राहत पैकेज में किसानों को और कर्जदार बनाने की नीतियां

Share Product Published - 15 May 2020 by Tractor Junction

राहत पैकेज में किसानों को और कर्जदार बनाने की नीतियां

कर्जमाफी, सब्सिडी, बकाया भुगतान और नुकसान की भरपाई के मुद्दे गायब

कोरोना लॉकडाउन में देश की अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इस आर्थिक पैकेज में किसानों का विशेष ध्यान रखने का दावा केंद्र सरकार ने किया है और किसानों के लिए 30 हजार करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया है। पैकेज जारी होने के बाद किसान संगठनों और किसानों ने इसे बोगस करार दिया है। किसानों ने कहा कि इस पैकेज से किसानों को और कर्जदार बनाने की नीतियां ही सामने आई हैं। किसानों की फसलों के नुकसान की भरपाई, कर्जमाफी, खाद एवं बीज पर सब्सिडी और गन्ना के बकाया भुगतान जैसे जरूरी मुद्दों पर चर्चा तक नहीं हुई। अगर सरकार इन मुद्दों पर ध्यान देती तो किसान ज्यादा मजबूती के साथ कोरोना संकट काल में सरकार के साथ खड़ा रहता। अब किसानों का कहना है कि उन्हें एकजुट होकर सरकार तक अपनी बात पहुंचानी होगी ताकि उनकी इन मांगों पर जल्द से जल्द सुनवाई हो।

 

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किसान संगठनों ने कहा-पूरा राहत पैकेज ही बोगस

कोरोना राहत पैकेज में किसानों व मजदूरों को 30 हजार करोड़ रुपए से राहत पहुंचाने का दावा किया गया है। लेकिन जमीन से जुड़े किसानों का कहना है कि कोरोना संकट काल में देश के किसानों की वजह से ही देशवासियों को खाने-पीने की वस्तुओं की कोई कमी नहीं हुई। अगर देश का किसान आर्थिक रूप से मजबूत होगा तो देश आगे बढ़ेगा। सरकार के आर्थिक पैकेज से किसानों के हिस्से में सिर्फ वादे ही आए हैं। किसान संगठनों के अनुसार किसानों के लिए केवल नाम का राहत पैकेज जारी किया गया है। किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी कर्जमाफी जैसे बिंदुओं पर चर्चा तक नहीं हुई। इसके अलावा लॉकडाउन के दौरान फल व सब्जी किसानों को भारी नुकसान पहुंचा है। इसकी भरपाई कैसे होगी यह भी नहीं बताया गया है। खाद एवं बीज पर सब्सिडी कम करके सरकार राहत दे सकती थी लेकिन सरकार इस इस ओर ध्यान ही नहीं गया। गन्ने के बकाया भुगतान को लेकर भी घोषणा नहीं की गई।

 

किसानों ने बताई जमीनी हकीकत

राजस्थान के मालाखेड़ा, अलवर जिले के किसानों ने सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत बताई।

  • किसान को उसकी उपज का मूल्य लागत के अनुसार नहीं मिल रहा है। लागत लगातार बढ़ रही है लेकिन उपज का मूल्य उस अनुपात में नहीं बढ़ रहा है।
  • समर्थन मूल्य पर कृषि जिंसों की खरीद में भारी अनियमितताएं हैं।
  • बैंक किसानों को आसानी से ऋण नहीं देती है। जमीन तक गिरवी रखनी पड़ती है।
  • केंद्र सरकार ने सहकारिता से जूड़े किसानों के लिए ऋण सीमा बढ़ाने की बात कही थी लेकिन कोई धनराशि राज्य सरकार को उपलब्ध नहीं कराई गई।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को पूर्ण लाभ बीमा कंपनी प्रदान नहीं कर रही है। इससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है।
  • कृषि कार्य में काम आने वाले उर्वरक बीज के अलावा जुताई-बुवाई सहित अन्य सभी कार्य 10 से 30 गुना तक महंगे हो गए हैं। जबकि कृषि जिंस का भाव 5 से 10 गुना तक नहीं बढ़ाया गया है।
  • किसान परिवारों को पेंशन योजना की घोषणा पूर्व में की गई थी लेकिन कोई भी सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।
  • वर्तमान में कर्जा देकर किसानों को और डूबाया जा रहा है। जब किसान कर्ज नहीं चुका पाता तो बैंक उसकी जमीन कुर्क कर देता है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड पर पूर्व में लिया गया ऋण किसान अभी तक नहीं चुका पाया है। अब वह और ऋण लेगा तो चुकाएगा कैसे? सरकार अभी जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।
  • किसानों को अगर प्रत्यक्ष रूप से सहायता देनी है तो उनके बिजली के बिल पूरे माफ करने चाहिए।

 

 

राहत पैकेज में किसानों की और कर्जदार बनाने की स्कीम

किसानों का कहना है कि सरकार के कोरोना वायरस पैकेज की घोषणाओं में सब्जी, फल, डेयरी, मछली और पोल्ट्री सेक्टर के किसानों के नुकसान की भरपाई की बात नहीं हुई, केवल किसानों को और ज्यादा कर्जा देने की घोषणा हुई। फसल के दाम की कोई बात नहीं हुई, बस कर्जा लादने की स्कीम समझाई गई। अभी जमीन पर हालात ऐसे हैं कि बैंक अपना पुराना कर्ज वसूलने में जुटी हुई है और किसानों के न तो बिजली के बिल माफ किए गए ना ही समर्थन मूल्य पर खरीद की सही व्यवस्था है। किसानों का दर्द है कि लॉकडाउन का सबसे अधिक नुकसान किसानों को हुआ है। लाकडाउन के कारण मछुआरों, पशुपालकों की आमदनी समाप्त हो गई थी लेकिन मोदी सरकार के 20 लाख करोड़ के वित्तीय पैकेज में लघु एवं सीमान्त किसानों के हिस्से में केवल क्रेडिट कार्ड मिलने का वायदा ही निकला।

 

गरीब, किसान और मजदूरों के जले पर नमक छिडक़ने का कार्य

देश भर के 250 से ज्यादा किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह के अनुसार राहत पैकेज में किसानों को कुछ नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने राहत पैकेज के नाम पर गरीब, किसान और मजदूरों के जले पर नमक छिडक़ने का कार्य किया है। यह पूरा पैकेज ही बोगस है। हम गरीब किसान एवं मजदूर के लिए सरकार से कर्जमाफी, फसलों को हुए नुकसान की भरपाई के साथ ही गन्ना किसानों के बकाया भुगतान की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया।

 

आखिर अन्नदाता के साथ ही बार-बार धोखा

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक बार और सिर्फ कर्ज का वादा तथा एक बार फिर किसान खाली हाथ। उन्होंने कहा कि न तो लॉकडाउन में किसानों को हुए फल, सब्जी और दूध के नुकसान की भरपाई की कोई घोषणा की गई, और न ही किसानों को फसल के गिरे दाम दिलवाने की योजना की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए न बीज और खाद के लिए कोई सब्सिडी देने की बात और न ही डीजल के दाम से राहत देने की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि आखिर अन्नदाता के साथ ही बार-बार यह धोखा क्यों? राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के अनुसार उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का 16,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है। लेकिन राहत पैकेज में सरकार की किसान के लिए कोई योजना नहीं दिखी। 

 

 

किसान को खैरात नहीं मेहनत का फल चाहिए

भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के अनुसार वित्त मंत्री द्वारा किसानों के लिए घोषित आर्थिक पैकेज में कृषि ऋण को तीन माह आगे बढ़ाने एवं किसान के्रडिट कार्ड से लोन दिए जाने के अलावा कोई नई घोषणा नहीं की। उन्होंने कहा कि सरकार की घोषणाओं से किसान आत्मनिर्भरता की नहीं आत्महत्या की तरफ रुख करेगा। जिस आत्मनिर्भरता की बात सरकार कर रही है, खेती के बिना उसे हासिल करना कठिन ही नहीं, असंभव है। उन्होंने कहा कि किसान पहले ही बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार झेल रहा है, उपर से सरकार ने भी उसे राहत पैकेज के रूप में निराश ही किया है, इसलिए भाकियू जल्दी ही इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए आंदोलन करेगी।
 

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