सरसों की खेती : सरसों की बुवाई का मौसम, ऐसे करें उत्पादन में बढ़ोतरी

Share Product Published - 24 Sep 2021 by Tractor Junction

सरसों की खेती : सरसों की बुवाई का मौसम, ऐसे करें उत्पादन में बढ़ोतरी

जानें, सरसों की खेती का सही तरीका और उत्पादन बढ़ाने के तरीके 

इस साल सरसों के भावों में हुई बढ़ोतरी से किसानों का सरसों की खेती को ओर रूझान बढ़ रहा है। इससे इस आने वाले सीजन में किसान अधिक क्षेत्रफल पर इसकी बुवाई कर सकते हैं। ऐसी उम्मीद है इस बार सरसों उत्पादक राज्यों सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) का रकबा बढ़ सकता है। ऐसा इसलिए कि इस सीजन सरसों के भाव ऊंचे रहे जिससे किसानों को भी इस बचने पर काफी फायदा हुआ। इससे उत्साहित किसान अब सरसों की खेती पर अपना ध्यान बढ़ा सकते हैं। आगे भी उम्मीद की जा रही है कि सरसों के भावों में तेजी बनी रहेगी। इससे किसानों को अगले सीजन में सरसों की फसल से लाभ होगा। 

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सरसों की उन्नत खेती करने से पहले क्या करें

सरसों की खेती करने से पहले हमें इन बातों की जानकारी करना जरूरी होता है जिससे सरसों का बेहतर उत्पादन मिल सकें। ये बातें इस प्रकार से हैं-


मिट्टी की जांच

सरसों की खेती करने से पहले खेत की मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए। इससे पता चल जाता है कि मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है। इससे उन पोषक तत्वों को मिट्टी में मिलकर उसकी उर्वशक्ति को बढ़ाया जा सके। यदि ऐसा संभव न हो पाए तो कृषि वैज्ञानिकों की ओर से अनुसंशित खाद और उर्वरक का प्रयोग करें ताकि सरसों का बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सके। बता दें कि मिट्टी की जांच करना उन किसानों के लिए बेहद जरूरी है जो फसल चक्र का पालन नहीं कर रहे हैं। 


सरसों की खेती ( Sarso Ki Kheti ) के लिए भूमि का चयन

सरसों की अच्छी उपज के लिए समतल एवं अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है, लेकिन यह लवणीय एवं क्षारीयता से मुक्त होनी चाहिए। हालांकि क्षारीय भूमि में उपयुक्त किस्मों का चुनाव करके भी इसकी खेती की जा सकती है। जहां की मृदा क्षारीय से वहां प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता मृदा पी. एच. मान के अनुसार भिन्न हो सकती है। जिप्सम को मई-जून में जमीन में मिला देना चाहिए।


सरसों की खेती के लिए जलवायु और समय / सरसों की खेती का समय

रबी की फसल होने के कारण सरसों की फसल के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक रहता है। इसके लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए। सरसों की फसल का सीमित सिंचाई दशाओं मेें भी अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

 

हाइब्रिड सरसों की खेती : सरसों की उन्नत किस्मों की जानकारी

सरसों की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की जानकारी होना भी जरूरी है जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकें। सरसों की उन्नत और अधिक उत्पादन देने वाली किस्में इस प्रकार से हैं- 

  • सिंचित दशा के लिए सरसों की किस्में : जहां सिंचाई की अच्छी सुविधा है वहां के लिए सरसों व राई के लिए बोई जाने वाली उन्नतशील प्रजातियां क्रांति, माया, वरुणा, इसे हम टी-59 भी कहते हैं, पूसा बोल्ड उर्वशी, तथा नरेन्द्र राई है। 
  • असिंचित दशा के लिए सरसों की किस्में : जहां सिंचाई की कम सुविधा है वहां सरसों की वरुणा, वैभव तथा वरदान, इत्यादि प्रजातियों की बुवाई करना उचित रहता है। 


कहां से खरीदें सरसों का बीज

सरसों की खेती के लिए उचित बीजों का चयन करना अति आवश्यक है। बीज खरीदने से पहले इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी है। इसके लिए किसान राज्य के बीज भंडार गृह अथवा सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थान से इसके प्रमाणिक बीज खरीद सकते हैं। बीज हमेशा अपनी विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें। यदि आप स्वयं का उत्पादित बीज काम में लेते हैं तो उसे बुवाई से पहले उपचारित जरूर कर लें। 


सरसों की वैज्ञानिक खेती : खेत तैयारी कैसे करें

सरसों की खेती बारानी एवं सिंचित दोनों ही दशाओं में की जाती है। सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन-चार जुताईयां तबेदार हल से करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढेले न बनें। बुआई से पूर्व अगर भूमि में नमी की कमी हो तो खेत में पलेवा करने के बाद बुआई करें। फसल बुआई से पूर्व खेत खरपतवारों से रहित होना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में प्रत्येक बरसात के बाद तवेदार हल से जुताई करनी चाहिए जिससे नमी का संरक्षण हो सके। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे कि मृदा में नमी बने रहे। 


भूमिगत कीटों से सुरक्षा

सरसों की कीटों से सुरक्षा के लिए खेत की अंतिम जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्यूनॉलफॉस 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से में मिला दें, ताकि भूमिगत कीड़ों से फसल की सुरक्षा हो सके।


सरसों की बुवाई के लिए बीज मात्रा

सिंचित क्षेत्रों में सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में बीज की मात्रा भिन्न हो सकती है। बता दें कि बीज की मात्रा फसल की अवधि पर निर्भर करती है। यदि अधिक दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा कम लगेगी और यदि कम दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।


सरसों के बीज का शोधन / बीजोपचार

सरसों की फसल के लिए बीज जनित रोगों की सुरक्षा हेतु 2 से 5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। भरपूर पैदावार हेतु फसल को बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिए बीजोपचार आवश्यक है। श्वेत किट्ट एवं मृदुरोमिल आसिता से बचाव हेतु मेटालेक्जिल (एप्रन एस डी-35) 6 ग्राम एवं तना सडऩ या तना गलन रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।


सरसों की बुवाई की विधि

सरसों की बुवाई देशी हल या सीड ड्रिल से कतारों में करें, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी., पौधें से पौधे की दूरी 10-12 सेमी. एवं बीज को 2-3 से.मी. से अधिक गहरा न बोएं, अधिक गहरा बोने पर बीज के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।


खाद और उर्वरकों का प्रयोग

सरसों की खेती के लिए 60 कुन्तल गोबर की सड़ी हुई खाद की बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए तथा सिंचित दशा में 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करते हैं, नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले, अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए, शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के 25 से 30 दिन बाद टापड़ेसिग रूप में प्रयोग करना चाहिए। 


सरसों की फसल में सिंचाई की विधि

राई-सरसों की फसल में सिंचाई पट्टी विधि द्वारा करनी चाहिए। खेत की ढाल व लंबाई के अनुसार 4-6 मीटर चौड़ी पट्टी बनाकर सिंचाई करने से सिंचाई जल का वितरण समान रूप से होता है तथा सिंचाई जल का पूर्ण उपयोग फसल द्वारा किया जाता है। यह बात अवश्य ध्यान रखें कि सिंचाई जल की गहराई 6-7 सेमी. से ज्यादा न रखें। सरसों की फसल में पहली सिंचाई फूल आने के समय तथा दूसरी सिंचाई फलियां में दाने भरने की अवस्था में करना चाहिए, यदि जाड़े में वर्षा हो जाती है, तो दूसरी सिंचाई न भी करें तो उपज अच्छी प्राप्त हो जाती है। 


खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन बाद घने पौधों को निकाल कर उनकी आपसी दूरी 15 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए, खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराई-गुड़ाई सिंचाई के पहले और दूसरी सिंचाई के बाद करनी चाहिए। रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडामेथालिन 30 ई.सी. रसायन की 3.3 लीटर मात्रा की प्रति हैक्टर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिडक़ाव करना चाहिए, बुवाई के 2-3 दिन अंतर पर यह छिडक़ाव करना चाहिए।


फसल की कटाई और भंडारण

सरसों की फसल में जब 75 प्रतिशत फलियां सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल को स्प्रेयर से काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज अलग कर लेना चाहिए, सरसों के बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भंडारण करना चाहिए।


सरसों की पैदावार

असिंचित क्षेत्रों में इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल तक तथा सिंचित क्षेत्रों में 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर तक प्राप्त हो जाती हैं। 


बाजार में सरसों का भाव

अब बात करें सरसों के बाजार भाव की सरसों का भाव 7700 से 8500 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। बता दें कि भावों में प्रतिदिन उतार-चढ़ावा होता रहता है। वहीं कोलकाता पोर्ट तेल बाजार भाव में सरसों का तेल का भाव 1840 से 1860 प्रति टिन (एक टिन में 10 किलो) रहा। 


सरसों का साल 2021-22 का न्यूनतम समर्थन मूल्य

केंद्र सरकार ने इस साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,050 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है जो पिछले साल से 400 रुपए ज्यादा है। पिछले साल सरसों का न्यूनतम समर्थन 4650 रुपए था। 


किसान कहां बेचे अपनी सरसों की फसल / सरसों की खेती से कमाई

किसान अपनी सरसों की फसल देश की प्रमुख मंडियों में जहां भाव ऊंचे हो, वहां अपनी फसल बेच सकते हैं। इसके अलावा सीधे तेल कंपनियों से कोन्टेक्ट करके भी उन्हें बेचा जा सकता है। वहीं खुले बाजार में व्यापारियोंं को भी अपनी उपज बेच सकते हैं। बता दें कि इस साल सरसों की फसल ने किसानों को अच्छे दाम दिलाए है। जबकि तय न्यूनतम समर्थन मूल्य इससे आधा था। सही कारण रहा कि इस बार किसानों ने एमएसपी पर बहुत कम सरसों विक्रय की और बाजार में ऊंचे भावों पर सरसों बेची। किसानों को आगे भी सरसों के अच्छे भाव मिलने की उम्मीद है। आपको बता दें कि सरसों की खेती राजस्थान के पूर्वी भाग में होती है। उत्तरप्रदेश में सरसों की खेती कुछ जिलों में सीमित मात्रा में होती है वहीं बिहार में सरसों की खेती का प्रचलन भी बढ़ रहा है।

 

सरसों की खेती में काम में आने वाले कृषि यंत्र

सरसों की खेती में काम आने वाले कृषि यंत्र- सरसों की खेती मेें कृषि यंत्रों का उपयोग करके समय व श्रम की बचत की जा सकती है। सरसों की खेती के लिए जिन कृषि यंत्रों की जरूरत पड़ती है। उसकी सूची हम नीचे दे रहे हैं। किसान भाई अपनी आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग कर सकते हैं। 

  • ट्रैक्टर
  • मिट्टी पलटने वाला हल 
  • तबेदार हल
  • देशी हल 
  • सीड ड्रिल
  • सिंचाई यंत्र- स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई सिस्टम
  • स्प्रेयर
  • पावर टिलर
  • कंबाइन हार्वेस्टर

 

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