प्रकाशित - 23 Mar 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में किसान खाली खेत में मूंग की बुवाई करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। आजकल गर्मी के सीजन में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो रही है। इसे देखते हुए बहुत से किसान मूंग की खेती करने में अपनी रूचि दिखा रहे हैं। यह समय मूंग की खेती के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इस समय प्राकृतिक आपदाओं जैसे– बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा आदि की संभावना कम रहती है। ऐसे में इस समय किसान मूंग की खेती करके इससे अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। मूंग की बाजार मांग होने से इसके भाव भी अच्छे मिल जाते हैं।
गर्मी के मौसम में मूंग की खेती के लिए अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए किसानों को उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि कीट–रोग आदि का प्रकोप कम हो और उत्पादन भी अच्छा मिल सके। ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई का उचित समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक होता है। जो किसान समय से मूंग की बुवाई करना करना चाहते हैं, वे 70 से 80 दिनों में तैयार होने वाली किस्मों का चयन कर सकते हैं। वहीं जहां किसान देरी से बुवाई कर रहे हैं उन किसानों को मूंग की 60–65 दिन में तैयार होने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। मूंग का बेहतर उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में इस प्रकार से हैं।
मूंग की पूसा 9531 किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म पीत चित्ती रोग के प्रतिरोधी किस्म हैं और मध्य भारत के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 60 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से औसत उपज 9 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से प्राप्त की जा सकती है।
मूंग की पूसा रत्न किस्म को आईएआर आई द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म पीला मोजेक वायरस के प्रति सहनशील है। मूंग की यह किस्म 65 से 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 12 से 13 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म को पंजाब व दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त पाया गया है।
मूंग की पूसा 672 किस्म भी काफी अच्छी किस्म है जो 60 से 80 दिन की अवधि में तैयार हो जाती है और बेहतर पैदावार देती है। इस किस्म से करीब 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त हो सकती है।
मूंग की केपीएम 409–4 (हीरा) किस्म को आईआईपीआर, कानपुर की ओर से विकसित किया गया है। यह एक बहुमुखी किस्म है जो वसंत ओर ग्रीष्म दोनों मौसम में बेहतर पैदावार देती है। यह किस्म कई रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। ऐसे में इसमें रासायनिक उर्वरकों की बहुत कम जरूरत पड़ती है। मूंग की यह किस्म 65–70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मूंग की इस किस्म से 8 से 10 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूंग की वसुधा (आई.पी.एम. 312-20) किस्म को आईआईपीआर कानपुर की ओर से विकसित किया गया है। यह किस्म सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट, लीफ क्रिंकल और लीफ कर्ल रोगों के प्रति उच्च प्रतिरोधक किस्म है। यह किस्म 65 से 80 दिन में तैयार हो जाती है। मूंग की इस किस्म से करीब 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूंग की सूर्या (आई.पी.एम. 512-1) किस्म को आईआईपीआर कानपुर द्वारा 2020 में जारी किया गया था। यह किस्म सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट और एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। मूंग की यह किस्म 60 से 65 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 12–13 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म को विशेषकर उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त पाया गया है।
मूंग की कनिका (आई.पी.एम. 302-2) किस्म को आईसीएआर–आईआईपीआर की ओर से विकसित किया गया है। यह किस्म पीला मोजेक रोग के लिए अधिक प्रतिरोधी है। इसके दाने बड़े आकर्षक हरे और चमकदार होते हैं। मूंग की इस किस्म से 12 से 14 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।