प्रकाशित - 12 Jun 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
Insect in Sugarcane : गन्ने की खेती (Sugarcane Cultivation) करने वाले किसानों के लिए एक बहुत जरूरी खबर है। इन दिनों गन्ने की फसल में कीटों के प्रकोप की संभावना बनी हुई है। कई जगहों पर गन्ने की फसल में कीटों का प्रकोप भी दिखाई दे रहा है। इसे देखते हुए गन्ना किसानों को इन कीटों से फसल को बचाने के उपाय अपनाने की सलाह दी जा रही है। यूपी व बिहार में गन्ने के कीटों से फसल को प्रभावित होने का खतरा होने की संभावना है। यदि समय रहते इन कीटों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो उपज में भारी कमी आ सकती है।
बताया जा रहा है कि इन दिनों गन्ने में चोटी भेदक कीट, स्मट रोग तथा शीर्ष छिद्रक जैसे कीटों का खतरा बना हुआ है जो गन्ने की बढ़वार और क्वालिटी दोंनों में भारी गिरावट ला सकते हैं। इससे गन्ने पैदावार में भारी कमी आ सकती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज हम किसान भाइयों को गन्ने के इन कीटों–रोग पर नियंत्रण के उपाय बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं, इसके बारे में।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस समय उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के गन्ना किसानों को इन दिनों चोटी भेदक कीट का सामना करना पड़ रहा है। आमतौर पर फरवरी-मार्च में बसंतकालीन गन्ने की बुवाई की जाती है, लेकिन कई किसान देर से यानी अप्रैल के अंत तक इसकी बुवाई करते हैं। ऐसे खेतों में अब यह कीट सक्रिय हो गया है। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान के प्रसार अधिकारी डॉ. संजीव कुमार पाठक के अनुसार, चोटी भेदक कीट गन्ने के ऊपर की कोमल पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाता है। इससे पत्तियों पर छर्रे जैसे निशान बनते हैं और फसल की बढ़वार रुक जाती है।
बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में भी गन्ने की फसल को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ स्मट रोग और शीर्ष छिद्रक कीट का प्रकोप देखा जा रहा है। इस इलाके में 5 से 6 सक्रिय चीनी मिलें हैं, और गन्ना किसानों की आजीविका इन्हीं पर निर्भर है।
इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए किसान 150 ML Chlorantraniliprole 18.5% W/W (ब्रांड नाम : कोरजेन) को 400 लीटर पानी में घोलकर सूखे खेत में गन्ने के पौधों की जड़ों पर ड्रेंचिंग कर सकते हैं। ड्रेंचिंग के 24 घंटे बाद सिंचाई करनी चाहिए। इस प्रक्रिया से कीट का प्रभाव कम हो जाता है और फसल को राहत मिलती है।
गन्ने की फसल में कीट नियंत्रण के साथ-साथ सिंचाई का समय भी बेहद जरूरी है। किसानों को हर 10 से 12 दिनों के अंतराल पर फसल में सिंचाई करनी चाहिए। इसके साथ ही खरपतवार नियंत्रण भी जरूरी है, क्योंकि यह गन्ने की बढ़वार में रूकावट बनते हैं।
स्मट रोग गन्ने का फफूंद जनित रोग है, जो मार्च से जून के दौरान तेज गर्मी में अधिक फैलता है। रोगग्रस्त पौधों में पत्तियां नुकीली हो जाती हैं और फुनगी से काले चाबुक जैसे बीजाणु निकलते हैं, जो हवा से फैलते हैं। इससे गन्ने में रस और चीनी की मात्रा घट जाती है।
गन्ना अनुसंधान केंद्र, माधोपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सतीश के अनुसार संक्रमित पौधों को प्लास्टिक बैग में जड़ सहित निकालकर नष्ट कर देना चाहिए। इसके अलावा आप इसके रायायनिक उपाय के रूप में प्रोपिकोनाजोल फफूंदनाशी दवा 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 15–20 दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव कर सकते हैं। इसके अलावा किसानों को चाहिए कि संक्रमित खेतों से बीज न लें और कम से कम दो साल तक गन्ना न बोएं।
शीर्ष छिद्रक कीट गन्ने की पत्तियों की मध्य शिरा में छेद करता है, जिससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है और "बंची टॉप" नामक लक्षण दिखाई देते हैं। इस कीट के समाधान के लिए किसान मसाले वाली फसलों के साथ अंतर फसल (intercropping) करें। वहीं प्रकाश जाल लगाकर कीटों की निगरानी और नियंत्रण करें। इसके लिए फसल की छतरी से 15 सेमी ऊपर प्रकाश जाल लगाएं। इधर कृषि विभाग और वैज्ञानिकों द्वारा दी गई एडवाइजरी के अनुसार यदि किसान ये उपाय अपनाएं तो न केवल फसल की रक्षा हो सकती है, बल्कि गन्ने की क्वालिटी, रस की मात्रा और चीनी की उपज में भी बढ़ोतरी हाे सकती है। बता दें कि गन्ने की खेती में कीट और रोग एक सामान्य समस्या हैं, लेकिन समय पर पहचान, सही दवाओं का प्रयोग, और वैज्ञानिक सलाह को अपनाकर इनसे फसल को बचाया जा सकता है।
नोट : किसानों को सलाह दी जाती है कि किसी भी कीटनाशक या रसायन का उपयोग करने से पहले अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से सलाह अवश्य लें। फसल की स्थिति, मिट्टी और कीट के प्रकार के आधार पर ही दवा का चयन करें।
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