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माधुरी नस्ल के तरबूज का ज्यादा वजन किसानों के लिए बना वरदान

प्रकाशित - 11 May 2023

जानें, तरबूज की माधुरी नस्ल से कैसे करते हैं किसान मोटी कमाई

गर्मी के सीजन के कुछ फल और सब्जियां ऐसी होती हैं जिनकी जबरदस्त डिमांड रहती है। इनमें गर्मी से राहत प्रदान करने वाला और पानी से भरपूर शीतल फल तरबूज इन दिनों पूरे भारत देश में पहली पसंद बना हुआ है। जैसे-जैसे गर्मी का पारा चढ़ता है इसकी मांग बढ़ती ही जाती है। तरबूज का सेवन लोगों को मिठास और सेहत प्रदान करता है तो इसका उत्पादन करने वाले किसानों के लिए तरबूज की खेती (water melon farming) आर्थिक तरक्की का बेहतर विकल्प बन गई है। उत्तरप्रदेश के गाजीपुर और आसपास के कई गांवों के गंगा किनारे खेतों में तरबूज की फसल हजारों एकड़ में लहलहा रही है। तरबूज की यह खेती बनारस से लाए गए तरबूज के एक खास नस्ल के बीजों को उगा कर की गई। इसका बंपर उत्पादन होने पर किसानों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। माधुरी नस्ल के इन तरबूजों की मिठास ने सबको अपनी ओर खींच लिया है। आलम यह है कि माधुरी तरबूजों से जितना उत्पादन हो रहा है उसकी हाथों-हाथ बिक्री हो रही है और किसानों के घरों पर इस नस्ल के तरबूजों ने जैसे धन वर्षा कर दी है। माधुरी नस्ल के तरबूजों का वजन ज्यादा होने से कुल उत्पादन भी अधिक हो रहा है। तरबूज की खेती करने के लिए दूसरे राज्यों के लोग भी इस नस्ल को लगाने की तैयारी कर चुके हैं। यहां ट्रैक्टर जंक्शन पर आपको माधुरी तरबूज की खेती की पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है।

क्या है माधुरी नस्ल के तरबूज की मुख्य विशेषताएं

तरबूज यूं तो मीठा ही होता है लेकिन इसकी बनारस वाली नस्ल का कोई जवाब नहीं है। यह नस्ल माधुरी नस्ल के नाम से लोकप्रिय हो रही है। गाजीपुर एवं आसपास के सैकड़ों किसान इसी नस्ल के तरबूज की खेती कर मोटी कमाई कर रहे हैं। इसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  • यह तरबूज विशेष मीठा होता है।
  • इसमें  पतला छिलका होने से खाने योग्य मैटेरियल ज्यादा होता है।
  • माधुरी नस्ल के तरबूजों का वजन 8 से 12 किलोग्राम तक होता है।
  • इस नस्ल की फसल 70 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है।
  • माधुरी नस्ल के तरबूजों की दिल्ली, झारखंड, बिहार, यूपी, राजस्थान सहित कई राज्यों में भारी मांग है।

तरबूज की अच्छी पैदावार कैसे लें?

यदि आप किसान हैं और तरबूज की खेती करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए पूरी तैयारी करना जरूरी है। तरबूज की खेती 5-8 और 6-6 के पीएच मान वाले खेतों में अच्छी होती है। पहले खेत की मिट्‌टी की जांच करा लें। खेत से मिट्‌टी-पत्थर, कंकड़ आदि को निकालने के लिए टिलेज मशीन का प्रयोग करें। इसके अलावा बीज की रोपाई के बाद सिंथेटिक खाद डाली जाती है। तरबूज के पौधे को बढ़त के लिए ज्यादा जगह चाहिए इसलिए इनके बीजरोपण के समय निश्चित दूरी का मापदंड अपनाया जाना चाहिए। वहीं किसी कृषि अधिकारी की भी सलाह अवश्य लें।  

तरबूज खेती में लागत कम, मुनाफा ज्यादा

तरबूज की खेती करने में ज्यादा लागत नहीं आती। यह एक ऐसी फसल है जो रेतीले इलाके में भी खूब होती है। इसकी खेती करने वाले किसान बताते हैं कि प्रति बीघा तरबूज की बुआई करने पर 18 हजार के लगभग खर्चा आता है। इसकी पहली हार्वेस्टिंग जून के महीने में शुरू हो जाती है। इसके बाद  फलों को बड़े ट्रकों में भर कर मंडी पहुंचाया जाता है। इस बार माधुरी नस्ल के तरबूजों की खास डिमांड पर इन्हें बिहार और झारखंड भी भिजवाया गया। वहां किसानों को लोकल रेट से कई गुना ज्यादा दाम मिले। इससे किसानों को भारी मुनाफा हो पाया। तरबूज की बल्क् यानि थोक बिक्री ज्यादा होने से किसानों को सीधे तौर पर इसका लाभ मिला है। यह कैश फसल है। जिन किसानों ने तरबूज की खेती से ज्यादा कमाया है वे अगली बार भी ऐसी ही फसल करना चाहते हैं। वहीं दूसरे किसान भी धान, गेहूं आदि की फसल के बजाय सब्जियों और तरबूज जैसे ज्यादा बिक्री वाले फलों की खेती करना चाहते हैं।

गंगा किनारे जमीन लीज पर लेकर कर रहे खेती

यूपी के गाजीपुर, भदौरा, दिलदार नगर, गहमर आदि क्षेत्रों में सैकड़ों की तादाद में ऐसे किसान है जिनकी अपनी जमीन नहीं है। ये लोग 15 हजार रुपये प्रति एकड़ लीज पर जमीन लेकर तरबूज और सब्जियों की खेती कर रहे हैं। तरबूज केअलावा ये किसान भिंडी, ककड़ी, लौकी, टिंडा आदि का उत्पादन कर खूब कमाई कर रहे हैं। 

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