प्रकाशित - 24 Jun 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
Ridge Furrow Method of Sowing Maize : खरीफ सीजन में मक्का, धान और सोयाबीन जैसी फसलें प्रमुख रूप से बोई जाती हैं। इनमें मक्का एक ऐसी फसल है जो कम लागत में अधिक उत्पादन देने की क्षमता रखती है। किसानों की आय बढ़ाने और खेती को लाभकारी बनाने के लिए कृषि विभाग लगातार नई तकनीकों और उन्नत विधियों को बढ़ावा दे रहा है। इसी कड़ी में मक्का की खेती करने वाले किसानों के लिए जबलपुर जिले के कृषि विभाग की ओर से विशेष सलाह जारी की गई है। इसमें रिज फरो विधि (Ridge and Furrow Method) को अपनाने पर जोर दिया गया है, जो पानी की बचत करने के साथ-साथ फसल की उपज को भी बढ़ाता है। आइए जानते हैं, मक्का की बुवाई की रिज फरो विधि के बारे में।
रिज फरो विधि में खेत को विशेष तरीके से तैयार किया जाता है, जिसमें मेड़ (रिज) और नालियों (फरो) का निर्माण किया जाता है। मक्के के बीजों को मेड़ों पर बोया जाता है, जबकि नालियां जल निकासी के लिए होती हैं। इस विधि में पौधे से पौधे की दूरी लगभग 9 इंच और कतार से कतार की दूरी 2 फीट रखी जाती है। एक एकड़ खेत में लगभग 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है।
मक्के की खेती करने वाले किसानों के लिए रिज फरो विधि एक उपयोगी विकल्प साबित हो सकती है। जल प्रबंधन, बेहतर पौध विकास और अधिक उत्पादन जैसे लाभों के कारण यह विधि अब तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कृषि विभाग की पहल से यदि अधिक किसान इस तकनीक को अपनाएं, तो निश्चित ही उनकी आमदनी में वृद्धि होगी और खेती अधिक टिकाऊ व लाभकारी बन सकेगी। रिज फरो विधि से मक्का की खेती से जो लाभ प्राप्त होते हैं, वे इस प्रकार से हैं :
खेत में बनी नालियों से वर्षा का पानी आसानी से निकल जाता है और वह मेड़ों के पास मिट्टी में नमी बनाए रखता है। इससे सूखे के समय भी पौधों को आवश्यक नमी मिलती रहती है। इस प्रकार जल की बर्बादी नहीं होती और सिंचाई की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
उचित दूरी और जल प्रबंधन के कारण पौधों का विकास बेहतर होता है। जड़ें गहराई तक फैलती हैं जिससे पौधे मजबूत होते हैं और गिरने की संभावना कम रहती है। इससे फसल की क्वालिटी और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होती है।
नालियों में पानी भरने के कारण खरपतवारों का विकास सीमित हो जाता है, जिससे किसानों को निराई-गुड़ाई में कम मेहनत करनी पड़ती है। इस प्रकार श्रम और लागत दोनों की बचत होती है।
पारंपरिक विधियों में मक्का की बुआई बारिश से पहले करनी पड़ती है, जबकि रिज फरो विधि में पानी गिरने के बाद भी बुआई की जा सकती है। यह तकनीक मौसम की अनिश्चितता के समय अधिक कारगर साबित होती है।
मेड़ पर बोये जाने के कारण पौधों की जड़ें बेहतर तरीके से विकसित होती हैं। इससे पौधे तेज हवा या भारी वर्षा में भी टिके रहते हैं, जिससे नुकसान की संभावना घट जाती है।
विकासखंड शहपुरा के ग्राम दामन खमरिया में किसान प्रतीक जैन के खेत पर इस विधि का प्रदर्शन किया गया, जहां उप संचालक कृषि डॉ. एस.के. निगम और अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन डॉ. इंदिरा त्रिपाठी की उपस्थिति में मक्के की बुवाई करवाई गई। कृषि अधिकारियों ने बताया कि रिज फरो विधि को बढ़ावा देने के लिए विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और किसानों को फील्ड डेमो के जरिये इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
कृषि विभाग के अनुसार बदलते मौसम, जल संकट और बढ़ती लागत को देखते हुए किसानों को ऐसी तकनीकों को अपनाना चाहिए जो लागत घटाएं और पैदावार बढ़ाएं। रिज फरो विधि एक सरल, प्रभावी और कम लागत वाली बुवाई प्रणाली है जो मक्के के साथ-साथ अन्य फसलों के लिए भी उपयुक्त हो सकती है।
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