प्रकाशित - 23 Jun 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
सोयाबीन भारत की एक प्रमुख तिलहनी फसल है, जो न केवल किसानों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। मध्य प्रदेश, विशेष रूप से मालवा क्षेत्र, सोयाबीन उत्पादन का प्रमुख केंद्र है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा जारी सलाह के आधार पर, इस लेख में सोयाबीन की खेती के लिए आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों की विस्तार जानकारी दी गई है। यह सलाह किसानों को बेहतर उपज और फसल की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता करेगी।
मानसून शुरु होने के बाद कम से कम 100 मिमी बारिश हो जाए, तभी बुवाई करनी चाहिए। मध्य क्षेत्र (मध्य प्रदेश) के लिए उचित समय 20 जून से 5 जुलाई तक का होता है। इससे फसल को पर्याप्त नमी मिलेगी और सूखे या अधूरी अंकुरण की समस्या नहीं होगी।
मानसून के आरंभ में कल्टीवेटर और पाटा से मिट्टी को भुरभुरी और समतल बनाएं ताकि बीज आसानी से अंकुरित हो। बुवाई से पहले खेत में 5–10 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद या 2.5 टन/हेक्टेयर मुर्गी की खाद डालकर मिलाएं। यह उपाय मिट्टी की संरचना व पोषक तत्व बढ़ाने में सहायता करेगा।
सोयाबीन की खेती के लिए अलग-अलग फसल चक्र व जलवायु के अनुसार किस्म चुनाव करना चाहिए। यदि सोयाबीन के बाद आलू, प्याज, लहसुन या गेहूं लगाया जाता है, तो (90–100 दिन) में तैयार होने वाली JS 20‑29, JS 20‑34। जैसी किस्मों का चयन करें। वहीं यदि साल में केवल 2 फसलें ली जाती हैं, तो मध्यम (100–110 दिन) या लंबी अवधि (110–120 दिन) में पकने वाली किस्में चुनें जिसमें JS 95‑60, NRC 37 जैसी किस्में अच्छी रहती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार दी गई सलाह के मुताबिक संकट से बचने के लिए 2–3 नोटिफाइड किस्मों का संयोजन करें।
सोयाबीन की बुवाई से पहले बीज अंकुरण परीक्षण करवाना चाहिए। इसमें कम से कम 70% अंकुरण वाले बीजों की बुवाई करनी चाहिए। बीजों को बुवाई से पहले उसका उपचार अवश्य करें जिसमें फफूंदनाशक बीजोपचार में एज़ोक्सीस्ट्रोबिन + थायोफिनेट मिथाइल + थायमेथोक्सम (10 मि.ली./किग्रा), या कार्बोक्सिन + थाइरम (3 ग्राम/किग्रा) रसायनों का उपयोग करें। वहीं कीटनाशक उपचार में थायमेथोक्सम 30 FS या इमिडाक्लोप्रिड (10 मि.ली./किग्रा) इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा जैविक उपचार में ब्रैडीराइजोबियम + PSB कल्चर (5 ग्राम/किग्रा) व ट्राइकोडर्मा (10 ग्राम/किग्रा) का उपयोग करें। उपचार का क्रम इस तरह रखें जैसे– फफूंदनाशक → कीटनाशक → जैविक कल्चर यानी पहले फफूंदनाशक से बीजोपचार करें, इसके बाद कीटनाशक से और अंत में जैविक कल्चर से उपचारित कर बीजों की बुवाई करें।
सोयाबीन की बुवाई में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करना चाहिए, जैसे सीड ड्रिल, BBF, रिज-फरो, रेज्ड बेड का उपयोग कर बीजों की बुवाई करें। शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए कतारों की दूरी: 30 सेमी और पौधे की दूरी 5–7 सेमी रखनी चाहिए। इसके लिए बीज दर 80–90 किग्रा/हेक्टेयर रखें और 2–3 सेमी की गहराई तक बुवाई करें। वहीं उर्वरक में 25:60:40:20 (N:P:K:S) किग्रा/हेक्टेयर की दर से दें। इसी प्रकार मध्यम अवधि की किस्मों के लिए भी यही दूरी एवं बीज दर का इस्तेमाल किया जा सकता है।
सोयाबीन की खेती में संतुलित उर्वरक का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए यूरिया – 56 किग्रा, SSP (Single Super Phosphate) – 375–400 किग्रा, MOP (Potash) – 67 किग्रा, वैकल्पिक तौर पर DAP 125 किग्रा + MOP + Bentonite Sulphur 25 किग्रा, मिश्रित उर्वरक 12:32:16 (200 किग्रा) + Bentonite Sulphur 25 किग्रा का उपयोग किया जाना चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो Zink Sulphate (25 किग्रा) तथा Iron Sulphate (50 किग्रा) का उपयोग किया जा सकता है।
खरपतवार उपज को 30–50% तक प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए नियंत्रण भी जरूरी है। इसके लिए बुवाई से पहले (PPI): डायक्लोसुलम+पेंडीमिथालीन (2.51 ली./है), फ्लूक्लोरलिन (2.22–3.33 ली./है) और बुवाई के तुरंत बाद (PE): डायक्लोसुलम 84% WDG (26 ग्रा.), सल्फेन्त्राजोन 39.6% SC (0.75 ली.), पेंडीमिथालीन 30% EC (2.5–3.3 ली.) का उपयोग करना चाहिए। वहीं खरपतवारनाशकों के छिड़काव के लिए 450-500 लीटर पानी (नेपसैक स्प्रेयर) या 120 लीटर पानी (पावर स्प्रेयर) प्रति हेक्टेयर उपयोग करें।
बीज उपचार से चारकोल रॉट, एन्थ्रेक्नोज, कॉलर रॉट, पर्पल सीड स्ट्रेन आदि रोगों से बचा जा सकता है। वहीं बीज थ्रेसिंग हेतु फ़्लक्सापायरोक्साड (1 मि.ली./किग्रा) कारगर है। कीट नियंत्रण के लिए बीज उपचार व खेत निगरानी करना अवश्यक है।
मध्यप्रदेश के मध्य क्षेत्र में बुवाई का समय 20 जून से 5 जुलाई तक का होता है। इसमें बीज की मात्रा 65 किलोग्राम प्रति हैक्टयर के हिसाब से रखेंं। वहीं कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखी रखें। प्रदेश के उत्तर‑पूर्वी पहाड़ी क्षूेत्र में सोयाबीन की बुवाई का उचित समय 15 से 30 जून तक का होता है। इसके लिए बीज की मात्रा 55 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर और कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखी जा सकती है। उत्तर मैदानी क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई का उचित समय 20 जून से 5 जुलाई तक का होता है। इसके लिए बीज की मात्रा 65 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें और कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखी जा सकती है। प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई का उचित समय 15 से 30 जून तक का होता है। इसके लिए बीज की मात्रा 55 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से लें तथा कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखें। वहीं दक्षिण क्षेत्र के लिए सोयाबीन की बुवाई का उचित समय 15 से 30 जून तक का होता है। इसके लिए बीज की मात्रा 65 किलोग्राम व कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रखें।
यदि किसान समय पर बुवाई, सही किस्मों और उर्वरक का उपयोग करें, तो सोयाबीन की उपज में 20–30% तक की बढ़ोतरी संभव है। सोयाबीन की बुवाई के संबंध में और अधिक जानकारी के लिए अपने निकट के कृषि विभाग से संपर्क करें।
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