Published - 19 Nov 2020 by Tractor Junction
भारत की अधिकांश आबादी गांवों में निवास करती है और गांव में अधिकतर लोग खेतीबाड़ी व पशुपालन से जुड़े हुए होते हैं। यह उनका रोजगार का साधन होता है। लेकिन आज के शहरीकरण के युग में अधिकतर युवा खेतीबाड़ी के काम से दूर होते जा रहे हैं। वे पढ़लिख कर खेती का काम करने के जगह शहरों में नौकरी करने करने को अधिक महत्व दे रहे हैं। ऐसे दौर में एक एमबीए पास युवा का खेती की ओर बढ़ता रूझान वाकई में तारीफे काबिल है।
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उत्तरप्रदेश के हापुड जिले के एक छोटे से गांव के इस युवा ने नौकरी में अपना भाग्य आजमा कर कुछ बनने की चाह के लिए एमबीए करने के बाद युवा ने अपने गांव लौटकर खेती में भाग्य अजमाया। सहफसली खेती करके परिवार के लिए आमदनी दोगुनी कर दी। केले की खेती के साथ गन्ने की फसल बोकर पहला नया अनुभव किया है। जिससे सीख लेने के लिए कृषि अधिकारी तथा केले की पौध देने वाले भी गांव आ रहे है। हापुड जिला मुख्यालय से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित रामपुर गांव यूं तो शहर के अधीन होता जा रहा है। लेकिन यह गांव अभी तक पालिका में शामिल नहीं हो पाया है। हालांकि गांव का काफी जंगल शहर की आबादी में आ चुका है। रामपुर के रहने वाले किसान बबली गुर्जर ने अपने 6 बीघा खेत में केले की फसल बोई है।
एग्री-बिजनेस और फार्मिंग के जरिए अच्छी कमाई
सबसे दीगर बात यह है कि केले के साथ ही बबली गुर्जर ने गन्ने की फसल बो दी है। जिसमें केला जहां बेहतरीन हो रहा है वहीं गन्ना अब तक करीब 15 फुट लंबा हो चुका है। जिसको देखने के लिए कृषि उप निदेशक के अलावा केले की पौध लगाने वाले भी आ रहे हैं। बबली गुर्जर ने ग्रेजुएशन के बाद एमबीए किया है। लेकिन एग्रीकल्चर के अपने पैशन से दूर नहीं रह सके और जॉब छोड़ एग्री-बिजनेस शुरू कर दिया। आज वे उत्तर प्रदेश के हापुड में एग्री-बिजनेस और फार्मिंग के जरिए अच्छी कमाई कर रहे हैं। किसान बबली गुर्जर बताते हैं कि मैं इनोवेटिव फार्मिंग में विश्वास रखता हूं। इसलिए गन्ने और गेहूं की खेती के साथ ही अब केले और गन्ने की सहफसली कर दी है। इसकी फसल से प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर एक लाख रुपए तक का मुनाफा होता है।
जी 5 केले का उत्पादन बढिय़ा हो रहा है। जिसको देखने के लिए केले की पौध लगाने वाले भी रामपुर आ रहे हैं। किसान बबली गुर्जर का कहना है कि 6 बीघा जमीन में केला तथा गन्ना की सहफसली में 15 से 20 हजार रुपए बीघे का खर्चा आया है जबकि 50 हजार रुपए बीघे का केला बिक रहा है। जबकि गन्ने की लंबाई करीब 15 फुट हो चुकी है।
इनोवेटिव फार्मिंग से तात्पर्य ऐसी खेती से हैं जिसमें जमीन के मुताबिक फसल का चुनाव, खाद पानी का उचित इस्तेमाल, जैविक खेती, कम जमीन पर कम पानी से और कम लागत से ज्यादा फसल लेने के उपाय और सबसे बढक़र धरती की सेहत का ख्याल रखते हुए लक्ष्य को हासिल करने से हैं। इसमें कम लागत में अधिक व स्वस्थ उत्पादन संभव किया जा सकता है। सहफसली खेती का फायदा ये हैं कि एक फसल में यदि नुकसान हो तो दूसरी फसल से उनकी पूर्ति करना संभव हो जाता है जिससे किसान को हानि होने की गुंजाइश कम हो जाती है।
आधुनिक दौर में एक फसल की लागत में किसान एक साथ दो-दो फसलों का उत्पादन ले रहे हैं। सब्जी उत्पादकों के लिए तो सहफसली खेती खासा वरदान साबित हो रही है। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर सहफसली खेती कर किसान और ज्यादा मुनाफा किसान कमा सकते हैं। महंगाई के इस दौर में घर के अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए किसान प्रमुख फसलों के साथ अन्य नकदी फसलें उगा रहे हैं।
उत्तरप्रदेश के अमरोहा जिले के किसान अब गन्ने की फसल के साथ ही मैंथा, गन्ना-उड़द, गन्ना-मूंग, अरहर-चारा, अरहर-मूंग, अरहर-उड़द, उड़द -तिल की खेती एक साथ कर रहे हैं। इससे किसानों को दोहरा लाभ हो रहा है। एक तो लागत कम आ रही है, ऊपर से लाभ दोहरा हो रहा है। आम के बाग में भी किसान सब्जियों की खेती कर रहे हैं। यानि कि आम की फसल तो वह ले ही रहे हैं, इसी के साथ पूरे वर्ष भर सब्जी की खेती भी करते हैं। जनपद में आलू के साथ सरसों की भी खूब खेती की जा रही है। सब्जी उत्पादक भी एक ही फसल में दो से तीन सब्जियों की फसल एक साथ उगा रहे हैं।
इधर जिला कृषि अधिकारी के अनुसार सहफसली खेती के माध्यम से किसान भाई कम लागत में ज्यादा उत्पादन पा सकते है। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों से सलाह के बाद ही सहफसली खेती करें। विशेषज्ञों से सलाह के बाद सहफसली के लिए फसलों का सही चुनाव करें, नहीं तो फायदे के स्थान पर नुकसान भी हो सकता है।
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