Published - 01 Dec 2020
by Tractor Junction
किसान आंदोलन के बीच देश में आलू-प्याज के दाम आम जनता पर भारी पड़ रहे हैं। जहां एक ओर किसान आंदोलन ने सरकार की नींद उठाकर रख दी है, वहीं दूसरी ओर प्याज ने आम आदमी की। कभी गरीब आदमी प्याज से रोटी खाकर अपना समय निकाल लेता था लेकिन आज प्याज से रोटी खाना महंगा होता जा रहा है। हाल ही में इंदौर से 180 टन प्याज किसान रेल से गुवाहाटी पहुंचाया गया। इसी तरह से कई जगह पर बाहर से आपूर्ति की जा रही है। करीब दो माह के अंदर प्याज के भावों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कारोबारियों का कहना है कि कुछ समय में प्याज की कीमतें 100 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर को पार कर सकती हैं।
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ट्रेडर्स का कहना है कि फिलहाल मंडियों में टमाटर 50-60 रुपए प्रति किलोग्राम और आलू 45 रुपए के प्रति किलो के आस-पास बिक रहा है। प्याज की खपत बढऩे से इसके भावों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का डेटा दिखाता है कि पिछले एक साल में, थोक बाजार में आलू के दाम 108 प्रतिशत बढ़े हैं। साल भर पहले थोक में आलू 1,739 रुपए क्विंटल बिकता था, वहीं अब 3,633 रुपए क्विंटल हो गया है। पिछले महीने प्याज के दाम 5,645 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे जो कि सालभर पहले 1,739 हुआ करते थे। यानी प्याज के रेट सालभर में 47 प्रतिशत बढ़ तक की बढ़ोतरी हुई है। इसी प्रकार आलू की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली है। पिछले पांच साल में आलू की खुदरा कीमतों का एक तुलनात्मक अध्ययन दिखाता है कि दाम 16.7 रुपए/किलो से बढक़र 43 रुपए किलो तक पहुंच गए हैं।
प्याज के साथ ही आलू व टमाटर के भावों में तेजी देखी गई है। प्याज के बाद यदि कोई सब्जी महंगी है तो उसमें आलू का दूसरा नंबर है। वहीं टमाटर तीसरे नंबर पर है। इतना ही नहीं प्याज, आलू, टमाटर ही नहीं अन्य सब्जियों के भावों में तेजी देखने को मिल रही है। अन्य सब्जियों के भाव भी सामान्य दिनों की तुलना में कई अधिक हो गए हैं जिससे लोगों के घर का बजट गड़बड़ाया हुआ है। हमने इस संबंध में आम उपभोक्ता से बात की तो उनका दर्द भी झलक आया।
इस संबंध में गृहिणी गीता का कहना है कि उसे प्याज व आलू के पराठे खाना बेहद पसंद है। पर क्या करें इन दोनों ही चीजों के भाव आसमान को छू रहे हैं। पहले जहां तीन से पांच किलो प्याज व आलू ले जाती थी। वहीं अब एक व दो किलो से काम चलाना पड़ रहा है। इसी प्रकार शालिनी कहती हैं कि सब्जियों के बढ़ते भावों ने घर का बजट बिगाड़ दिया है। अब सब्जी पर पहले की अपेक्षा दुगुना पैसा खर्च हो रहा है जिससे घर का बजट गड़बड़ा गया है। यह दर्द शालिनी और गीता का नहीं कामोबेश सभी निम्न आय व मध्यम आयवर्गीय उपभोक्ताओं का है जिन्हें सीमित इनकम में अपना घर खर्च चलाना पड़ता है।
आलू उत्पादक राज्यों में इस बार अति बारिश व बाढ़ से आलू की फसल को काफी नुकसान हुआ है। इस कारण आलू की फसल इस साल काफी कम रही है। उत्तर प्रदेश जो कि आलू का सबसे बड़ा उत्पादक है, वहां पिछले साल के 15.5 मिलियन टन के मुकाबले इस साल 12.4 मिलियन टन आलू ही हुआ। दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल में भी पिछले साल 11 मिलियन टन के मुकाबले इस बार केवल 8.5-9 मिलियन टन आलू की पैदावार रही है। इससे आलू के उत्पादन के मुकाबले खपत अधिक होने से आलू के भावों में तेजी आई है जिसमें अभी फिलहाल राहत की उम्मीद कम ही है।
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के अनुसार कई महीनों से महंगाई सहनशीलता के स्तर से ज्यादा रही है लेकिन समिति का मानना है कि जरूरी सप्लाई को लगे झटके धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था खुलने के साथ-साथ आने वाले महीनों में गायब हो जाएंगे, सप्लाई चैन्स बहाल हो जाएंगी और गतिविधियां सामान्य हो जाएंगी। केंद्रीय बैंक के अनुसार, टमाटर, प्याज और आलू जैसी मुख्य सब्जियों के दाम भी तीसरी तिमाही तक खरीफ की फसलें आने के साथ कम हो जाने चाहिए। आरबीआई के अनुसार, दालों और खाद्य तेल के दाम आयात शुल्क में बढ़त की वजह से इसी तरह बने रहेंगे।
वहीं सरकारी सूत्रों के अनुसार, सरकार के पास आलू के स्टॉक पर लिमिट तय करने का विकल्प है। लेकिन फिलहाल कीमतें बढऩे पर वह सभी संभव विकल्प उठाएगी जैसे आलू का आयात करना, ताकि कीमतों पर लगाम लग सके। इधर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने हाल ही में प्याज के स्टॉक की लिमिट तय कर दी थी। एक अधिकारी के अनुसार, आलू और प्याज में एक अंतर है। पर्याप्त संकेत थे कि प्याज की उपलब्धता ज्यादा थी और कीमतें जान-बूझकर बढ़ाई जा रही थीं। लेकिन आलू के केस में फसल कम हुई है और लॉकडाउन के दौरान स्टॉक और इस्तेमाल बढ़ गया। सरकार हालात से निपटने के लिए कई विकल्पों पर विचार करेगी।
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