गन्ना किसानों का 1400 करोड़ रुपए बकाया, सरकार जल्द करेगी भुगतान सुनिश्चित

Share Product प्रकाशित - 17 Apr 2025 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

गन्ना किसानों का 1400 करोड़ रुपए बकाया, सरकार जल्द करेगी भुगतान सुनिश्चित

चीनी आयुक्त कार्यालय कर रहा है चीनी मिलों पर सख्ती, चीनी स्टॉक की नीलामी से वसूली की तैयारी

गन्ना की खेती (Sugarcane cultivation) करने वाले किसानों के लिए खुशखबर है। गन्ना किसानों (Sugarcane Farmers) का 1400 करोड़ रुपए अभी भी चीनी मिलों के ऊपर बकाया है। इसे लेकर सरकार ने किसानों को बकाया राशि का जल्द भुगतान सुनिश्चित करने की योजना तैयार की है। इसके तहत आयुक्त कार्यालय चीनी मिलों पर सख्ती का रूख अपना रहा है ताकि गन्ना किसानों को उनका बकाया पैसा जल्द ही मिल सके। अपने अधिकारों के तहत आयुक्त कार्यालय चीनी स्टॉक की नीलामी से भी बकाया वसूल कर सकता है। किसानों के हित में यह राज्य सरकार का स्वागत योग्य कदम है। अभी तक राज्य की 15 मिलों पर कार्रवाई की जा चुकी है, जबकि 105 मिलों ने किसानों के बकाया का पूरा भुगतान कर दिया है। इस तरह सभी चीनी मिलों से किसानों की बकाया राशि को जल्द ही भुगतान करवाया जाएगा।  इधर किसान संगठनों ने चीनी आयुक्त से मिलकर जल्द से जल्द किसानों का बकाया भुगतान करने की मांग की है। इतना ही नहीं बकाया नहीं मिलने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी है। 

गन्ना पेराई सत्र खत्म, अभी तक किसानों का बकाया नहीं चुकाया

महाराष्ट्र में चीनी मिलों का पेराई सत्र करीब–करीब खत्म हो चुका है। ऐसे में अब चीनी आयुक्त कार्यालय, यह सुनिश्चित करने में जुटा है कि किसानों का बकाया भुगतान जल्द से जल्द किया जाए। चीनी आयुक्त कार्यालय ने 15 चीनी मिलों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। क्योंकि इन मिलों ने किसानों से खरीदे गए गन्ने का भुगतान नहीं किया है। 1 अप्रैल तक रिपोर्ट के मुताबिक किसानों को उचित व लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी के रूप में कुल 28,231 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाना था। इसमें से मिलों ने 26,799 करोड़ रुपए का भुगतान किया है। ऐसे में अभी भी चीनी मिलों के ऊपर किसान का 1432 करोड़ रुपए का बकाया शेष है। 

चीनी स्टॉक की नीलामी से वसूली की तैयारी में आयुक्त कार्यालय

गन्ना पेराई का सत्र छोटा होने के बावजूद चीनी की कीमतें अपेक्षाकृत अधिक रही हैं। फिर भी, अधिकतर मिलें गन्ना पेराई से कम पेराई करने के कारण परिचालन घाटे से जूझ रही हैं। चीनी आयुक्त कार्यालय के नियमों के अनुसार, मिलों को गन्ना खरीद के 14 दिनों के अंदर किसानों को पूरा एफआरपी भुगतान करना होता है। यदि चीनी मिलें ऐसा नहीं करती है तो चीनी आयुक्त कार्यालय राजस्व वसूली प्रमाण–पत्र (आरआरसी) जारी कर सकता है। इसके तहत बकाया राशि को राजस्व बकाया के रूप में वसूला जाता है। आमतौर पर राजस्व अधिकारी द्वारा चीनी के स्टॉक की नीलामी का आदेश देकर बकाया राशि की वसूली की जाती है। 

200 चीनी मिलों में से 105 ने किया 100 प्रतिशत बकाया का भुगतान

राज्य में 200 मिलों ने गन्ना पेराई का काम किया। इसमें से 105 मिलों ने अपने बकाया का 100 प्रतिशत भुगतान कर दिया है। 50 मिलों ने 80 से 99.99 प्रतिशत, 30 मिलों ने 60 से 79.99 प्रतिशत, वहीं 14 मिलें ऐसी है जिन्होंने अपने कुल बकाया का 40 प्रतिशत से भी कम भुगतान किया है। ऐसे में आयुक्त कार्यालय की ओर से इन चीनी मिलों पर कार्रवाई की जा रही है ताकि किसानों को जल्द से जल्द बकाया का भुगतान किया जा सके।

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अगले सीजन को लेकर अनिश्चितता, निर्यात भी सीमित

अंतिम उत्पादन के आंकड़ों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है जिससे 2025–26 के गन्ना पेराई सत्र की शुरुआती मात्रा पर सवाल उठ रहे हैं। उत्पादन के अनुमान 44 लाख टन (नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड के अनुसार) से लेकर 54 लाख टन (इंडियन शुगर एंड बायो एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अनुसार) तक है। केंद्र सरकार की ओर से 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई है। इसमें से मिलों ने 6 लाख टन का व्यापार पूरा कर लिया है। अंतराष्ट्रीय चीनी की कीमतों में थोड़ी गिरावट आई है, क्योंंकि खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मार्च सूचकांक में 1.6 अंकों की कमी दर्ज की गई है, जो मुख्य रूप से अपेक्षा से कम मांग के कारण थी। 

चीनी मिलें क्यों नहीं कर पा रही हैं किसानों को बकाया का भुगतान

चीनी उद्योग के वरिष्ठ विश्लेषक विजय औटाडे ने कहा कि कई मिलें एफआरपी का भुगतान करने में विफल रही हैं। ऐसा इसलिए कि क्योंकि चीनी की अर्थव्यवस्था असंतुलित है। उन्होंने बताया कि चीनी मिलें अपने चीनी स्टॉक को बैंकों के पास गिरवी रखकर कार्यशील पूंजी जुटाती हैं। वर्तमान में चीनी का मूल्यांकन 3,500 रुपए प्रति क्विंटल किया जाता है और बैंक द्वारा इसकी 85 प्रतिशत राशि ऋण के रूप में दी जाती है। इसमें भी बैंक सुरक्षा जमा राशि काट लेते हैं, जिसके कारण मिलों को एफआरपी भुगतान के लिए पर्याप्त धन नहीं मिल पाता है। इसके अलावा मिलें पुराने ऋणों की भी सेवा करती है, जो उन्होंने पहले एफआरपी भुगतान हेतु लिए थे। ऐसे में मिलें साल–दर–साल एफआरपी भुगतान के दुष्चक्र में फंस रही हैं।

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