पशुओं का दूध बढ़ाएगा यह रसीला चारा, प्रोटीन की मात्रा भी अधिक

Share Product प्रकाशित - 26 Apr 2025 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

पशुओं का दूध बढ़ाएगा यह रसीला चारा, प्रोटीन की मात्रा भी अधिक

जानें, कौनसा है यह चारा और क्या है इसकी खासियत और इसे उगाने का तरीका

गर्मियों में पशुओं का दूध कम होने की समस्या बनी रहती है जिससे पशुपालकों को नुकसान होता है। इसका सीधा प्रभाव उसकी इनकम पर पड़ता है। ऐसे में हरियाणा के हिसार में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) ने पशुपालकों के लिए एक बड़ी खुशखबरी दी है। यहां के चारा अनुभाग की ओर से ज्वार की एक नई किस्म विकसित की गई है जो न केवल मीठी है, बल्कि पोषक तत्वों से भी भरपूर है जिसे गाय, भैंस भी बड़े चाव से खाते हैं। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी है जिससे इसके सेवन से पशु को पोषण मिलने से दूध की मात्रा में भी सुधार होगा। इस किस्म का नाम CSV 64 F है। बताया जा रहा है कि यह किस्म पशु का दूध बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है। जो किसान चारे की कमी से जूझ रहे हैं या दूध का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, उनके लिए यह किस्म एक गेमचेंजर साबित हो सकती है। 

क्या है ज्वार की इस किस्म CSV 64 F के लाभ

ज्वार की CSV 64 F किस्म के कई लाभ बताए गए हैं जिससे यह पशु के लिए गुणकारी और दूध की मात्रा बढ़ाने में सहायक है। इस किस्म के प्रमुख लाभ इस प्रकार से हैं–

  • इस किस्म में ज्वार की अन्य किस्मों से 32% अधिक मिठास है।
  • इसमें हाई प्रोटीन कंटेंट है जो पशु की सेहत के लिए अच्छे होते हैं। 
  • ज्वार की इस किस्म से किसान एक ही कटाई में बंपर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  • इस चारे में कम जहरीला तत्व (धूरिन) – सिर्फ 67 PPM है जिससे पशु को नुकसान की बहुत कम  संभावना होती है।

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ज्वार CSV 64 F की क्या है विशेषताएं

  • ज्वार की CSV 64 F किस्म से 466 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।
  • ज्वार की इस किस्म से 122 क्विंटल सूखा चारा प्राप्त होता है जो ज्वार की CSV 35 F किस्म से 6.9% अधिक है।
  • ज्वार की यह किस्म तेज हवा और बारिश में भी नहीं गिरती है।
  • ज्वार की CSV 64 F किस्म गोभ छेदक और तना छेदक कीट से सुरक्षित है। 

किस राज्य के किसानों कर सकते हैं इस किस्म के ज्वार की खेती

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के वैज्ञानिकों की टीम जिसमें डॉ. पम्मी कुमारी से लेकर डॉ. मनजीत सिंह तक शामिल हैं, उन्होंने इस किस्म को खास तौर पर उत्तर भारत की जलवायु और पशुपालन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है। ऐसे में यह किस्म हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात के किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इन राज्यों के किसान ज्वार की इस किस्म की खेती करके अपने पशु के लिए पोषक तत्वों से भरपूर चारे की व्यवस्था कर सकते हैं। बता दें कि HAU को ज्वार पर बेहतरीन काम के लिए ICAR से लगातार दो साल “सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान केंद्र” का खिताब भी मिल चुका है।

किसान कैसे करें ज्वार की CSV 64 F किस्म की खेती

ज्वार CSV 64 F किस्म की बुवाई के लिए खेत को पहले अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। खेत की 2-3 गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और उसके बाद पाटा चलाकर भूमि को समतल कर लें। बीज की बुवाई जून से जुलाई के बीच करनी चाहिए (खरीफ मौसम में), और अगर सिंचाई की सुविधा हो तो अक्टूबर-नवंबर में भी बुवाई की जा सकती है। बुवाई के लिए 35 से 40 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीज को बुवाई से पहले फफूंदनाशक जैसे थायरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए ताकि अंकुरण अच्छा हो और रोगों से सुरक्षा मिले। बीजों की बुवाई 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करनी चाहिए ताकि पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, यदि नमी कम हो तो हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

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