Published - 14 Apr 2021 by Tractor Junction
देश तटीय इलाकों में बसे राज्यों में अति बारिश और बाढ़ का आना कोई नहीं बात नहीं है। प्रतिवर्ष कई राज्यों में बाढ़ के हालत हो जाते हैं और इससे वहां के किसानों की कई क्विंटल फसल नष्ट हो जाती है जिससे प्रतिवर्ष किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे ज्यादा मुसीबत धान की खेती करने वाले किसानों के सामने आती है। हालांकि धान की खेती के लिए पानी की आवश्यकता होती है पर अति बारिश और बाढ़ से इसकी फसल को नुकसान होता है। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए जोनल एग्रीकल्चर एंड हॉर्टिकल्चरल रिसर्च स्टेशन (जेडएएचआरएस), ब्रह्मवार, उडुपी जिला, कर्नाटक राज्य ने 2019 के दौरान बाढ़ प्रतिरोधी लाल चावल किस्म- सह्याद्रि पंचमुखी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत चावल परियोजना (आईसीएआर) जारी की है।
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बता दें कि तटीय कर्नाटक में आम तौर पर धान की किस्में जैसे एमओ 4 और स्वदेशी किस्म- काजयाया की खेती बड़े क्षेत्र में की जाती है यहां तक कि एक सप्ताह की बाढ़ की स्थिति के कारण भी कम उत्पादन होता है। तटीय कर्नाटक के मैंगलोर तालुक (दक्षिण कन्नड़ और उडुपी) में धान की खेती के लिए प्रतिकूल स्थिति पैदा करने वाली लंबी अवधि के लिए बाढ़ के साथ 300 हेक्टेयर धान की भूमि जलमग्न है और जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन कम होता है। इसलिए, क्षेत्र की कम बाढ़ की स्थिति के लिए उपयुक्त धान की किस्म समय की आवश्यकता महसूस होने के बाद इस धान की नई किस्म को बाढग़्रस्त इलाकों के लिए जारी किया गया है।
मंगलोर स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र में इसके बीज का उत्पादन शुरू कर दिया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसानों तक इसे पहुंचाया जा सके। अब तक किए गए कार्यों के मुताबिक, 2019 के खरीफ सीजन के दौरान 500 एकड़ जमीन पर सह्याद्रि पंचमुखी बोने का लक्ष्य रखा गया। इसके तहत चार किसानों को सह्याद्रि पंचमुखी के 180 क्विंटल बीज बांटे गए। खरीफ 2020 के दौरान धान रोपाई का लक्ष्य बढ़ाकर 1 हजार एकड़ कर दिया गया। इसके लिए मंगलोर के 11 किसानों को 250 क्विंटल बीज दिए गए है। इनमें एक किसान सह्याद्रि पंचमुखी के 100 क्विंटल बीज तैयार करने में सफल रहे। इस साल बीज उत्पादन का काम और तेज किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक किसान इस किस्म की खेती कर लाभान्वित हो सके। इधर वैज्ञानिक भी इस धान की इस किस्म को अपने क्षेत्र में लगाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रहे हैं।
कोरोना महामारी के बावजूद इस साल खरीफ की बुवाई का रकबा करीब रकवा पिछले साल के मुकाबले इस सीजन में 16.4 फीसदी बढ़ चुका है। पिछले साल 67.8 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुवाई हुई थी। बता दें कि खरीफ की फसलें मार्च से मई के बीच बोई जाती है। मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार कृषि मंत्रालय ने कहा कि पिछले साल अच्छी बारिश होने की वजह से इस बार जमीन में नमी मौजूद है और यह फसलों के लिए बहुत बेहतर स्थिति है। पिछले 10 साल के औसत की तुलना में इस बार देश के जलाशय 21 फ़ीसदी तक अधिक भरे हुए हैं। हमें उम्मीद है कि इस बार देश में बंपर कृषि उपज हो सकती है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस साल दालों का रकबा 51 फ़ीसदी तक बढ़ा है। इस बार दाल की बुवाई 8.68 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि धान की बुवाई का रकबा 7.6 प्रतिशत बढक़र 38.80 लाख हेक्टेयर हो गया है। इस बारे में कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार किसानों को खरीफ फसल की बुआई के लिए प्रेरित करना चाहती है क्योंकि अब देश के कई इलाकों में सिंचाई की सुविधा मौजूद है। इससे देश में दालों और तिलहन की उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी और आयात पर निर्भरता कम होगी।
इससे पहले कृषि मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि गर्मियों की फसल यानी खरीफ सीजन की बुवाई की प्रगति बहुत अच्छी है। रबी की फसल भी अच्छी है। देश में मार्च के अंत तक कुल लगभग 48 फीसदी रबी फसलों की कटाई हो चुकी है। सरकार के आंकड़ों के हिसाब से पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में खरीफ फसलों की बुवाई बेहतर तरीके से हो रही है। खरीफ फसलों की खेती में मक्का, बाजरा और रागी का रकबा पिछले साल से 27 फ़ीसदी बढ़ा है। इसके साथ ही तिलहन का रकबा भी बढक़र 9.53 लाख हेक्टेयर हो गया है। कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि गुजरात में अब मूंगफली की खेती जोर पकड़ रही है। इस बार खाद्य तेल महंगे होने की वजह से ज्यादा से ज्यादा किसान तिलहन की खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। पिछले 3 महीने में खाद्य तेल के भाव 45 फीसदी तक बढ़ चुके हैं।
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