Published - 24 Nov 2020 by Tractor Junction
पराली जलाने की समस्या से देश के कई राज्य जूझ रहे हैं। पराली जलाने से वातावरण में फैलता धुआं हमारे सांस लेने के लिए काम में आने वाली प्राणवायु आक्सीजन को दूषित करता जा रहा है। पराली जलाने से वातावरण में कार्बन की मात्रा अधिक होती जा रही है ऑक्सीजन का स्तर कम होता जा रहा है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि ऐसे इलाकों के आसपास के लोग अस्थमा, एलर्जी सहित अन्य बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं। हवा में मिलता जहर हमारी सांसों के द्वारा शरीर में पहुंच रहा है जो कई बीमारियों को न्योता दे रहा है। इन सबके बीच होशंगाबाद के एक किसान ने पराली की समस्या का समाधान खोज कर प्रदेश का मान बढ़ाया है। इन्होंने मक्का फसल के अवशेषों का उपयोग पशुओं के खाने के लिए साइलेज बनाने के काम में लिया जिससे उन्हें काफी मुनाफा हो रहा है।
हम आज बात करेंगे होशंगाबाद जिले के उन्नत कृषक शरद वर्मा की जिन्होंने मक्का फसल के अवशेषों को लेकर जो नवाचार किया ह, वह सम्भवत: मध्यप्रदेश में पहला है। इसमें फसल अवशेष से साइलेज बनाया जाता है, जिससे किसानों को जहां ज़्यादा मुनाफा मिलता है, वहीं पशुओं के दूध में फेट की मात्रा भी बढ़ती है। शरद वर्मा के इस नवाचार ने प्रदेश की शान बढ़ा दी है।
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मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार मूलत: ग्राम घाटली ( इटारसी ) जिला होशंगाबाद के उन्नत कृषक शरद वर्मा ने मीडिया को बताया कि 2016 में वे आस्ट्रेलिया /न्यूजीलैंड के दौरे पर गए थे। वहां इसका प्रयोग होते देखा था, तभी विचार किया था कि इस मशीन की अपने देश में भी जरूरत है। आखिरकार मैंने इसे खरीदने के लिए ब्राजील की एक कंपनी, जो इसे भारत में बनाती है, से संपर्क किया और इसे 4 लाख रुपए में खरीदा लिया। इस स्वचालित मशीन से मक्का के फसल अवशेष से साइलेज बनाया जाता है।
एयरटाइट एक बोरी में 50 किलो साइलेज आ जाता है। इसकी 20 बोरियों को घर में रखना आसान है। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। दूध भरे हरे भुट्टे के साइलेज से पशुओं के दूध में फेट की मात्रा भी बढ़ती है। वर्मा ने कहा कि फिलहाल मक्का 8 रुपए किलो बिक रही है, जबकि यह साइलेज डेयरी वाले 500 रुपए क्विंटल में खरीद रहे हैं। अब तक 200 क्विंटल से अधिक साइलेज बना लिया है। इसकी अच्छी मांग निकल रही है। इससे पराली की समस्या के समाधान के साथ ही प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी। बता दें कि वर्मा की पत्नी कंचन वर्मा को कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
इस बारे में डॉ. के.के. मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, क्षेत्रीय कृषि अनुसन्धान केंद्र , पंवारखेडा के अनुसार श्री वर्मा का यह नवाचार हर दृष्टि फायदेमंद है। पर्यावरण प्रदूषण के बचाव के साथ ही डेयरी वालों को 5 रुपए किलो में पशुओं के लिए पौष्टिक आहार मिल रहा है, जबकि, श्री दीपक वासवानी, सहायक यंत्री कृषि के अनुसार मध्यप्रदेश में यह पहली मशीन है जिसे लखनऊ से लाया गया है। इनमें बने 4 ड्रम में मक्के की पराली की कटिंग, थ्रेशिंग और कॉम्प्रेस कर साइलेज बनाती है, जिसे 50 किलो के एयरटाइट बैग में रखा जाता है। 3-4 दिन सेट होने के लिए रखा जाता है। यह पशुओं के लिए बढिय़ा आहार है। वहीं श्री जितेन्द्र सिंह, उप संचालक कृषि , होशंगाबाद के अनुसार श्री शरद वर्मा का मक्का के अपशिष्ट का यह नवाचार आम के आम , गुठलियों के दाम जैसा है। इससे पराली की समस्या भी रुकेगी और किसान को अतिरिक्त आय भी होगी।
यह मशीन पोर्टेबल है , जिसे किसानों के खेत तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। अभी इस मशीन पर अनुदान नहीं मिलता है। इसे लेकर शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा, वहां से स्वीकृति मिलने पर अनुदान दिया जाएगा। इससे किसानों को लाभ होगा।
साइलेज बनाने के लिए दाने वाली फसलें जैसे- मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि का उपयोग किया जाता है। क्योंकि इनमें कार्बोहाईड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इससे दबे चारे में किण्वन क्रिया तेज होती है। दलहनीय फसलों का साइलेज अच्छा नहीं रहता है, लेकिन दहलनीय फसलों को दाने वाली फसलों के साथ मिलकार साइलेज बनाया जा सकता है। शीरा या गुड़ के घोल का उपयोग किया जाए, जिससे अम्ल की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।
जिस चारे से साइलेेज बनाना है उसे काट कर थोड़ी देर के लिए खेत में सुखाने के लिए छोड़ देना चाहिए, जब चारे में नमी 70 प्रतिशत के लगभग रह जाए, उसे कुट्टी काटने वाले मशीन से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर गड्ढों में अच्छी तरह से दबाकर भर देना चाहिए। छोटे गड्ढों को आदमी पैरों से दबा सकते हैं, जबकि बड़े गड्ढें ट्रैक्टर चलाकर कर दबा देने चाहिए। जब तक जमीन की तह से लगभग एक मीटर ऊंची ढेर न लग जाएं, तब तक भराई करते रहना चाहिए। भराई के बाद उपर से गुंबदकार बना दें तथा पोलिथीन या सूखे घास से ढक कर मिट्टी अच्छी तरह से दबा दें। साइलेज बनाने के लिए गड्ढे हमेशा ऊंचे स्थान पर बनाने चाहिए, जहां से बारिश के पानी का निकासी अच्छी तरह से हो सके। भूमि में पानी का स्तर नीचे हो।
इसके अलावा गड्ढे का आकार चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। गड्ढों के धरातल में ईंटों से तथा चारों ओर से सीमेंट एवं ईटों से भली भांति भराई कर देनी चाहिए। गड्ढे को भरने के तीन महीने बाद उसे खोलना चाहिए। खोलते वक्त एक बात का विशेष ध्यान रखें कि साइलेज एक तरफ से परतों में निकाला जाए। ध्यान रहे गड्ढे के उपरी भागों और दीवारों के पास में कुछ फफूंदी लग जाती है, जिसे पशु को खिलाना नहीं चाहिए।
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