प्रकाशित - 30 Mar 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
Success Story: सरकार के प्रयास और प्रोत्साहन से देश में महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ती जा रही है। आज कोई भी ऐसा क्षेत्र अछूता नहीं रहा है जहां महिलाओं की भागीदारी न हो। चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो या बैंकिंग का या फिर पुलिस महकमा, सभी जगहों पर महिलाएं किसी न किसी पद पर आसीन हैं। भारत के सर्वाेच्च पद राष्ट्रपति के पद पर भी महिला ही आसीन है। इन सब के साथ ही अब कृषि में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। इसी का परिणाम है कि आज महिलाएं इस क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम रही हैं। इसी कड़ी में अमरोहा की महिला किसान की ओर से गन्ने की उन्नत किस्म (Improved Variety of Sugarcane) की नर्सरी में तैयार करने काम किया जा रहा है जो गन्ने की खेती (Sugarcane Cultivation) करने वाले किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो रही है। यहां से किसान गन्ने की अच्छी प्रजाति के गन्ने के बीज/पौधे प्राप्त कर सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग (Sugarcane Development Department) की ओर से महिलाओं के सहायता समूह को गन्ने की बड चिप तकनीक (Sugarcane Bud Chip Technology) से गन्ने की पौध तैयार करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके परिणामस्वरूप यहां के किसानों को उन्नत किस्म के गन्ने के बीज मिल रहे हैं। अमरोहा जनपद की ऐसी ही एक महिला "कामिनी देविका" हैं, जिन्होंने गन्ने की नर्सरी तैयार करके अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इस महिला किसान ने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उन्नत किस्म के गन्ने की (Variety of Sugarcane) की नर्सरी तैयार की है। इसके अलावा यह अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रशिक्षित कर रही हैं। अमरोहा ब्लॉक के गांव धनौरी मीर निवासी कामिनी खेती–किसानी का काम करती हैं। उनके ससुराल में गन्ने की खेती (Sugarcane Cultivation) प्रमुखता से की जाती है। लेकिन उन्नत किस्मों के अभाव के कारण फसल उत्पादन प्रभाावित होता है। वहीं फसलों में बीमारियों के प्रकोप के कारण भी नुकसान होता है। ऐसे में कामिनी ने 2 साल पहले गन्ने की नर्सरी (Sugarcane Nursery) को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद गन्ने की बड चिप तैयार करके आज वह किसानों को सस्ती दर पर गन्ने के उन्नत बीज उपलब्ध करा रही हैं।
कामिनी देविका महिला स्वयं समूह चलाती हैं। इनके समूह ने धामपुर शुगर मिल से सीओजे 110515, धनौरा शुगर मिल से सीओजे 0118 व सीओजे 13235 गन्ने के बीज लेकर सिंगल बड चिप तकनीक से नर्सरी तैयार करने काम करती हैं। नर्सरी में उन्होंने सीओजे 0118 के पौधे को बोया था जो आज 12 फीट से भी अधिक ऊंचाई का गन्ना तैयार खड़ा है। कामिनी बताती हैं कि इस बार उन्होंने हरियाणा के करनाल से गन्ने की किस्म सीओजे 17231 की बुकिंग करवाई हैं। उन्हें आशा है कि यदि इस काम में वे सफल हुई तो उनको पहले से अधिक फायदा मिल सकेगा।
कामिनी के अलावा अमरोह जिले की एक और महिला किसान "हितेश चौधरी" भी गन्ने की नई प्रजातियों की पौध सिंगल बड, चिप बड तकनीक से तैयार कर रही हैं। यह गांव चक छावी की रहने वाली हैं और ओजस्विनी महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। हितेश चौधरी की पहचान जिले में एक महिला किसान के रूप में हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने बताया कि जैविक तरीके से खेती करने पर गन्ने के पौध में किसी भी तरह का रोग नहीं लगता है। इसके अलावा गन्ने की बुवाई में बीज की बचत होती है और अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। वे बताती हैं कि उनके द्वारा गन्ने की पौध जैविक तरीके से तैयार की जाती है जिससे मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ती है। इस तकनीक में बीज का शोधन ट्राइकोडर्मा से किया जाता है।
उन्होंने बताया कि गन्ने के इस पौधों में लगाने के लिए वर्मी कंपोस्ट (vermicompost) कोकोपीट पाउडर का प्रयोग किया जाता है। इस एक पौधे के लिए 1.30 रुपए हमें सरकार से मिलते हैं और 1.30 रुपए गन्ना विभाग द्वारा दिया जाता है। इस तरह गन्ने की पौध को तैयार करने केे लिए कुल 2.60 रुपए की आर्थिक सहायता मिलती है। वहीं गन्ने का एक पौधा 3 रुपए में बिक जाता है। वे बताती हैं कि इससे क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। उनके समूह से 12 महिलाएं जुड़ी हुईं हैं। उन्होंने बताया कि इस बार हमारा लक्ष्य एक लाख से ज्यादा पौधे तैयार करने का है। हम वही वैरायटी की पौध तैयार कर रहे हैं जिन्हें किसान खरीदना चाहते हैं। किसान यदि गन्ने की 16202, 15023, सुपर 0118 की पौध खरीदना चाहते हैं तो वे उन से संपर्क कर सकते हैं।
खेती–किसानी के काम से जुड़ी हितेश चौधरी ने डबल एमए (MA) व योग में पीजी डिप्लोमा (PG Diploma in Yoga) किया हुआ है। वे बताती हैं कि वर्ष 2020 में ओजस्विनी महिला स्वयं सहायता समूह बनाया और इसके माध्यम से वे गन्ने की प्राकृतिक तकनीक से खेती की जानकारी किसानों को दे रही हैं। वे बताती हैं कि प्राकृतिक तरीके से खेती की लागत कम होती है, क्योंकि इसके लिए बाजार से कुछ नहीं खरीदना पड़ता है। प्राकृतिक खेती में देसी गाय के मूत्र और गोबर का उपयोग करके खेत में ही सभी इनपुट तैयार किए जाते हैं। वहीं गाय के गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद भी हम लोग तैयार कर रहे हैं। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत के साथ ही गन्ने का बेहतर उत्पादन मिल सकता है।
गन्ने की बुवाई (Sugarcane Sowing) पहले पुरानी विधि से की जाती थी। इसके तहत तीन आंख वाली गुल्ली को खेतों में बोया जाता था। लेकिन अब इस नई तकनीक बड चिप विधि के तहत एक एकड़ में 80 से 100 किलोग्राम गन्ना बीज की आवश्यकता होती है। इस तकनीक में पहले गन्ने की नर्सरी तैयार की जाती है। इसके बाद मशीन से गन्ने की बड यानी आंख निकालते हैं। इसके बाद बड को उपचारित किया जाता है। इसके बाद इस बड को प्लास्टिक ट्रे के खानों में रखा जाता है। ट्रे के खानों को वर्मी कंपोस्ट से भरा जाता है। इसके बाद बड की बुवाई के वक्त फव्वारे से हल्की सिंचाई की जाती है। जब नर्सरी में पौधा चार से पांच सप्ताह का हो जाता है तब इसकी मुख्य खेत रोपाई की जाती है।
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