प्रकाशित - 26 Jun 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
बिहार सरकार ने राज्य में तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाने और किसानों की आय में सुधार के लिए एक शानदार पहल की है। खरीफ 2025 के लिए खास तौर पर तैयार की गई इस योजना के तहत सोयाबीन की खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। राज्य के तीन जिलों बेगूसराय, लखीसराय और खगड़िया को पायलट जिले के रूप में चुना गया है, जहां 5000 एकड़ भूमि पर फसल प्रदर्शन कार्यक्रम (Crop Demonstration) चलाया जा रहा है। आइए, ट्रैक्टर जंक्शन की इस खबर में योजना के बारे में विस्तार से जानते हैं।
उप-मुख्यमंत्री सह कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने जानकारी दी कि इस योजना के तहत किसानों को ₹4,000 प्रति एकड़ का सीधा अनुदान दिया जा रहा है, जिससे वे कम लागत में सोयाबीन की खेती कर सकें और अधिक लाभ कमा सकें। इसके अलावा, सरकार किसानों को 355 क्विंटल प्रमाणित सोयाबीन बीज 100% अनुदान पर यानी बिल्कुल मुफ्त दे रही है। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए 100 क्विंटल प्रजनक बीज का उत्पादन भी राज्य में किया जा रहा है। इससे भविष्य में किसानों को स्थानीय स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध होंगे और बीज आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।
योजना को सफल बनाने के लिए सरकार ने हर चिन्हित जिले में एक क्लस्टर बनाने का निर्णय लिया है। इन क्लस्टरों में फार्मर्स फील्ड स्कूल और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए किसानों को नई और उन्नत तकनीकों से जोड़ा जाएगा, जिससे उत्पादन क्षमता में इजाफा हो सके।
सोयाबीन एक बहुउपयोगी और लाभकारी फसल है, जो किसानों को पोषण, बाजार, मिट्टी सुधार और मुनाफे के आधार पर चार तरीकों से फायदा पहुंचाती है। सबसे पहले बात करें पोषण की तो सोयाबीन को प्रोटीन का पावरहाउस कहा जाता है। इसमें लगभग 40% तक प्रोटीन होता है, जो मानव और पशु दोनों के आहार के लिए बेहद उपयोगी है। इंसानों के लिए यह टोफू, सोया दूध, पनीर और हेल्थ सप्लिमेंट के रूप में इस्तेमाल होता है, जबकि इसका खल (meal) पशुओं के लिए बढ़िया चारा है, जो दूध उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है।
सोयाबीन से निकलने वाला तेल भारत के खाद्य तेल बाजार में बड़ी भूमिका निभाता है। इसके अलावा यह तेल औद्योगिक क्षेत्रों में भी साबुन, पेंट, कॉस्मेटिक और बायो-डीज़ल जैसे उत्पादों में प्रयोग किया जाता है। यानी इसकी मांग हमेशा बनी रहती है, जिससे किसानों को बाजार की चिंता नहीं करनी पड़ती और अच्छी कीमत मिलने की संभावना रहती है।
एक और खास बात यह है कि सोयाबीन मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाली फसल है। यह एक लेग्युमिनस फसल होने के नाते मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती है, जिससे खेत की सेहत बेहतर होती है और अगली फसलों के लिए कम उर्वरक की ज़रूरत पड़ती है। यह प्राकृतिक तरीके से मिट्टी को उपजाऊ बनाती है।
लागत के लिहाज से भी सोयाबीन किसानों के लिए फायदे का सौदा है। इसकी खेती में पानी, खाद और कीटनाशकों की कम ज़रूरत होती है। ऊपर से सरकार द्वारा दिए जा रहे ₹4,000 प्रति एकड़ अनुदान और 100% मुफ्त बीज की सुविधा इसे और भी सस्ता और लाभदायक बना देती है। कुल मिलाकर, सोयाबीन की खेती आज के समय में बिहार जैसे राज्यों के किसानों के लिए एक समझदारी भरा, टिकाऊ और आर्थिक रूप से मजबूत विकल्प बन चुकी है।
बिहार के किसान इस योजना का लाभ उठाने के लिए अपने जिले के कृषि विभाग कार्यालय जाएं या बिहार कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करें। आवेदन के समय ज़मीन से जुड़े दस्तावेज़ (जैसे क्षेत्रफल और स्वामित्व प्रमाण) साथ रखें। अधिक जानकारी के लिए स्थानीय कृषि समन्वयक या ब्लॉक कृषि पदाधिकारी से संपर्क करें।
अब तक मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य सोयाबीन उत्पादन में आगे रहे हैं, लेकिन बिहार सरकार की इस योजना से अब राज्य के किसान भी तिलहन फसलों की ओर आकर्षित होंगे। सरकार की यह पहल न केवल किसानों की कमाई बढ़ाएगी, बल्कि बिहार को तेलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर भी बनाएगी।
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