Published - 17 Apr 2021
by Tractor Junction
जिस तरह हमारा रहन-सहन और खानपान मौसम के अनुरूप बदल जाता है। ठीक उसी तरह पालतू पशुओं के आहार में भी परिवर्तन करना जरूरी होता है विशेषकर दुधारू पशुओं के। क्योंकि यदि पशुपालक अपने पाले हुए दुधारू पशुओं के आहार में मौसम अनुरूप परिवर्तन नहीं करेगा तो उसे दूध का उत्पादन पहले की अपेक्षा कम प्राप्त होगा। वैसे भी गर्मियों के मौसम में गाय, भैंसों की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। इस पर यदि आहार भी संतुलित नहीं दिया जाए तो दूध उत्पादन काफी हद तक गिर जाता है जिससे पशुपालक को हानि होती है।
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ऐसा आहार जो पशु को आवश्यक पोषक तत्वों प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज, लवण विटामिन का उचित अनुपात एवं मात्रा में प्रदान करें, जिससे कि पशु की एक दिन की बढ़वार, स्वास्थ्य, दुग्ध उत्पादन, प्रजनन आदि बनाए रखें, संतुलित पशु आहार कहलाता है। बता दें कि पशु का शरीर 75 प्रतिशत, जल 20 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत खनिज पदार्थों एवं 1 प्रतिशत से भी कम कार्बोहैड्रेड का बना होता है। शरीर की संरचना पर आयु व पोषण का बहुत प्रभाव होता है, बढ़ती उम्र के साथ जल की मात्रा में कमी परंतु वसा में वृद्धि होती है। संतुलित आहार खिलाने से पशु उत्पादन क्षमता में 30-35 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।
पशुओं का आहार व दाना मिश्रण तैयार करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए-
दुधारू पशुओं के लिए आहार को लेकर काफी ध्यान देने की जरूरत होती है। एक तो जो आहार हम रेगुलर दे रहे हैं वे जीवन निर्वाह के लिए आहार की श्रेणी में आता है जिसे किसी भी पशु को देना चाहिए। लेकिन गर्भावस्था के दौरान पशु आहार का निर्धारण उसकी जरूरत के हिसाब से होना चाहिए। इसी प्रकार दूध देने वाले पशुओं के लिए भी आहार की मात्रा में खनिज लवण व विटामिन की भरपूर मात्रा जरूरत के हिसाब से दी जानी चाहिए। इस प्रकार पशुओं के लिए संतुलित आहार को तीन भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार है।
यह आहार की वह मात्रा है जिसे पशु को अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दिया जाता है। इसे पशु अपने शरीर के तापमान को उचित सीमा में बनाए रखने, शरीर की आवश्यक क्रियायें जैसे पाचन क्रिया, रक्त परिवहन, श्वसन, उत्सर्जन, उपापचय आदि के लिए काम में लाता है। इससे उसके शरीर का वजन भी एक सीमा में स्थिर बना रहता है। चाहे पशुु उत्पादन में हो या न हो इस आहार को उसे देना ही पड़ता है इसके आभाव में पशुु कमजोर होने लगता है जिसका असर उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन क्षमता पर पड़ता है।
इसमें देसी गाय के लिए तुड़ी अथवा सूखे घास की मात्रा 4 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्ल के लिए यह मात्रा 4 से 6 किलो तक होती है। इसके साथ पशु को दाने का मिश्रण भी दिया जाता है जिसकी मात्रा स्थानीय देसी गाय के लिए 1 से 1.25 किलो तथा संकर गाय शुद्ध नस्ल की देशी गाय के लिए इसकी मात्रा 2.0 किलो रखी जाती है। इस विधि द्वारा पशु को खिलाने के लिए दाने का मिश्रण उचित अवयवों को ठीक अनुपात में मिलाकर बना होना आवश्यक है।
पशु गर्भवस्था में उसे 5 वें महीने से अतिरिक्त आहार दिया जाता है क्योंकि इस अवधि के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे की वृद्धि बहुत तेजी के साथ होने लगती है। अत: गर्भ में पल रहे बच्चे की उचित वृद्धि व विकास के लिए तथा गाय के अगले ब्यांत में सही दुग्ध उत्पादन के लिए इस आहार का देना नितान्त आवश्यक है। इसमें स्थानीय गायों के लिए 1.25 किलो तथा संकर नस्ल की गायों व भैंसों के लिए 1.75 किलो अतिरिक्त दाना दिया जाना चाहिए। अधिक दूध देने वाले पशुओं को गर्भवस्था में 8वें माह से अथवा ब्याने के 6 सप्ताह पहले उनकी दुग्ध ग्रंथियों के पुर्ण विकास के लिए इच्छानुसार दाने की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। इस के लिए देशी नस्ल के पशुओं में 3 किलो तथा संकर गायों व भैसों में 4-5 किलो दाने की मात्रा पशु की निर्वाह आवश्यकता के अतिरिक्त दिया जाना चाहिए। इससे पशु अलगे ब्यांत में अपनी क्षमता के अनुसार अधिकतम दुधोत्पादन कर सकते हैं।
दूध उत्पादन आहार पशु की वह मात्रा है जिसे कि पशु को जीवन निर्वाह के लिए दिए जाने वाले आहार के अतिरिक्त उसके दूध उत्पादन के लिए दिया जाता है। इसमें स्थानीय गाय के लिए प्रति 2.5 किलो दूध के उत्पादन के लिए जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त 1 किलो दाना देना चाहिए जबकि संकर/देशी दुधारू गायों/भैंसों के लिए यह मात्रा प्रति 2 किलो दूध के लिए दी जाती है। यदि हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो हर 10 किलो अच्छे किस्म के हरे चारे को देकर 1 किलो दाना कम किया जा सकता है। इससे पशु आहार की कीमत कम हो जाएगी और उत्पादन भी ठीक बना रहेगा।
दाना मिश्रण बनाते समय इसमें मिलाई गई चीजें सही मात्रा में होना जरूरी है। इसलिए दाना मिश्रण तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जो दाना मिश्रण आप पशु के लिए तैयार कर रहे हैं। उसमें प्रोटीन 14-16 प्रतिशत तथा कुल पाच्य तत्व कम से कम 65-68 प्रतिशत हो। इसके लिए दाना मिश्रण तैयार करते समय खली की मात्रा 25-35 प्रतिशत, मोटे अनाज- 25-35 प्रतिशत, चोकर, चुन्नी, भूसी 10-30 प्रतिशत, खनिज लवण 2 प्रतिशत, साधारण नमक 1 प्रतिशत की मात्रा रखनी चाहिए।
गर्मियों के मौसम में पशुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक लगती है। इसलिए पशुओं को पर्याप्त मात्रा में दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाना चाहिए। जिससे शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके अलावा पशु को पानी में थोड़ी मात्रा में नमक एवं आटा मिलाकर पानी पिलाना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में साफ सुथरा ताजा पीने का पानी हमेशा उपलब्ध होना चहिए।
पीने के पानी को छाया में रखना चाहिए। पशुओं से दूध निकालनें के बाद उन्हें यदि संभव हो सके तो ठंडा पानी पिलाना चाहिए। गर्मी में 3-4 बार पशुओं को अवश्य ताजा ठंडा पानी पिलाना चाहिए। पशु को प्रतिदिन ठंडे पानी से भी नहलाने की सलाह दी जाती है। भैंसों को गर्मी में 3-4 बार और गायों को कम से कम 2 बार नहलाना चाहिए। पशुओं को नियमित रूप से खुरैरा करना चाहिए। इसके अलावा पशुओं की खाने-पीने की नांद को नियमित अंतराल पर विराक्लीन से धोना चाहिए।
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