IOTECH | Tractorjunction

अब किसान को पराली जलाने की जरूरत नहीं, इसे बेचकर कर सकते हैं कमाई

Share Product Published - 15 Oct 2020 by Tractor Junction

अब किसान को पराली जलाने की जरूरत नहीं, इसे बेचकर कर सकते हैं कमाई

पराली समस्या का मिल गया समाधान, सरकार से मिलेगी 100 रुपए प्रति क्विंटल की मदद

देश के जिन राज्यों में चावल की खेती की जाती है वहां पराली एक समस्या बनी हुई है। हरियाणा में यह समस्या काफी गहराई हुई है जिसका असर देश की राजस्थानी दिल्ली तक हो रहा है। इससे दिन प्रतिदिन दिल्ली के वातावरण में धुआं घुलता जा रहा है। हालत ये हैं कि कई स्थानों पर तो दूर-दूर तक धुआं दिखाई देता है जिससे यहां की हवा में सांस लेने में भी कठिनाई होने लगती है। 

 

सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1

 

पराली जलाना समस्या आज की नहीं, काफी पुरानी है

बता दें कि हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाने की समस्या आज की नहीं, काफी पुरानी है। हरियाणा सरकार की ओर से इस पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद इस समस्या पर नियंत्रण नहीं हो रहा है और यहां पराली जलाने का सिलसिला बेदस्तूर जारी है। वहीं इस समस्या से उत्तरप्रदेश भी अछूता नहीं है यहां भी पराली जलाने की समस्या बनी हुई और यह और नहीं बढ़ें, इसके लिए यहां की सरकार ने कड़े नियम और जुर्माना लगाने के साथ ही ऐसा करने वालों को सरकारी सहायता व अनुदान से वंचित किए जाने का कदम उठाया है।

 


पराली जलाने से होने वाला धुआं कितना खतरनाक? / पराली जलाने के नुकसान

फसल अवशेष/ नरवाई / पराली आदि जलाने से बढ़ रहे अत्यधिक वायु पदूषण एवं लोगों के स्वस्थ्य को नुकसान हो रह है। वहीं मिट्टी के पोषक तत्वों की अत्यधिक क्षति पहुंच रही है, सतह ही मिट्टी की भौतिक दशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। एक टन धान के फसल अवशेष जलाने पर 03 किलोग्राम कणिका तत्व, 60 किलोग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड, 199 किलोग्राम राख एवं 02 किलोग्राम सल्फर डाई ऑक्साइड अवमुक्त होती है। इन गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है जिससे आंखों में जलन एवं त्वचा रोग तथा सूक्ष्म कणों के कारण जीर्ण हृदय एवं फेंफड़ों की बीमारी के रूप में लोगों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है।

वहीं एक टन धान का फसल अवशेष जलाने से करीब 5.50 किलोग्राम, नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस ऑक्साइड, 25 किलोग्राम पोटेशियम ऑक्साइड, 1.2 किलोग्राम सल्फर, धान के द्वारा शोषित 50 से 70 प्रतिशत सूक्ष्म पोषक तत्व एवं 400 किलोग्राम कार्बन की क्षति होती है, पोषक तत्वों के नष्ट होने से अतिरिक्त मिट्टी के कुछ गुण जैसे- भूमि तापमान, पी.एच. मान उपलब्ध फासफोरस एवं जैविक पदार्थ भी अत्यधिक प्रभावित होते हैं। परिणाम स्वरूप भूमि की उर्वरक क्षमता कम होने लगती है।


पराली जलाने पर दंड व जुर्माने का प्रावधान, पराली जलाने के दुष्प्रभाव

राष्ट्रीय हरित अभिकरण द्वारा फसल अवशेषों को जलाना दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है तथा किसानों को फसल अवशेष जलाते हुए पकड़े जाने पर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। जिसके तहत राज्य सरकारें किसानों पर अलग-अलग जुर्माना एवं योजनाओं से किसानों को वंचित करना आदि नियम बनाकर किसानों को रोक रही है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा कृषि अपशिष्ट को जलाने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। इसके तहत उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा कृषि भूमि का क्षेत्रफल 02 एकड़ से कम होने की दशा में 2500 रुपए का अर्थदंड, क्षेत्रफल 02 एकड़ से अधिक एवं 05 एकड़ से कम होने की दशा में 5,000 रुपए का अर्थदंड, 05 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल होने की दशा में 15,000 रुपए का अर्थदंड लगाया जा रहा है। वहीं यहां कंबाइन हार्वेस्टिंग मशीन के साथ सुपर स्ट्रॉ मेनेजमेंट के बिना प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है। फसल अवशेष के जलाये जाने की पुन: पुनरावृत्ति होने की दशा में संबंधित किसान को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं जैसे- अनुदान आदि से वंचित किए जाने की कार्रवाई के निर्देश राष्ट्रीय हरित अभिकरण द्वारा दिए गए हैं।


तो फिर क्या हो सकता है पराली का उपयोग?

कैथल के किसान जरनैल सिंह धंजू के अनुसार खेत में अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं। साथ ही जमीन की ऊपरी सतह पर उपलब्ध उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो जाती है। इससे अगली फसल में किसानों को ज्यादा खाद और सिंचाई करनी पड़ती है। उससे फसल की लागत बढ़ जाती है। ऐसे में अवशेष खेत में जलाने की बजाय मिट्टी में दबा देना चाहिए। इससे वह पराली मिट्टी में सड़ कर कार्बनिक खाद का काम करती है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।


पराली को बेचकर कर सकते हैं कमाई

पराली को जलाने के वजाह किसान इसे बिजली संयत्रों को बेचकर अच्छी कमाई कर सकता है। पंजाब के किसान ऐसा करके अच्छा पैसा कमा रहे हैं इससे एक ओर तो आमदनी हो रही है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की सुरक्षा भी। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार पंजाब राज्य के जालंधर के जिला उपायुक्त घनश्याम थोरी ने बताया कि जिला प्रशासन के प्रयास से किसान पराली प्रबंधन के प्रति जागरूक हुआ है। पिछले साल जिले में रेक्स समेत सिर्फ 20 बेलर मशीनें थी और इस साल सरकार की 50 प्रतिशत सब्सिडी स्कीम अधीन किसानों को 12 अन्य बेलर मशीनें दीं गई हैं। उन्होंने बताया कि यह मशीन एक दिन में 20 से 25 एकड़ धान की पराली को बेल देती है और एक एकड़ में 25 से 30 क्विंटल पराली निकलती है। पराली की यह गांठें बिजली उत्पादन प्लांट की तरफ से 135 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदी जा रही है। थोरी ने बताया कि नकोदर के गांव बीड़ में स्थापित छह मेगावाट की क्षमता वाला बिजली उत्पादन यूनिट 30 हजार एकड़ में पराली का प्रबंधन कर रहा है और यह प्लांट 24 घंटे काम कर रहा है।


इन किसानों ने पराली का किया बेहतर उपयोग

पंजाब के कंगन गांव के किसान मनदीप सिंह ने बताया कि वह नकोदर के गांव बीड़ में स्थापित बिजली उत्पादन यूनिट को लगभग 20,000 क्विंटल धान की पराली बेच रहा है और पराली की गांठें बनाने के बाद 135 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब के साथ बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि धान की पराली उनकी कमाई का स्थायी साधन बन गई है। वहीं किसान बृजपाल राणा गोहरा का कहना है कि अवशेष न जलाने से खेतों की उपजाऊ क्षमता बढ़ गई है। अब उनके खेतों में 60 प्रतिशत कम खाद का इस्तेमाल होता है।


कोर्ट ने दिए हैं 100 रुपए प्रति क्विंटल की आर्थिक मदद देने के आदेश

पंजाब, हरियाणा और यूपी किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल से आर्थिक सहायता देने का आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए हैं। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसानों को पराली के निस्तारण के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान किया जाएगा।

आदेश का स्वागत करते हुए देश के बड़े कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने मीडिया में प्रकाशित खबरों में कहा कि इससे पराली की समस्या का समाधान हो जाना चाहिए। इस साल तो अब सिर्फ एक तिहाई ही पराली बची हुई है। लेकिन अगले साल के लिए यह पैसा देने के लिए एक रोडमैप बनाना चाहिए ताकि धान की कटाई से पहले पैसा उन तक पहुंच जाए और उसे जलाने की नौबत न आए। हरियाणा, पंजाब और यूपी में इस काम के लिए 3000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। बता दें कि देविंदर शर्मा पिछले काफी समय से मांग कर रहे थे कि किसानों को पराली के लिए 200 रुपए प्रति क्विंटल आर्थिक मदद दी जाए।

 

 

अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।

Quick Links

Call Back Button
scroll to top
Close
Call Now Request Call Back