प्रकाशित - 16 May 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
वैज्ञानिक ही नहीं अब किसान भी नई तकनीकों का इस्तेमाल करके मशीन बना रहे हैं। किसानों द्वारा किए नवाचार में सरकार भी उनकी सहायता कर रही है। इसी कड़ी में हरियाणा के यमुनानगर जिले के दामला गांव निवासी किसान धर्मबीर कंबोज ने एक ऐसी मल्टी पर्पज फूड प्रोसेसिंग मशीन बनाई है, जो अब देश ही नहीं बल्कि 18 देशों में बेची जा रही है। किसान के इस नवाचार का फायदा देश के किसानों को ही नहीं, विदेश के किसानों को भी मिल रहा है। किसान के इस नवाचार को देखते हुए हरियाणा सरकार ने इस मशीन पर एक लाख रुपए की सब्सिडी देने का फैसला किया है ताकि देश के अधिक से अधिक किसान इसे खरीदकर इसका लाभ प्राप्त कर सकें।
आज हम आपको हरियाणा के एक ऐसे किसान की सक्सेस स्टोरी बता रहे हैं जिन्होंने जीवन में काफी संघर्ष किया और इसके बावजूद कभी हार नहीं मानी। अपने प्रयास से उन्हाेंने मल्टी पर्पज फूड प्रोसेसिंग मशीन बनाई जिसके कारण उनकी ख्याति देश दुनिया में फैल रही है, तो आइए जानते हैं, हरियाणा के किसान धर्मबीर कंबोज की सफलता की कहानी।
धर्मबीर कंबोज का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। महज दसवीं कक्षा तक पढ़े धर्मबीर को आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़नी पड़ी और रोजगार की तलाश में दिल्ली का रुख करना पड़ा। वहां उन्होंने रिक्शा तक चलाया, लेकिन एक दुर्घटना के बाद उन्हें गांव लौटना पड़ा। यहीं से उनके जीवन में नया मोड़ आया। पुश्तैनी जमीन पर एलोवेरा और तुलसी की खेती से उन्होंने फिर से शुरुआत की।
औषधीय खेती करने के बावजूद धर्मबीर को फसलों का उचित मूल्य नहीं मिला। बार-बार हताशा हाथ लगी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने सोचा कि यदि उपज का खुद प्रसंस्करण कर सकें, तो बेहतर मूल्य मिल सकता है। बड़ी मशीनें खरीदने की आर्थिक क्षमता नहीं थी, इसीलिए उन्होंने खुद मशीन बनाने की ठानी। साल 2007 में उन्होंने पहली बार एक फूड प्रोसेसिंग मशीन बनाई। शुरुआत में गुलाब जल निकालने की एक साधारण मशीन से प्रयोग शुरू किया। बागवानी विभाग से 25,000 रुपये की मदद मिली और यहीं से उन्होंने इसे एक मल्टी पर्पज मशीन के रूप में विकसित किया। धीरे-धीरे इसमें नए–नए फीचर जोड़े और इसे खेती-किसानी के लिए वरदान बना दिया।
धर्मबीर द्वारा बनाई गई यह मल्टी पर्पज फूड प्रोसेसिंग मशीन किसानों के लिए एक संपूर्ण समाधान है। इसकी सहायता से किसी भी फल का रस बिना बीज पीसे निकाला जा सकता है जिससे जूस कड़वा नहीं होता। इसके अलावा इस मशीन से तेल निकालना, पिसाई, मिश्रण करना, गुलाब जल, एलोवेरा जैल, भुने हुए चने-छोले, आलू-गाजर-अदरक-लहसुन की छिलाई जैसे काम मिनटों में किए जा सकते हैं। यहां तक कि इससे खोया, गाजर का हलवा, आंवला मुरब्बा, कैंडी, औषधीय अर्क और यहां तक कि होली के लिए गुलाल तक तैयार किया जा सकता है। इस तरह यह एक मशीन कई तरह के काम कर सकती है। ऐसे में किसान इस मशीन को खरीदकर अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं।
धर्मबीर की इस मशीन की कीमत करीब 2 लाख रुपए है, लेकिन हरियाणा सरकार किसानों और स्वयं सहायता समूहों को इसे खरीदने पर 80,000 रुपए से 1 लाख रुपए तक की सब्सिडी दे रही है। ऐसे में अब छोटे किसान भी इस तकनीक से लाभ उठा सकते हैं और अपनी उपज की प्राेसेसिंग करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
धर्मबीर की इस मशीन की लोकप्रियता केवल भारत तक सीमित नहीं रही। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन, अहमदाबाद और चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय ने उनके प्रयासों को सराहा और सहयोग भी दिया। आज उनकी मशीनें इटली, अमेरिका, केन्या, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, जिम्बाब्वे, युगांडा और नाइजीरिया जैसे देशों में भी बेची जा रही हैं। उन्होंने अपने फार्म पर ही ‘धर्मबीर फूड्स प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से कंपनी बनाई है जहां हर महीने करीब 10 मशीनें तैयार की जाती हैं। इतना ही नहीं, वे अपने फार्म पर दो दिन का प्रशिक्षण भी देते हैं ताकि कोई भी किसान मशीन को आसानी से चला सके।
धर्मबीर को उनके इस नवाचार के लिए 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित किया था। उन्होंने कहा कि शुरुआत में लोगों ने मेरा मज़ाक उड़ाया, लेकिन मैंने उनकी आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने काम पर ध्यान दिया। आज मुझे एक इनोवेटर के रूप में पहचाना जाता है। उनकी यह प्रेरणादायक कहानी इतनी प्रभावशाली है कि वर्ष 2022 में एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की बिजनेस स्टडीज की किताब में अध्याय-3 के तहत शामिल की गई है। धर्मबीर कहते हैं कि मुझे गर्व है कि आज देश के छात्र मेरे संघर्ष और नवाचार के सफर से सीख पा रहे हैं।
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