Published Jul 27, 2024
बारिश के मौसम में कभी कम तो कभी ज्यादा बारिश होती रहती है। ऐसे में अगर पपीपे के खेत में 24 घंटे से अधिक समय तक पानी का जमाव होता है तो पौधों की जड़े सड़ जाती हैं और पौधों में ऑक्सीजन की कमी होने से उनकी मौत हो जाती है।
बरसात के मौसम में उच्च आर्द्रता और लगातार नमी के कारण विभिन्न तरह के कवक और जीवाणु रोगों को पनपने का अवसर देते हैं। ये रोग गीली परिस्थितियों में तेजी से फैलते हैं और पपीते के पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं।
पपीते के पौधों के पोषण के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन, पोटेशियम और अन्य पोषक तत्व मिलाए जाते हैं, लेकिन कई बार बारिश के कारण ये पोषक तत्व पेड़ में पहुंचने से पहले ही बह जाते हैं। ऐसे में पोषक तत्वों की कमी से पौधे का विकास रुक जाता है।
पपीते की खेती में परागण का बहुत अधिक महत्व है। पपीते के पौधे सफल फूल सेट के लिए मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर निर्भर करते हैं। भारी बारिश परागण गतिविधि को बाधित कर सकती है, जिससे कम पैदावार मिलती है।
बारिश के मौसम में एफिड, फल मक्खियां और व्हाइटफ्लाइज जैसे कीट ज्यादा फैलते हैं। घोंघे और स्लग के प्रसार को भी बढ़ावा मिलता है, जिससे पपीते के पौधों को नुकसान पहुंचता है।
मानसून के सीजन में तेज बारिश व तेज हवाओं का दौर चलता रहता है। इससे पपीते के पौधे उखड़ या टूट जाते हैं।