Published Mar 08, 2024
पिछले दो दशकों से बारिश लगातार कम हो रही है। परिणाम स्वरूप महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाक, मध्यप्रदेश और तेलंगाना डार्क जोन की श्रेणी में आ गए हैं।
हाइड्रोजेल के इस्तेमाल से बारिश के पानी को खेतों में संग्रहित करके रखा जा सकता है। बारिश नहीं होने की स्थिति में इससे निकलने वाला पानी फसलों की सिंचाई में काम आता है।
हाइड्रोजेल एक पॉलिमर है जिसमें पानी को सोखने की अकूत क्षमता है। यह बायोडिग्रेडेबल होता है और इस कारण इससे प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहता है।
हाइड्रोजेल के कण बारिश के दौरान या सिंचाई के समय खेत में जाने वाले पानी को सोख लेते हैं। जब बारिश नहीं होती है तब इनसे पानी रिसता है और फसलों को पानी मिल जाता है।
हाइड्रोजेल 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी खराब नहीं होता है। एक एकड़ खेत में 1 से 2 किलोग्राम हाइड्रोजेल पर्याप्त होता है। इससे उर्वरा शक्ति को भी नुकसान नहीं पहुंचता है।
एक बार मिट्टी के साथ इस्तेमाल के बाद हाइड्रोजेल की लाइफ 2 से 5 साल तक होती है। समय के साथ यह मिट्टी में मिल जाता है, मिट्टी प्रदूषित नहीं होती है।