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पद्म श्री सम्मान: खेती में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए मिला पद्म श्री पुरस्कार

Share Product प्रकाशित - 25 Jun 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

पद्म श्री सम्मान: खेती में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए मिला पद्म श्री पुरस्कार

बाराबंकी के किसान को खेती में अभिनव प्रयोग के लिए मिला पद्म श्री पुरस्कार

कई किसानों ने खेतीबाड़ी और बागवानी में ऐसा कुछ अलग किया जिसकी वजह से उन्हें काफी लाभ तो हुआ ही है साथ ही उन्हें सरकार की ओर से पुरस्कृत भी किया गया। ऐसे ही एक किसान है उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के रामसरन वर्मा। रामसरन वर्मा ने 1980 में अपनी पुश्तैनी जमीन पर 6 एकड़ में खेती का काम शुरू किया और आज वे 300 एकड़ में खेती कर रहे हैं। उन्होंने बागवानी फसलों की खेती कर काफी अच्छा मुनाफा कमाया । उनके द्वारा खेती में अपनाई गई तकनीक को काफी प्रशंसा मिली। इसके लिए अब तक उन्हें छह बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसी के साथ साल 2019 में उन्हें कृषि के क्षेत्र में नया करने के लिए पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से इस किसान की खेतीबाड़ी और बागवानी में मेहनत और लगन से लगे रहने और उससे मुनाफा कमाने की कहानी आपके साथ शेयर कर रहे हैं।

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कौन है किसान रामसरन वर्मा

रामसरन वर्मा बाराबंकी के दौलतपुर गांव के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके पास शुरुआत में 6 एकड़ जमीन थी जिस पर वे खेती का काम करते थे। पहले परंपरागत खेती जैसे- धान और गेहूं की खेती करते थे। इसमें उन्हें कोई ज्यादा लाभ नजर नहीं आया तो उन्होंने कुछ खास करने का इरादा किया। उन्होंने अपना ध्यान परंपरागत फसलों से हटकार फल और सब्जियों की खेती पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने केले की खेती को अपनाया और उससे उन्हें काफी फायदा हुआ। इसी के साथ ही उन्होंने अन्य फल सब्जियों की खेती पर भी ध्यान दिया और अपनी इनकम को बढ़ाया।

पद्म श्री सम्मान: खेती में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए मिला पद्म श्री पुरस्कार

ऐसे हुई शुरुआत

रामसरन वर्मा ने मैट्रिक करने के बाद 1980 में हल-बैलों की मदद से अपनी पुश्तैनी जमीन पर मात्र 6 एकड़ में खेती का काम शुरू किया। फल सब्जियों की तरफ रूझान गया लेकिन वे इसके बारे मेें जानना चाहते थे। खासकर केला किसानों के बारे में उनकी जानने की उत्सुकता थी। इसके लिए वे महाराष्ट्र गए और वहां केला किसानों से केले की खेती की जानकारी ली। उन्हें लगा कि केले की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। उन्होंने शुरुआत में सिर्फ एक एकड़ में केले की खेती करना शुरू किया। इसमें उन्हेें फायदा दिखा तो उन्होंने इसे अधिक क्षेत्रफल में करना शुरू किया। और आज रामसरन करीब 300 एकड़ भूमि पर खेती और बागवानी का काम कर रहे हैं।

केले की खेती में किया टिश्यू कल्चर तकनीक का इस्तेमाल

1990 में टिश्यू कल्चर से केले की खेती की नई तकनीक बाजार में आई। रामसरन वर्मा ने उसे भी अपनाया और काफी अच्छा मुनाफा कमाया। इस तरह से 6 एकड़ जमीन से खेती की शुरुआत करने वाले किसान रामसरन धीरे-धीरे 300 एकड़ की खेती करने वाले एक ऐसे किसान के रूप में लोगों के सामने आए। इसके बाद उनकी खेती में मुनाफा कमाने की कहानी पूरे गांव में चर्चा का विषय बन गई।

खेती में योगदान के लिए मिला पद्मश्री सम्मान

रामसरन वर्मा को बागवानी में अपने बेहतर प्रदर्शन और नई तकनीक का इस्तेमाल करने पर कई बार पुरस्कृत किया गया। इस तरह वे छह बार राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। साल 2019 में रामसरन वर्मा को खेती में अपने योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित होने के बाद वे अपने गांव के किसानों के लिए आदर्श बन गए हैं। आज उनके गांव सहित आसपास के कई किसान उनसे सलाह लेने आते हैं और वे उनका पूरा सहयोग करते हैं।

कैसे 6 एकड़ जमीन से 300 एकड़ तक खेती का फैला दायरा

बागवानी में हाथ आजमाने के बाद रामचरण वर्मा को 6 एकड़ का दायरा कम पडऩे लगा। उन्होंने खेती का दायरा बढ़ाने के लिए आसपास के ऐसे किसानों से संपर्क किया जो खेती नहीं करते थे। उन्होंने उनकी जमीन को खरीदना शुरू किया और उसमें खेती करने लगे। इस तरह अपनी खेती की इनकम से उन्होंने अन्य किसानों की जमीनों को खरीदा और आज 300 एकड़ का फार्महाउस तैयार कर लिया है। आज इस फॉर्म हाउस को देखने के लिए आसपास सहित अन्य जगहों से किसान और लोग देखने के लिए आते हैं और उनके खेती के मॉडल की जानकारी लेते हैं।

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तीस हजार लोगों को दे रहे हैं रोजगार

आज उनके फार्महाउस से 30 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है। वे लोगों की जमीन किराये पर भी लेते हैं और उसका किराया भी देते हैं और साथ ही यदि वे उनके साथ काम करना चाहते हैं तो उन्हें वे रोजगार भी देते हैं। इस तरह आज गांव सहित आसपास के करीब 30 हजार लोग उनसे जुड़े हुए हैं। उनका खेती का काम पूरी तरह सहकारिता के सिद्धांत आधारित है। रामसरन वर्मा की सफलता से प्रेरित होकर आसपास के करीब 10 किलोमीटर के इलाके में अब परंपरागत खेती बंद हो चुकी है और लोग बागवानी और सब्जियों की खेती करने लगे हैं।

फसल चक्र के महत्व को समझा और उत्पादन बढ़ाया

रामसरन ने फसल चक्र के महत्व को समझा और उसे अपनी खेती का हिस्सा बनाया। उनके द्वारा बनाया गया फसल चक्र अपने आप में अलग हैं और उत्पादन बढ़ाने वाला भी। उनके द्वारा बनाए गए फसल चक्र में केले की खेती के बाद आलू, आलू के बाद टमाटर और उसके बाद मेंथा की खेती की जाती है। रामसरन वर्मा ने जो फसल चक्र अपनाया है उससे जमीन की उर्वरता बढ़ती है। रामसरन वर्मा का कहना है कि सही फसल चक्र अपनाने से किसान की खाद में 20 प्रतिशत की बचत होती है और उपज 40 प्रतिशत तक बढ़ती है। इससे किसान की आमदनी में 50 प्रतिशत तक इजाफा होता है। इसके अलावा रामसरन वर्मा ने फसल चक्र के साथ ही फसलों में विविधता पर ध्यान दिया और भूमि की उर्वराशक्ति को बढ़ाने में कामयाबी हासिल की।

खेती, पशुपालन और बागवानी को मिलाकर तैयार किया मॉडल

अपने अनुभव से रामसरन वर्मा ने खेती का एक ऐसा मॉडल बनाया, जिसमें खेती, पशुपालन और बागवानी के लिए जमीन का उपयोग एक संतुलित अनुपात में किया जाता है। रामसरन वर्मा के मॉडल के हिसाब से किसानों को अपनी अपनी जमीन के 25 प्रतिशत हिस्से पर अनाज की खेती करनी चाहिए। 15 से 20 प्रतिशत हिस्से पर सब्जी की खेती करनी चाहिए। इसके अलावा 15 से 20 फीसदी जमीन को पशुपालन के उपयोग में लेना चाहिए और बाकी हिस्से पर किसानों को बागवानी करनी चाहिए। रामसरन वर्मा का कहना है कि इससे किसानों को मौसम में बदलाव से उपज में कमी और उपज ज्यादा होने पर दाम गिरने जैसी समस्याओं का सामना करने में आसानी होती है।

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