेहतर उपज के लिए संतुलित पोषण जरूरी है। इसके लिए कृषि विभाग ने सुझाव दिया है कि प्रति बीघा 40 किलो यूरिया तीन हिस्सों में देना चाहिए। इसके तहत पहला हिस्सा बुवाई के समय, दूसरा पहली सिंचाई के समय और तीसरा हिस्सा फूल बनने की अवस्था में दिया जाना चाहिए। फास्फोरस के लिए 22 किलो डीएपी या 62.5 किलो सिंगल सुपर फास्फेट प्रति बीघा बुवाई के समय देना चाहिए। वहीं, पोटाश के लिए 15 किलो एमओपी में से 60 प्रतिशत मात्रा बुवाई के समय दी जानी चाहिए।
कपास बुवाई से पहले खेत की मिट्टी की जांच अवश्य करवानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी है। इससे उर्वरकों का सही और संतुलित उपयोग किया जा सकता है, जिससे फसल की पैदावार और क्वालिटी दोनों बेहतर होती है।
मिट्टी की जांच कराने के बाद यदि जिंक की कमी पाई जाती है तो प्रति बीघा 4 से 6 किलो 33 प्रतिशत जिंक मिलाया जाना चाहिए। जिंक की कमी से पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है और पैदावार में भी गिरावट आ सकती है।
बीटी कपास की फसल पर गुलाबी सुंडी का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2024 में राज्य के कई जिलों में कपास की फसल पर इस कीट का प्रभाव 10 प्रतिशत से अधिक पाया गया था। इससे फसल की क्वालिटी और मात्रा दोनों पर असर पड़ा। इस कीट से बचाव के लिए किसानों को 45 से 60 दिन की फसल पर नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए। साथ ही अधपके टिंडों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए।
बुवाई से पहले गर्मी में गहरी जुताई करना बेहद जरूरी है ताकि मिट्टी में छिपे हुए कीट और उनके अंडे नष्ट हो सकें। इसके अलावा खेत और उसके आसपास के खरपतवारों को भी पूरी तरह से साफ कर देना चाहिए। खरपतवार न केवल पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा करते हैं बल्कि कीटों के पनपने का माध्यम भी बनते हैं।
फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और कीटों के चक्र को तोड़ा जा सकता है। कपास की खेती के साथ दलहनी फसलों का चक्र उपयुक्त माना गया है। साथ ही कम ऊंचाई और कम अवधि वाली किस्मों की बुवाई करने से फसल जल्दी तैयार हो जाती है और कीटों के प्रकोप की संभावना भी कम रहती है।
कपास की बुवाई के 20 से 25 दिन के अंदर खेत में खरपतवारों की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार फसल की वृद्धि पर विपरीत असर डालती है। यदि आवश्यक हो तो हर्बिसाइड का संतुलित उपयोग भी किया जा सकता है, लेकिन इसके प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक ने जानकारी दी है कि कुछ कंपनियां बीज, यूरिया और डीएपी के साथ सल्फर, हर्बिसाइड, पेस्टिसाइड और अन्य उत्पादों को अनावश्यक रूप से टैग कर बेच रही हैं, जो कि नियमों का उल्लंघन है। विभाग ने आपूर्तिकर्ताओं को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे बीज और उर्वरकों के साथ अन्य उत्पादों की टैगिंग नही करें।
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