कम पानी में ज्यादा उपज देने वाली धान की 10 बेहतरीन किस्में, जानें फायदे और विशेषताएं

Share Product प्रकाशित - 06 Jun 2025 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

कम पानी में ज्यादा उपज देने वाली धान की 10 बेहतरीन किस्में, जानें फायदे और विशेषताएं

जलवायु के अनुसार तैयार ये धान की उन्नत वैरायटीज, सूखा, बाढ़ और लवणीय मिट्टी में भी देती हैं बेहतर पैदावार

10 Best Varieties of Paddy : जलवायु परिवर्तन के इस दौर में पारंपरिक खेती के तरीकों से आगे सोचना आज की आवश्यकता है। यही कारण है कि आज किसान आधुनिक, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल किस्मों की ओर रुख कर रहे हैं। इनमें खासतौर से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए जलवायु-स्मार्ट किस्में किसानों के लिए वरदान बनकर उभर रही हैं। 

धान, जो भारत समेत एशिया और अफ्रीका के करोड़ों लोगों का मुख्य भोजन है, लेकिन आज उसकी खेती सबसे अधिक जल संकट और मौसम की अनियमितता से प्रभावित हो रही है। ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई नई किस्में न केवल कम पानी में ज्यादा उपज देती हैं, बल्कि सूखा, बाढ़, लवणीय मिट्टी जैसी कठोर परिस्थितियों में भी बेहतर उपज दे सकती हैं।

आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको धान की ऐसी ही 10 प्रमुख किस्मों की जानकारी दे रहे हैं जो कम पानी, कम समय में बेहतर उपज देकर किसानों की आय बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं, तो आइए जानते हैं, इनके बारे में। 

पूसा DST चावल 1 (Pusa DST Rice 1)

धान की पूसा DST चावल 1 किस्म को IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह MTU 1010 किस्म से तैयार की गई है। धान की इस किस्म की खास बात यह है कि यह किस्म सूखा और लवणीय मिट्टी दोनों को सहन करने की क्षमता रखती है। कठिन परिस्थितियों में भी यह 20% तक अधिक पैदावार दे सकती है।  

पूसा बासमती 1509 (Pusa Basmati 1509)

बासमती चावल की पूसा बासमती 1509 किस्म केवल 15 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म की खास बात यह है कि यह पारंपरिक किस्मों की तुलना में 33% तक पानी की बचत करती है और गेहूं की समय पर बुवाई के लिए खेत जल्दी खाली कर देती है।

पूसा आरएच 60 (Pusa RH 60)

धान की पूसा आरएच 60 किस्म सुगंधित, लंबा दाना देने वाली हाइब्रिड किस्म है। धान की इस किस्म की मांग बाजार में होने से इसका बेहतर दाम मिल सकता है। धान की इस किस्म की मांग बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत अधिक है। 

पूसा नरेंद्र KN1 और CRD KN2  (Pusa Narendra KN1 and CRD KN2)

धान की ये किस्में पारंपरिक कालानमक चावल का उन्नत रूप हैं। ये बेहतर उपज देने में सक्षम है और कीट और रोग प्रतिरोधी भी हैं, जिससे किसानों को कीटनाशक पर अधिक पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है जिससे उनकी खेती की लागत में बचत होती है।

पूसा-2090 (Pusa -2090)

धान की 7. पूसा-2090 किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति एकड़ 34 से 35 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म पर्यावरण के अनुकूल है, ऐसा इसलिए की इस किस्म में फसल कटाई के बाद पराली जलाने की जरूरत कम पड़ती है।

डीआरआर धान 100 (कमला) (DRR Paddy 100 (Kamala))

धान की डीआरआर धान 100 (कमला) किस्म को भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIRR), हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म जल्दी पककर तैयार हो जाती है। खास बात यह है कि यह किस्म मीथेन उत्सर्जन को कम करती है। धान की यह किस्म परंपरागत किस्मों की तुलना में 19 प्रतिशत तक अधिक उपज दे सकती है। इसके अलावा यह किस्म पर्यावरण के लिए भी अनुकूल मानी गई है। 

स्वर्णा-सब1 (swarna-sub1)

धान की स्वर्णा-सब1 किस्म बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों, विशेष रूप से पूर्वी भारत के लिए उपयुक्त है। इस किस्म का पौधा 14 दिनों तक पानी के नीचे जीवित रह सकता है। इस किस्म के दाने छोटे और मोटे होते हैं जो स्थानीय उपभोग के लिए उपयोगी हैं। 

सीआर धान 108 (CR Paddy 108)

धान की सीआर धान 108 किस्म 112 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म वर्षा आधारित खेती के लिए काफी अच्छी है। विशेष रूप से ओडिशा व बिहार जैसे राज्यों के लिए, जहां अनियमित बारिश सामान्य है। 

सामुलाई-1444 (samulai -1444)

धान की सामुलाई-1444 किस्म बेहतर क्वालिटी वाली किस्म मानी जाती है। यह किस्म 140 से 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म को लंबे समय तक उगाया जा सकता है। इस किस्म की बाजार व निर्यात मांग अच्छी होने से इसका बेहतर मूल्य मिलता है।

एराइज हाइब्रिड (Arise Hybrid)

धान की एराइज हाइब्रिड किस्म खासतौर से दक्षिण एशिया में लोकप्रिय है। यह किस्म बड़े स्तर पर व्यावसायिक खेती के लिए उपयोगी मानी जाती है। यह किस्म अन्य पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक उपज देती है। 

नोट : किसान अपने क्षेत्र व जलवायु के आधार पर धान की उन्नत किस्मों का चयन करें, इस संबंध में किसान अपने जिले के निकटतम कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या कृषि विभाग से संपर्क कर कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं। 

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