प्रकाशित - 03 Aug 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा काफी पवित्र माना जाता है। इसकी पूजा की जाती है। इसका धार्मिक महत्व तो है ही, इसके अलावा इसका औषधीय महत्व भी कम नहीं है। इसके पत्तों, जड़ों, बीजों आदि को आयुर्वेद में दवा बनाने में उपयोग में लाया जाता है। तुलसी के बीजों से तेल निकाला जाता है जिसकी बाजार में काफी मांग रहती है। कोरोना काल में आयुर्वेदिक कंपनियों की तुलसी वटी का लोगों द्वारा काफी इस्तेमाल किया गया। इसे इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर प्रयोग में लाया गया। तुलसी के पौधे में औषधीय गुण होते हैं। इसका पुराने समय से ही घरेलू दवाओं के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके गुणों को देखते हुए कई कंपनियां इसकी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करा रही हैं। कई किसान तुलसी की खेती करके काफी अच्छा लाभ कमा रहे हैं। तुलसी की खेती के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी का लाभ भी प्रदान किया जाता है।
उत्तरप्रदेश में तुलसी की खेती करने वाले किसानों को सरकार की ओर से 13180 रुपए प्रति हेक्टेयर का अनुदान दिया जाता है। ये अनुदान औषधीय फसलों की खेती पर दिए जाने वाले अनुदान योजना के अंतर्गत दिया जाता है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम किसानों को तुलसी की खेती पर अनुदान सहित तुलसी की खेती होने वाली आय, तुलसी की बाजार कीमत, तुलसी की खेती से लाभ आदि की जानकारी दे हैं।
औषधीय फसलों की खेती के लिए सरका की ओर से किसानों को अनुदान दिया जाता है। यूपी में तुलसी और एलोवेरा करने पर किसानों को 30 फीसदी सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है। इन दोनों की खेती पर अधिकतम 2 हेक्टेयर पर सब्सिडी मिलती है। तुलसी की 1 हेक्टेयर में खेती करने के लिए 43923 रुपए की लागत निर्धारित की गई है जिस पर 13180 रुपए सब्सिडी सरकार की ओर से दी जाती है। वहीं एलोवेरा में 62424 प्रति हेक्टेयर की लागत पर 18232 रुपए की सब्सिडी मिलती है। इसके अलावा शतावर की खेती पर प्रति हेक्टेयर 91506 रुपए की लागत पर 27450 रुपए का अनुदान दिया जाता है।
यूपी में हरदोई जिले के नीर गांव के किसान अभिमन्यु तुलसी की खेती कर रहे हैं। उन्हें इससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसान अभिमन्यु अपने खेत तुलसी की फसल उगा रखी है। उन्होंने करीब एक हैक्टेयर में तुलसी के पौधे ला रखें हैं। तुलसी की फसल से उन्हें पारंपरिक फसले जैसे- धान, गन्ना आदि की खेती से जितना लाभ नहीं होता उतना तुलसी की खेती से हो रहा है। अभिमन्यु ने पास के ही जिले सीतापुर गांव में तुलसी की फसल देखी थी। इसकी जानकारी ली और फिर हरदोई जिले के जिला उद्यान विकास अधिकारी सुरेश कुमार से मिले और इसकी लागत और मुनाफे का गणित समझा और इसके बाद तुलसी की खेती में किस्मत आजमाई। आज वे इसकी खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। जानकारी के लिए बता दें कि तुलसी की सूखी पत्तियों और बीजों से कमाई की जाती है। तुलसी के बीजों से तेल निकाला जाता है जिसकी बाजार कीमत करीब 2 हजार रुपए लीटर होती है। कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में इसके तेल की काफी मांग रहती है। वहीं इसकी सूखी पत्तियों को औषधी निर्माण में प्रयोग में लाया जाता है।
तुलसी की कॉस्मेटिक इंडस्ट्री और औषधी निर्माण में बढ़ती मांग के कारण तुलसी की खेती मुनाफे का सौंदा साबित हो सकती है। वर्तमान में इससे अनेक खांसी की दवाए, साबुन, हेयर शैम्पू आदि बनाए जाने लगे हैं। सही जानकारी लेकर किसान इससे काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इस संबंध में हरदोई के जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि पारंपरिक खेती से हटकर की जा रही औषधीय खेती किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी है। समय-समय पर चौपाल के जरिए किसानों को औषधीय खेती के संबंध में जानकारी दी जाती है।
तुलसी की खेती बलुई दोमट जमीन में की जा सकती है। तुलसी की फसल के लिए खेत में पानी भरा नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा है तो ये नुकसानदायक होता है। इससे तुलसी का पौधा ज्यादा पानी के कारण गलने लगता है। इसकी खेती करने से पहले खेत से पानी निकालने का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए।
तुलसी की कई प्रजातियां पाई जाती है। इसमें सबसे बेहतरीन प्रजाति ओसिमम बेसिलीकम मानी जाती है। यह प्रजाति तेल उत्पादन के लिए उगाई जाती है। इसका सबसे ज्यादा प्रयोग परफ्यूम व औषधियों के लिए किया जाता है। वहीं तुलसी की अन्य प्रजातियों में स्वीट फेंच बेसिल, कपूर तुलसी, काली तुलसी, वन तुलसी जिसे राम तुलसी भी कहा जाता है आदि आती है। इसके अलावा राम तुलसी और श्याम तुलसी भी होती है। इसमें फर्क इतना है कि राम तुलसी के पत्ते बड़े होते हैं, जबकि श्याम तुलसी के पत्तों का आकार छोटा होता है। लेकिन गुणवत्ता में दोनों समान होती है।
तुलसी की बेहतर पैदावार के लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। खेत की तैयारी के समय खरपतवार रहित खेत में गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। एक हैक्टेयर जमीन में करीब 20 टन गोबर की खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए।
बारिश में तुलसी का पौधा लगाया जा सकता है। इसकी बुवाई या रोपाई उभरी हुई क्यारियों में करनी चाहिए। बीज या पौधे का रोपण करते समय उचित दूरी रखनी चाहिए। तुलसी के बीज या पौधे का रोपण करते समय उनके बीच की दूरी करीब 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। यदि बरसात सही होती है तो इसमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वहीं सूखे की स्थिति में दोपहर के बाद इसके पौधे की सिंचाई करनी चाहिए ताकि इसमें लंगे समय तक नमी बनी रहे।
तुलसी के बीजों और पत्तियों से तेल निकाला जाता है। इसके लिए आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि का इस्तेमाल करके करीब एक हैक्टेयर में तुलसी की फसल से 100 किलोग्राम से ज्यादा तेल निकाला जा सकता है।
कोरोना संक्रमण काल के दौरान तुलसी की मांग काफी थी। इस दौरान उसके तेल की कीमत 2 हजार रुपए प्रति लीटर हो गई थी। इस दौरान तुलसी की खेती करने वाले किसानों को काफी लाभ हुआ था। बता दें कि तुलसी की फसल 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इससे काफी मुनाफा मिल सकता है। तुलसी के तेल की बाजार कीमत लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसकी मांग मुख्य रूप से कॉस्मेटिक्स कंपनियों और आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियों में अधिक है। इसकी बढ़ती मांग के कारण इसकी खेती किसानों काफी अच्छा मुनाफा दे सकती है।
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