प्रकाशित - 29 Jan 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
Poultry Farming : सर्दियों में मुर्गी के अंडों व चिकन की बाजार में मांग बहुत अधिक रहती है। ऐसे में मुर्गी पालन या कुक्कुट पालन से कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। यह बिजनेस काफी कम जगह में हो जाता है। इतना ही नहीं यदि आपके पास इस बिजनेस के लिए अलग से कोई जगह नहीं है तो आप अपने घर के आंगन में इसका पालन करके इसे शुरू कर सकते हैं। मुर्गी पालन के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं भी चलाई जा रही है जिसका लाभ उठाकर आप अपने काम को शुरू कर सकते हैं और इससे काफी बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
मुगी पालन या कुक्कुट पालन के लिए दो प्रकार की नस्लों का उपयोग किया जाता है। पहली देसी या स्थानीय और दूसरी उन्नत नस्लें हैं। भारत में विकसित उन्नत नस्लें, स्थानीय नस्लो के मुकाबले दो से तीन गुना अधिक उत्पादन देती हैं। इसलिए किसान अपने आंगन में कुक्कुट पालन के लिए उन्नत नस्लों का चयन कर सकते हैं। यदि देसी या स्थानीय नस्ल की मांग अधिक है, तो उसका पालन किया जा सकता है।
कुक्कुट अनुसंधान निदेशालय (डीपीआर) हैदराबाद व केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआई), बरेली और इनके केंद्रों की ओर से मुर्गियों की कुछ उन्नत प्रजातियां विकसित की गई है, जिनका पालन करके किया जा सकता है जिनमें वनराजा, ग्रामप्रिया, श्रीनिधि, कृषिब्रो, कृषि लेयर, जनप्रिया, वनश्री, नर्मदानिधि, हिमसमृद्धि, कामरूप, झारसीम, प्रतापधान, अतुल्य, सीएआरआई निर्भीक, सीएआरआई हितकारी, सीएआरआई उपकारी, सीएआरआई सोनाली, सीएआरआई प्रिया, कैरी श्यामा, कैरी देबेंद्र, कैरीब्रो विशाल, कैरिब्रो धनराज, कैरिब्रो ट्रॉपिकाना, कैरिब्रो मृत्युंजय आदि शामिल हैं। इनका पालन करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसी तरह आईसीएआर-सीएआरआई की ओर से भी मुर्गी की उन्नत नस्लें विकसित की गई है जिनमें कलिंग ब्राउन, कावेरी, ऐसिल, क्रॉस, चाब्रो-सीपीओडी द्वारा विकसित नस्ले शामिल हैं। इसके अलावा पशु विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों में गिरिराज, स्वर्णधारा, नंदनम, राजश्री आदि हैं।
किसानों को मुर्गी पालन के लिए 4 से 6 सप्ताह की उम्र की मुर्गियां खरीदनी चाहिए, क्योंकि इन्हें कम देखभाल की आवश्यकता होती है और एक दिन के पुराने चूजों की तुलना में मृत्यु दर भी कम होती है। ऐसे में आपको चाहिए कि चूजों की जगह मुर्गियां खरीदनी चाहिए।
भारत में अलग– अलग राज्यों में कई देसी और स्थानीय नस्लों की मुर्गियों का पालन किया जाता है जिनकी बाजार में कीमत अच्छी मिल जाती है। गुजरात में अंकेलेश्वर व अरावली नस्ल की मुर्गी का पालन किया जाता है तो छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में असील नस्ल की देसी मुर्गियों का पालन किया जाता है। इसी प्रकार बुसरा नस्ल की मुर्गी का पालन गुजरात और महाराष्ट्र में किया जाता है। डंकी नस्ल की मुर्गी आंध्रप्रदेश में पाली जाती है। दाओथिगीर को असम, घेगस नस्ल को आंध्रप्रदेश ओर कर्नाटक, हेरिगहाटा बलैक को पश्चिम बंगाल, कडकनाथ को मध्यप्रदेश, कालहस्ती को आंध्रप्रदेश, कश्मीर फेवरोला को जम्मू और कश्मीर, मीरी को असम, निकोबारी को अंडमान और निकोबार, पंजाब ब्राउन को पंजाब और हरियाणा, तेलीचेरी को केरल, मेवाड़ी को राजस्थान, कौनयेन को मणिपुर और मुर्गी की हंसली नस्ल को ओडिशा और उत्तराखंड में पाला जाता है।
यदि आप मुर्गी पालन का प्रशिक्षण और चूजे प्राप्त करना चाहते हैं तो आप कृषि विज्ञान केंद्र, पशु चिकित्सा महाविद्यालय, राज्य पशुपालन विभाग केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन (सीपीडीओ) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संगठनों जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान- कुक्कुट अनुसंधान निदेशालय (डीपीआर), हैदराबाद व भारतीय कृषि अनुसंधान- केंद्रीय पक्षी अनुसंधान (सीएआरआई), बरेली से बेहतर नस्लों के चूजों को प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा आप यहां से मुर्गी पालन या कुक्कुट पालन का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर सकते हैं।
मुर्गी पालन योजना के तहत अलग–अलग राज्य में वहां के नियमानुसार सब्सिडी का लाभ किसानों को प्रदान किया जाता है। किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से मुर्गी पालन योजना को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस योजना के तहत किसानों को पोल्ट्री फार्म खोलने के लिए सब्सिडी व लोन का लाभ प्रदान किया जाता है। मुर्गी पालन के लिए लोन व सब्सिडी की अधिक जानकारी के लिए आप अपने जिले के पशुपालन विभाग से संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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