प्रकाशित - 22 Apr 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों की ओर से नई–नई किस्में विकसित की जाती हैं। इसी कड़ी में आईसीएआर–भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा, नई दिल्ली द्वारा चने की नई उन्नत किस्म पूसा चना 4037 अश्विनी का विकास किया गया है। खास बात यह है कि यह किस्म कई रोगों के लिए प्रतिरोधी होने के कारण कम लागत में अधिक पैदावार दे सकती है। बताया जा रहा है कि चने की यह किस्म 36 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक की उपज दे सकती है। इस किस्म का नाम “अश्विनी” पूसा की एक प्रतिभाशाली छात्रा और वैज्ञानिक डॉ. अश्विनी के सम्मान में रखा गया है जिन्होंने हाल ही में तेलंगाना–आंध्रप्रदेश में आई बाढ़ में दुखद रूप से अपनी जान गंवा दी थी। इस किस्म को दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, जम्मू–कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए अधिसूचित किया गया है। इस राज्यों के किसान इसकी खेती कर सकते हैं। आइए जानते हैं, पूसा की इस नई किस्म अश्विनी की विशेषता, लाभ और बुवाई का तरीका।
चने की अश्विनी किस्म के अलावा भी पूसा की अन्य कई ऐसी चने की किस्में हैं जो अधिक पैदावार देती है, वे किस्म इस प्रकार से हैं–
चने की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती रेतीली व चिकनी मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। वहीं इसके लिए खारी व नमक वाली भूमि अच्छी नहीं होती है। चने के अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 पीएच के बीच होना चाहिए। खेती से पहले खेत की सही से जुताई कर लेनी चाहिए। कम बारिश वाले क्षेत्रों में चने की बुवाई 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करना अच्छा रहता है। जबकि सिंचाई वाले क्षेत्रों में 25 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच बुवाई की जा सकती है। चने की सही समय पर बुवाई करने से बेहतर पैदावार मिलती है। वहीं देरी से बुवाई करने से कम पैदावार प्राप्त होती है। चने की बुवाई करते समय बीजों के बीच की दूरी 10 सेमी और कतार से कतार की दूरी 30–40 सेमी होनी चाहिए। वहीं बीज को 10–12.8 सेमी की गहराई में बोना चाहिए। कम पानी तथा सिंचाई वाले क्षेत्रों में प्रति एकड़ 13 किलो यूरिया और 50 किलो सुपर फास्फेट प्रयोग करना चाहिए। वहीं काबुली चने की किस्मों के लिए बुवाई के समय 13 किलो यूरिया और 100 किलो सुपर फास्फेट प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए।
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