Published - 16 Jul 2020 by Tractor Junction
रतनजोत ऐसी फसल होती है जो कृषि भूमि के लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ ही खाद भी तैयार करती है। इसके अलावा इससे अखाद्य तेल भी प्राप्त किया जाता है जिसका उपयोग वायोडीजल के रूप में किया जाता है। इससे बनाया हुआ वायोडीजल प्राकृतिक मित्र होता है। इससे प्रदूषण भी कम होता है। सबसे अहम बात यह है कि एक बार इसे लगाने के बाद चालीस से पचास साल तक इसकी फसल ली जा सकती है। इसके बीजों से तेल निकाला जाता है जो पर्यावरण मित्र डीजल होने के कारण भविष्य का मुख्य ईंधन माना जा रहा है। तेल निकालने के बाद बची खली से वायोगैस बनाने व उससे निष्कासित प्राकृतिक खाद के रूप में काम ली जाती है। इतने सारे गुणों के कारण ही इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो रही है।
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रतनजोत, जिसे रंग-ए-बादशाह भी कहते हैं, बोराजिनासीए जीववैज्ञानिक कुल का एक फूलदार पौधा है। इसके नीले रंग के फूल होते हैं। इसकी जड़ से एक महीन लाल रंगने वाला पदार्थ मिलता है जिसका प्रयोग खाने और पीने की चीज़ों को लाल रंगने के लिए होता है, मसलन भारत के रोगन जोश व्यंजन की तरी का लाल रंग अक्सर इस से बनाया जाता है। इसके अलावा दवाइयों, तेलों, शराब, इत्यादी में भी इसके लाल रंग का इस्तेमाल होता है। कपड़े रंगने के लिए भी इसका प्रयोग होता है। वास्तव में 'रतनजोत' नाम इस पौधे की जड़ से निकलने वाले रंग का है लेकिन कभी-कभी पूरे पौधे को भी इसी नाम से पुकारा जाता है। आधुनिक काल में E103 के नामांकन वाला खाद्य रंग, जिसे अल्कैनिन (alkannin) भी कहते हैं, इसी से बनता है। कभी-कभी जत्रोफा को भी रतनजोत कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों में इसे विदो, अरंड, जंगली अरंड, बाघ भेरंड आदि नामों से जाना जाता है।
रतनजोत की खेती के लिए सामान्यत: शुष्क और अद्र्धशुष्क जलवायु वाला अच्छी रहती है। इसे पथरीली, रेतीली, बलुई और ऊसर भूमि में भी उगाया जा सकता है।
कहां उगाए ताकि और भी अन्य फसल भी ली जा सके
इसे खेत के चारों ओर मेड बंदी करने के लिए उगाया जा सकता है। इस पौधे को जानवर नहीं खाते हैं इसलिए इसकी जानवरों से सुरक्षा करने की भी कोई जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा खेत की डोल पर भी इसे उगाया जा सकता है।
आरजे- 117, जीआईई-नागपुर बरमुण्डा अच्छी किस्म पाई गई है। सरदार कृषि विश्वविद्यालय, बनासकान्ठा से विकसित SDAUJI किस्म भी अच्छी है।
रतनजोत का रोपण दो तरीके से किया जा सकता है। बीज से नर्सरी तैयार करके और पौधे से कलम काटकर सीधे भूमि में रतनजोत का रोपण किया जा सकता है। दोनों ही विधियों से तैयार पौधों को जुलाई से सितंबर के बीच बरसात के मौसम में रोपण किया जा सकता है। रोपण करने के दौरान रतनजोत को पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए बारानी खेतों में इसे बारिश के समय ही रोपा जाना जरूरी है।
रोपण के लिए पौधे से पौधे की दूरी दो मीटर रखनी चाहिए। कतार से कतार के बीच दूरी भी इतनी ही रखी जानी चाहिए। पौधे का रोपण दो फीट गहरे गड्डे में 2 गुना 2 मीटर चौड़ाई आकार में करने के बाद मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए। रतनजोत के ढाई हजार पौधे प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पौध रोपण करना चाहिए।
रोपण से पूर्व गड्डे में मिट्टी (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें। दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर (50 ग्राम ) प्रति गड्डे में डालें, इसके बाद पौधा रोपण करें।
पौधे लगाने के 15-20 दिन बाद इसकी अच्छी तरह से सिंचाई कर दी जानी चाहिए जिससे बेहतर फसल ली जा सकती है। इसके बाद हर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। इसमे एक वर्ष बाद पौधे में फूल आने शुरू हो जाते हैं। फूल से फल बनते समय अच्छी सिंचाई कर दी जाए तो सभी फूल, फल बन जाते हैं और उत्पादन अच्छा होता है।
खरपतवार नियंत्रण हेतु विशेष ध्यान रखें तथा रोपा फसल में फावड़े, खुरपी आदि की मदद से घास हटा दें। वर्षा ऋतु में प्रत्येक माह खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए।
कोमल पौधों में जड़-सडऩ तथा तना बिगलन रोग मुख्य है। नर्सरी तथा पौधों में रोग के लक्षण होने पर 2 ग्राम बीजोपचार मिश्रण प्रति लीटर पानी में घोल को सप्ताह में दो बार छिडक़ाव करें।
इस पौधे को पशु खाना पसंद नहीं करते हैं इसलिए इसकी पशुओं से सुरक्षा करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती है। इसके बीज जहरीले होते हैं। कई बार अखबारों में खबर आती है कि रतनजोत के बीज खाने से बच्चे बीमार हो गए। यह इसी वजह से होता है।
रतनजोत के फल गुच्छे के रूप में बनते हैं जो पकने पर काले पड़ जाते हैं। पके फलों की तुड़ाई के साथ ही ऊपर के छिलके को हटाकर बीज निकाल लेने चाहिए। ऐसे में प्रत्येक फल में तीन से चार बीज निकाले जा सकते हैं। इन बीजों को एकत्र कर बाजार में बिक्री के लिए भी भेजा जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार 5 वर्षों तक रतनजोत के पौधे को मार्च में दो से तीन फीट की ऊंचाई से काट देना चाहिए। इससे प्रत्येक कटी शाखा से तीन से चार अतिरिक्त शाखाएं निकल आती है। पौधे में जितनी अधिक शाखाएं होती है, उत्पादन उतना ही अधिक होता है। पांच वर्ष बाद पौधे की कटाई बंद कर देनी चाहिए।
किसान अतिरिक्त आदमनी के लिए इसकी फसल के साथ अन्य औषधीय पौधे व लता वाली फसलें भी उगा सकते हैं। इसके पौधों की दो कतारों के बीच दो मीटर की दूरी होने से बीच में छाया पसंद करने वाली औषधीय फसलें जैसे अश्वगंधा, सर्पगंधा, सफेद मूसली और हल्दी इत्यादी उगाकर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है। इसके अलावा रतनजोत के खेत में लता वाली फसलें जिनमें कौंच, करेला, कलिहारी, गिलोय इत्यादी शामिल है उन्हें भी उगाया जा सकता है। इसका पौधा वर्ष में एक बार अपने पत्ते गिराता है जो भूमि के लिए पौष्टिक खाद का काम करते हैं।
रतनजोत का पौधा तीसरे साल से कमाई देना शुरू करता है। इसमें 500 ग्राम प्रति पेड़ की दर से एक हैक्टेयर में 12.5 क्विंटल उत्पादन प्राप्त होता है। चौथे साल 1 किलो ग्राम बीज प्रति पेड़ के हिसाब से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। पांचवें साल 2 किलो ग्राम/ पेड़ (50 क्विंटल/हेक्टेयर) व साल 4 किलो ग्राम/ पेड़ (100 क्विंटल/हेक्टेयर) उत्पादन मिलता है इसी प्रकार आगे के सालों में बढक़र उत्पादन मिलता है। इसकी चालीस से पचास साल तक फसल ली जा सकती है। इसकी साधारण विक्रय दर 6 रुपए प्रति किलो से भी गणना की जाए तो भी पांचवें साल से 6 लाख रुपए तक हर साल कमाई की जा सकती है।
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