Published - 23 Jan 2021 by Tractor Junction
देश में बड़े क्षेत्रफल पर सब्जियों की खेती की जाती है। यदि आप भी सब्जियों की खेती आधुनिक और उन्नत खेती को अपनाते है तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। जनवरी व फरवरी महीने में आप सब्जियों की उन्नत किस्में लगा सकते हैं जिससे मार्च और अप्रैल महीने तक अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। तो आइए जानते हैं कम खर्च में सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें।
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सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना ले। इसके बाद मेड़ का निर्माण करके चार-चार इंच की दूरी पर बीज की बुवाई कर दें। मेड़ को प्लास्टिक मल्चिंग से ढक देना चाहिए। जब बीज अंकुरित हो जाए तब पौधे को मल्चिंग में छेद करके बाहर निकाल दें। बता दें कि इस विधि को अपनाने से सब्जियों में खरपतवार भी नहीं होता है। वहीं सिंचाई के लिए अधिक पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है। वहीं फसल कई तरह के रोगों से भी बची रहती है।
अन्य फसलों की तरह सब्जियों के बीजों का भी बुआई से पहले उपचार करना चाहिए। इसके लिए कार्बेंडाजिम एक से दो ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। ग्वारफली के बीजों के लिए दो ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलो बीज की दर से काम में लेना चाहिए, जिस भी सब्जी के बीज का उपचार करें, उसमें एफआईआर का ध्यान रखें। एफ यानी फफूंदनाशी, आई यानी इन्सेक्टीसाइड और आर यानी कल्चर। इन तीनों तरीके से उपचार करने से बीज हर तरह से सुरक्षित हो जाता है।
सब्जियों में सिंचाई के लिए टपक पद्धति का इस्तेमाल करें। इस विधि इससे जहां एक ओर पानी कम लगता है और सीधा जड़ों में पानी पहुंचाता है जिससे पौधों को काफी समय तक नमी मिलती रहती है। इससे पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती और कम पानी में कई एकड़ क्षेत्र की सिंचाई करना संभव हो पाता है।
उर्वरकों को सीधा खेत में नहीं छिडक़कर पानी में मिलाकर पौधे की जड़ों मेें देना चाहिए। इससे जहां उर्वरक का खर्च कम होगा। वहीं उर्वरक सीधे पौधे को लगेगा। जिससे पौधे की बढ़वार अच्छी होगी। वहीं मल्चिंग से ढंकने से वाष्प का निर्माण होता है जो पौधे की बढ़वार में मददगार होती है।
मल्चिंग विधि अपनाने से खरपतवार काफी कम होती है। वहीं कीट पतंगे भी फसल को कम नुकसान पहुंचाते हैं। घास मल्चिंग के नीचे रहकर ही खत्म हो जाती है। हालांकि विभिन्न कीट पतंगों से फसल को बचाने के लिए समय-समय पर जैविक कीटनाशकों का छिडक़ाव करते रहना चाहिए।
उपरोक्त तरीके अपनाने के अलावा अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों का चयन किया जाना चाहिए। इसके लिए आप अपने क्षेत्रीय कृषि विभाग से अपने क्षेत्रानुसार अनुशंसित किस्म के बारे में जानकारी ले सकते हैं। हम भी ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से समय-समय पर उन्नत किस्मों की जानकारी किसान भाइयों को देते हैं। बता दें कि उन्नत किस्म का चयन करने से पैदावार अधिक साथ ही गुणवत्ता के लिहाज से भी सही रहती हैं। गुणवत्तापूर्ण उत्पादन होने पर बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं।
एक ही फसल को बार-बार बोने से भूमि की उर्वराशक्ति कम होने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो बदल-बदल कर फसल बोएं। इससे खेत की उर्वराशक्ति बनी रहेगी। भूमि में कार्बन-नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है। भूमि की क्षरीयता मेें सुधार होता है। फसलों का बीमारियों से बचाव होता है, कीटों का नियंत्रण होता है। भूमि में विषाक्त पदार्थ एकत्र नहीं होते। अधिक मूल्यवान फसलों के साथ चुने गए फसल चक्रों में मुख्य दहलहनी, फसलें, चना, मटर, मसूर, अरहर उर्द, मूंग, लोबिया, राजमा आदि का समावेश जरूरी हो गया है।
फसल चक्र के निर्धारण में मूलभूत सिद्धांतों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे अधिक खाद चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसलों का उत्पादन, अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल, अधिक निराई गुड़ाई वाली फसल के बाद कम निराई गुड़ाई चाहने वाली फसल लगाए। फसल चक्र के सिद्धांत को आप साधारण तरीके से ऐसे भी समझ सकते हैं। जैसे आपके खेत में इस बार अगर दलहन है तो अगली बार अनाज लगाना चाहिए। तिलहन है तो सब्जी, अगर सब्जी है तो चारा बोएं, इन सब फसलों का चुनाव करना चाहिए।
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