प्रकाशित - 18 Jan 2024
देश के किसान खेती के अलावा अन्य तरीकों से अपनी आय बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं और पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी, मधुमक्खी पालन आदि को अपनाते हैं। लेकिन कई बार उचित जानकारी के अभाव में असफल हो जाते हैं। वहीं, इन दिनों किसानों के बीच मछली पालन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कई सरकारी योजनाओं के माध्यम से किसानों को खेत में तालाब बनाकर मछली पालन के लिए सब्सिडी भी दी जाती है। लेकिन सभी किसान योजना की पात्रता-शर्तों को पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे में आज हम किसानों के लिए एक ऐसी मछली की जानकारी लेकर आए हैं जिसका पालन किसान एक गहरे टैंक में भी कर सकते हैं और हर साल लाखों रुपए कमा सकते हैं। आईए, ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में इस खास किस्म की मछली के बारे में जानते हैं।
आज हम जिस मछली की बात कर रहे हैं उसे कतला मछली के नाम से जाना जाता है। यह मछली नॉनवेजिटेरियन लोगों की पहली पसंद है। यह मछली खाने में अधिक स्वादिष्ट है। भोजन में इसका सेवन बड़े चाव से किया जाता है। इसमें प्रोटिन अधिक होने के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। इस मछली को भाकुर, थरला, बीचा, थोथा आदि नामों से भी जाना जाता है। यह मछली भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार एवं पाकिस्तान की नदियों एवं स्वच्छ जलस्रोतों में मिलती है तथा प्राकृतिक रूप से धान के खेतों में भी पाई जाती है।
कतला मछली का वजन तेजी से बढ़ता है। एक साल में इसका वजन डेढ़ किलो से ज्यादा हो जाता है। इस मछली की अधिकतम लंबाई 1.8 मीटर और वजन 60 किलोग्राम तक हो सकता है। जो किसान मछली पालन ( Fish Farming )के लिए अपने खेत में तालाब नहीं बनवा सकते हैं वे एक गहरे टैंक में इसका पालन कर सकते हैं। इस मछली का पालन घर में भी संभव है क्योंकि यह मछली मीठे व साफ पानी में तेजी से विकसित होती है। कतला मछली के रहने व विकास के लिए 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान उचित रहता है।
अगर आप कतला मछली का पालन ( Fish Farming ) करना चाहते हैं तो आपको मार्केट में इसके बीज आसानी से मिल जाएंगे। मछली की यह प्रजाति 6 से 8 महीने में तैयार हो जाती है। कतला मछली 3 साल में लैंगिक परिपक्वता पूर्ण कर लेती है। मादा मछली मार्च से जून और नर मछली अप्रैल से जून तक की अवधि में परिपक्व होते हैं। मानसून में यह मछली प्रजनन करती है। सामान्यत : कतला मछली 1.25 लाख प्रति किलो ग्राम अंडे देने की क्षमता रखती है। इस मछली का शरीर चौड़ा और सिर लंबा होता है। पंख काले, पेट रूपहला और सुनहरा होता है। निचला होंठ मोटा होने के साथ-साथ समतल भी होता है। इसकी पीठ, पेट से अधिक बाहर की ओर होती है। किसान भाई बेकार भूमि में फिश फार्म बनाकर इस मछली का पालन कर सकते हैं। लेकिन यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि भूमि ऐसी होनी चाहिए जो पानी को रोक सके। ऐसा करने में रेतीली और दोमट मिट्टी अधिक सक्षम होती है।
कतला मछली पानी के ऊपर आकर भोजन करती है और कीड़े-मकोड़ों को खाना पसंद करती है। 10 मिली मीटर की कतला (फाई) युनीसेलुलर, एलगी, प्रोटोजोअन, रोटीफर का भोजन करती है। इसके अलावा 10 से 16.5 मिली मीटर की फ्राई मुख्य रूप से जन्तुप्लवक का सेवन करती है। इसके भोजन में यदाकदा कीड़ों के लार्वे, सूक्ष्म शैवाल तथा जलीय धास पात एवं सड़ी गली वनस्पति के छोटे टुकड़े भी शामिल होते हैं। किसान को चाहिए कि वे ऐसा भोजन डाले जो सतह पर तैर सके। कतला मछलियों के लिए बनावटी फीड आसानी से बाजार में उपलब्ध है। यह बाजार में गीला पैलेट और शुष्क पैलेट के रूप में मिलता है।
कतला शीघ्र बढ़ने वाली मछली है और स्वाद व पौष्टिकता के चलते इसकी भारी डिमांड है। अभी बाजार में इसकी कीमत 150 से 170 रुपए किलो है। अगर किसान एक एकड़ खेत में तालाब बनाकर इसकी खेती करते हैं तो आसानी से हर साल लाखों रुपए कमा सकते हैं। इसे मरीगल और रोहू मछली के साथ समान अनुपात में पाला जाता है। इसके पालन के लिए किसान बेकार व बंजर भूमि का चयन भी कर सकते हैं।
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