Published - 24 Feb 2021 by Tractor Junction
आदिवासी समाज आज भी समाज की मुख्य धारा से कटे हुए है और अलग-थलग रह रहे हैं। यही कारण है कि यह समाज आज भी गरीब, अशिक्षित है। यही नहीं इन्हें सरकारी मदद भी बहुत ही कम मिल पाती है। हालांकि सरकार इसको समाज की मुख्य धारा में लाने हेतु योजनाएं संचालित कर रही है पर ये नकाफी साबित हो रहा है। इसके बावजूद इन आदिवासियों में मेहनत और लगन से काम करने का जो जज्बा है वे तारीफे काबिल है। बिना किसी सरकारी मदद और संसाधनों के ये अपने परंपरागत तरीकों को अपनाकर आज भी खेतीबाड़ी का काम कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। इनके परंपरागत जुगाड़ के तरीके काफी रोचक और इंजीनियरों को आश्चर्य में डाल देने वाले है। इसका एक उदाहरण दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कोटड़ा के किसानों ने पेश किया है।
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मीडिया में प्रकाशित खबरों के आधार पर यहां के किसानों के पास न मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इनके पास न तो बिजली है, न मोटर और न ही कोई सरकारी सहायता मुहैया हो पा रही है। इसके बावजूद इन किसानों का जज्बा काफी प्रेरणा देने वाला है। इन किसानों ने अपने खेतों में सिंचाई के लिए पानी की कमी के चलते देशी जुगाड़ अपनाकर करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी नहर बनाई है जिसका पानी उनके खेतों में जाता है। इस काम के लिए न तो उन्होंने सरकार से मदद ली और न ही ज्यादा खर्चा किया। बस अपने देशी जुगाड़ से इस नहर का निर्माण कर लिया। इसकी बदौलत आज भी ये आदिवासी किसान बंजर भूमि पर खेती कर रहे हैं।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार उदयपुर से 120 किमी दूर कोटडा अंचल के वीर गांव में 20 किसानों के पास करीब 40 बीघा जमीन है। कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते ये लोग ना तो ट्यूबवेल लगवा पा रहे थे और ना बारिश के बाद दूसरी फसल उगा पा रहे थे। ऐसे में इन्होंने खेतों से डेढ़ किलोमीटर दूर बहने वाली नदी का पानी खेतों तक लाने का विचार किया। दरअसल इस गांव में नदी ऊंचाई पर है और उसके आसपास की जमीन कहीं ऊंची तो कहीं नीची है। आदिवासियों ने नदी का पानी खेतों तक पहुंचाने के लिये दो जगह ब्रिज बनाए तो दो जगह जमीन को गैंती-फावड़े से नीचे किया। उसके बाद उस नहर में प्लास्टिक बिछाया। नहर में जब तक पानी बहता है तब तक न तो प्लास्टिक खराब होता और न ही फटता है। इस तरह इन आदिवासी किसानों ने देशी जुगाड़ से डेढ़ किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण बिना किसी सरकारी मदद के कर लिया।
किसानों ने मीडिया को बताया कि कई बार तेज बारिश में छोटे पत्थर बह जाते हैं और प्लास्टिक फट जाती है। अब वे हर साल बारिश के बाद नहर का मुआयना कर इसमें जरूरी सुधार करते हैं और प्लास्टिक बदलते हैं। अब हर साल प्लास्टिक पर ही खर्च होता है। लेकिन इससे खेतों तक पानी आसानी से पहुंच जाता है। नहर बन जाने से उनकी समस्या का समाधान हो गया। अब ये नदी के पानी से गेहूं और सौंफ की फसल भी उगा रहे हैं।
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