सब्जियों की खेती : अक्टूबर माह में सब्जियों की ये किस्में देगी भरपूर मुनाफा

Share Product Published - 26 Sep 2020 by Tractor Junction

सब्जियों की खेती : अक्टूबर माह में सब्जियों की ये किस्में देगी भरपूर मुनाफा

किसान कम जगह में कई सब्जियां उगाकर कर सकते हैं अच्छी कमाई

किसानों के लिए कम समय में अधिक मुनाफा कमाने के लिए सब्जियों की खेती करना काफी फायदेमंद रहता है। इसमें कम जगह पर कई तरह की सब्जियों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। देश में सब्जी उत्पाद को बढऩे के लिए भारतीय सब्जी अनुसन्धान केंद्र की भी स्थापना की गई है। इसके अंतर्गत उद्यानिकी फसलों में सब्जियों का बढ़ावा दिया जा रहा है। किसान अक्टूबर माह में कई सब्जियों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि आप इस माह कौन-कौनसी सब्जियों की बुवाई करके अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के साथ ही भरपूर मुनाफा भी कमा सकते हैं। 

 

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अक्टूबर माह में करें इन सब्जियों की खेती / अक्टूबर माह में सब्जियों की खेती

इस माह में ब्रोकोली, फूलगोभी, आलू, टमाटर, मटर, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, आलू , सौंफ के बीज, गाजर, शलगम आदि की खेती की जा सकती है। इस समय इन सब्जियों की खेती करने से अच्छा उत्पादन मिलने के साथ ही बेहतर मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। हम यहां इसमें से उन प्रमुख फसलों के बारें में जानकारी देंगे जो आपकी कमाई बढ़ा सकें। 


1. ब्रोकोली की इन किस्मों से मिलेगा भरपूर मुनाफा

ब्रोकली गोभीय वर्गीय सब्जियों के अंतर्गत एक प्रमुख सब्जी है। यह एक पौष्टिक इटालियन गोभी है। जिसे मूलत: सलाद, सूप, व सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। ब्रोकली दो तरह की होती है – स्प्राउटिंग ब्रोकली एवं हेडिंग ब्रोकली। इसमें से स्प्राउटिंग ब्रोकली का प्रचलन अधिक है।

हेडिंग ब्रोकली बिलकुल फूलगोभी की तरह होती है, इसका रंग हरा, पीला अथवा बैंगनी होता है। हरे रंग की किस्म ज्यादा लोकप्रिय है। इसमें विटामिन, खनिज लवन (कैल्शियम, फास्फोरस एवं लौह तत्व) प्रचुरता में पाये जाते हैं। ब्रोकोली की सितंबर मध्य से नवंबर के शुरू तक पौध तैयारी की जा सकती है बीज बोने के लगभग 4 से 5 सप्ताह में इसकी पौध खेत में इसकी रोपाई की जा सकती हैं। इसकी नर्सरी ठीक फूल गोभी की नर्सरी की तरह तैयार की जाती है। ये खाने में काफी स्वादिष्ट होने के साथ ही कई पौष्टिक गुणों से भरपूर होती है। 

 


ब्रोकोली की अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में

के.टी.एस.-1 :  इस किस्म के शीर्ष हरे रंग के कोमल डंठल युक्त होते हैं, जिनका औसत वजन 200-300 ग्राम होता है और रोपाई के लगभग 80-90 दिनों बाद काटने योग्य हो जाता है। मुख्य शीर्ष काटने के कुछ दिनों बाद छोटे- छोटे शीर्ष शाखाओं की तरह मुख्य भाग के रूप में पत्तियों के कक्षों से निकलते हैं उन्हें भी काटकर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

पालक समृद्धि :  यह किस्म भी हरे शीर्ष वाली स्प्राउटिंग ब्रोकोली किस्म है। जिसका शीर्ष भाग बड़ा एवं लम्बे कोमल डंठल युक्त होता है। प्रत्येक शीर्ष का औसत वजन 25-300 ग्राम होता है। मुख्य शीर्ष को काटने के बाद छोटे-छोटे शीर्ष पत्तों के कक्षों से निकलते हैं। यह किस्म 85-90 दिनों में रोपाई के बाद कटाई योग्य हो जाती है। इसमें येलो आई रोग एवं ब्रैक्टिंग विकार के लिए प्रतिरोधिता पाई जाती है। एन.एस.- 50- यह मध्यम अवधि में तैयार होने वाली संकर किस्म है। इनके हेड गठीले, समरूप एवं गुम्बदाकार होते हैं। यह किस्म कैट आई से रहित है। इसके पौधे मृदुरोमिल आसिता एवं काला सडऩ रोग के प्रति सहनशील है। इसका बीज नामधारी मार्क से बाजार में मिलता है। 

ब्रोकोली संकर - 1 :  इसकी परिपक्वता रोपाई के 60- 65 दिन बाद होती है। इसके शीर्ष हरे रंग के गठीले होते हैं, जिसका औसत वजन 600- 800 ग्राम होता है। इसके बीज राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं।

टी.डी.सी. -6 :  इसके शीर्ष हरे रंग के होते हैं, जिसका औसत वजन 600-800 ग्राम होता है। इसकी फसल रोपाई के 65- 70 दिन बाद तैयार हो जाती है। इसकी बीज दर 300- 350 ग्राम प्रति हैक्टेयर अनुमोदित की गई है। इस प्रजाति के बीज उत्तराखंड तराई बीज निगम, पंतनगर द्वारा किसानों को उपलब्ध कराये जाते है। 


2. फूलगोभी की लगाएं ये उन्नत किस्में

यह समय मध्यकालीन फूलगोभी की उन्नत प्रजातियां जैसे- इम्प्रूव्ड जापानीज, पूसा दिवाली, पूसा कातकी, पंता सुभरा की रोपाई का उचित समय है। इसके लिए खेत की आखिरी जुताई पर 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 100 कि.ग्रा. फास्फोरस, 60 कि.ग्रा. पोटाश एवं 10 कि.ग्रा. बोरेक्स प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए। इससे अच्छा उत्पादन मिलता है। 50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहिए।


3. बंदगोभी की इन किस्मों की रोपाई करना होगा लाभदायक

 

गांठगोभी, बंदगोभी एवं पछेती फूलगोभी की रोपाई अक्टूबर में की सकती है। इसके लिए पत्तागोभी की मुक्त परागित किस्में गोल्डेन एकर, प्राइड ऑफ इंडिया, पूसा मुक्ता एवं संकर किस्में के.जी.एम.आर-1, क्विस्तो, श्री गणेश गोल, हरी रानी गोल, क्रांति आदि हैं। इनकी रोपाई करना लाभदायक रहेगा। ध्यान रहे इसकी रोपाई से पूर्व 200-250 क्विंटल खड़ी गोबर की खाद या 80 क्विंटल नाडेप कम्पोस्ट, 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस व 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेर की दर से खेत में अंतिम जुताई के समय मिला देना चाहिए। इससे अच्छा उत्पादन मिलता है।

 

4. पालक की इन किस्मों का करें चयन

 

पालक की खेती के लिए आल्ग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पालक नं. 51-16, वर्जीनिया सेवोय, अर्ली स्मूथ लीफ आदि उन्नत किस्मों की रोपाई की जा सकती है। पालक का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 25 से 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज की मात्रा पर्याप्त होती है। पालक की खेती से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए खाद व उर्वरक की संतुलित मात्रा का ध्यान रखना अति आवश्यक है। भूमि में खाद व उर्वरक की मात्रा का निर्धारण करने के लिए सबसे पहले खेत की मृदा का परीक्षण करवा लेना चाहिए। यदि किसी कारण से मिट्टी का परीक्षण समय पर न हो सके तो 25-30 टन प्रति हैक्टर गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद, 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। 


5. मेथी की इन किस्मों से मिलेगा अच्छा उत्पादन

मेथी एक औषधीय गुणों से भरपूर फसल है। इसके सूखे दाने का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है। वहीं आयुर्वेद की दवाओं में भी इसका उपयोग किया जाता है। मेथी की खेती के लिए उन्नत किस्में जैसे-पूसा अर्ली बन्चिंग, मेथी कसूरी व हिसार सोनाली किस्में 6-7 कटाई देती हैं। मेथी की खेती के लिए जीवांशयुक्त अच्छे जल निकास वाली दोमट चिकनी मिट्टी सर्वोतम होती है। खेत तैयार करते समय 17 टन प्रति हैक्टर गोबर की अच्छी सड़ी हुई देशी खाद के साथ 2.7 बोरे सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा आधा बोरा यूरिया डालें 7 पालक, मेथी, कसूरी मेथी के लिये पंक्ति से पंक्ति एवं पौधें से पौधें की दूरी 30*4-5 से.मी. पर बुआई करनी चाहिए। हर कराई के बाद पालक तथा मेथी में आधा बोरा यूरिया का प्रयोग करें। मेेथी के लिए 15-20 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। 


6. मूली के उत्पादन के लिए ये किस्में रहेगी अच्छी

इस माह मूली की एशियाई किस्मों जैसें-जापानी, व्हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मूली-1, कल्याणपुर- की बुआई करना फायदेमंद है। मूली का एक हैक्टर में बुआई के लिए 6-8 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। अगेती मूली की एशियाई किस्मों जैसे-पूसा देसी, पालक ह्रदय, जापानी, व्हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मूली-1, कल्याणपुर-1 की बुआई कर सकते हैं। मूली का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए इन किस्मों का 8-10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। भूमि में खाद व उर्वरक की मात्रा का निर्धारण करने के लिए मृदा का परीक्षण समय पर नहीं हो सके तो 10-15 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद, 80 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। 


7. अच्छी पैदावार के लिए लगाएं टमाटर की ये किस्में

टमाटर की अच्छी पैदावार के लिये इसकी उन्नत और संकर प्रजातियों के बीच की बुआई नर्सरी में करें। अगेती किस्मों जैसे-गोल्डन, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा सदाबाहर, पूसा रोहिणी , पूसा-120, पूसा गौरव, काशी अभिमान, काशी अमृत, काशी विशेष, पीएच-8, पीएच-4 की बुआई 15 सितंबर तक व पछेती किस्मों/संकर किस्मों की बुआई 15 सितंबर के बाद प्रारंभ करें। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए करने के लिए संकर और उन्नत प्रजातियों के लिये 250-300 ग्राम और 500-600 ग्राम प्रति हैक्टर बीज पर्याप्त होता है। टमाटर की बौनी किस्मों की रोपाई 60*60 सें.मी. तथा अधिक बढऩे वाली किस्मों की रोपाई 75*60 सें.मी. पर करें। किसान टमाटर की रोपाई के समय प्रति हेक्टयर 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद अथवा 80 क्विंटल नाडेप कम्पोस्ट के साथ 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 80 कि.ग्रा. पोटाश, 20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 8 कि.ग्रा. बोरेक्स का प्रयोग करें। खरपतवार टमाटर की फसल में शुरुआती 4-6 सप्ताह तक अधिक नुकसान करते हैं। इसके लिए सिंचाई के बाद हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथेलीन  (30 ई.सी.) 400 मि.ली. की मात्रा/एकड़ को 200 लीटर पानी में रोपाई से पहले छिडक़ाव करना चाहिए। 


8. धनिया उत्पादन के लिए लगाएं ये किस्में

धनिया की उन्नत प्रजाति पंत धनिया-1, पंत हरितिमा, आजाद धनिया-1, मोरक्कन, गुजरात धनिया-1, गुजरात धनिया-2, जवाहर धनिया-1, सी.एस.-6, आर.सी.आर.-4, सिंधु की बुआई सितंबर में वर्षा सप्ताह होने पर कर सकते हैं। इसके लिए 15-20 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर के लिए पर्याप्त होता है। 

9. आलू की अगेती फसल के लिए इन किस्मों का करें चुनाव

आलू की अगेती फसल के लिए सितंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक बुआई की जा सकती है। अगेती आलू की बुआई के लिए कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी कुबेर, कुफरी बहार, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका तथा अल्टीमेटम किस्में मुख्य हैं।  आलू की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मृदा, जिसमें जैविक पदार्थ की बहुलता हो, उपयुक्त है। खेती की तैयारी करते समय खेत की आखिरी जुताई पर 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 80 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 80 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए।


10. मटर की अगेती प्रजातियों की करें बुवाई

मटर की अगेती प्रजातियों की बुआई सितंबर से अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के मध्य तक की जा सकती हैं। मटर की अगेती प्रजातियों में जैसे-आजाद मटर-3, काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और अगेती प्रमुख हैं।  मटर की इन प्रजातियों की सबसे खास बात यह है कि यह 50 से लेकर 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं, जिससे खेत जल्दी खाली हो जाता है और किसान दूसरी फसलों की बुआई भी कर सकता है।

बुआई के लिए प्रति हैक्टर 80 से लेकर 100 कि.ग्रा. बीज की जरुरत पड़ती है। मटर को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए मैंकोजेब 3 ग्राम या थीरम 2 ग्राम को प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। अगेती प्रजातियों के लिए पक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की दूरी 30*6-8 सें.मी. रखनी चाहिए। खेत की तैयारी के समय प्रति हैक्टर 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद के साथ 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 50 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। मटर की खेती के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी दोनों उपयुक्त होती हैं।

 

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